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प्रयागराज, जिसे तीर्थों का राजा भी कहा जाता है, भारत के प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों में से एक है। यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम है, जो इसे एक पवित्र स्थल बनाता है।
विशेष रूप से महाकुंभ मेला, जो हर 12 वर्षों में आयोजित होता है, यहां दुनिया भर से भक्तों को आकर्षित करता है।
महाकुंभ के अवसर पर लोग पवित्र नदियों में स्नान करने आते हैं, लेकिन इसके बाद यदि आप यहां के प्रमुख मंदिरों का दर्शन करते हैं, तो आपको और भी अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।
ये मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि इनमें स्थित मान्यताएं और पौराणिक कथाएं भी इस क्षेत्र की धार्मिक धरोहर को संजोए हुए हैं। आइए जानते हैं प्रयागराज के प्रमुख मंदिरों के बारे में विस्तार से।
श्री बड़े हनुमान मंदिर
प्रयागराज का श्री बड़े हनुमान मंदिर अकबर किले के पास स्थित है। यह मंदिर हनुमान जी के विशाल और लेटे हुए रूप के लिए प्रसिद्ध है।
यहां हनुमान जी की मूर्ति लगभग 20 फीट लंबी है, जो अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर की मान्यता के अनुसार, हनुमान जी को हर साल गंगा मैया पहले स्नान कराती हैं।
यह मंदिर 'बांध वाले हनुमान जी' के नाम से भी जाना जाता है, और यहां आने वाले भक्तों को विशेष आशीर्वाद मिलता है।
सोमेश्वर नाथ मंदिर
सोमेश्वर नाथ मंदिर यमुना तट पर अरैल गांव में स्थित है। यह भगवान शिव का मंदिर है और चंद्रमा द्वारा स्थापित माना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चंद्रमा को उनके पिता दक्ष प्रजापति ने श्राप दिया था, जिसके कारण वह छायारोग से ग्रसित हो गए थे। इस रोग से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने भगवान शिव की पूजा की और सोमेश्वर नाथ मंदिर की स्थापना की।
यहां हर पूर्णिमा की रात त्रिशूल चंद्रमा के साथ अपनी दिशा बदलता है, जो इस मंदिर की खासियत है।
नाग वासुकी मंदिर
प्रयागराज के दारागंज इलाके में स्थित नाग वासुकी मंदिर नाग देवता का प्रमुख मंदिर है। यह स्थान समुद्र मंथन के दौरान नागराज वासुकी के विश्राम करने की मान्यता से जुड़ा हुआ है।
पुराणों के अनुसार, जब गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरी, तो वह सीधे नाग वासुकी के फन पर जाकर गिरी थी, जिससे इस स्थान का नाम भोगवती तीर्थ पड़ा।
वेणी माधव मंदिर
वेणी माधव मंदिर प्रयागराज के दारागंज क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर में भगवान विष्णु और त्रिवेणी मां लक्ष्मी के रूप में पूजा की जाती है।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब ब्रह्माजी ने दशाश्वमेध घाट पर यज्ञ किया, तब उन्होंने भगवान विष्णु से प्रयागराज की सुरक्षा के लिए उनके बारह स्वरूपों की स्थापना की थी। तभी से यहां भगवान विष्णु की उपासना की जाती है।
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