सिरसा के वरिष्ठ साहित्यकार डा. ज्ञानप्रकाश पीयूष का राजस्थान में सम्मान

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सिरसा के वरिष्ठ साहित्यकार डा. ज्ञानप्रकाश पीयूष का राजस्थान में सम्मान

 


choptaplus : हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए विख्यात सिरसा के वरिष्ठ साहित्यकार डा. ज्ञानप्रकाश पीयूष को 5 और 6 जनवरी 2025 को राजस्थान के श्रीनाथद्वारा (उदयपुर) में आयोजित राष्ट्रीय बाल साहित्यकार सम्मान समारोह में सम्मानित किया गया। यह आयोजन हिंदी पुरोधा और राष्ट्रभाषा सेनानी साहित्य वाचस्पति श्री भगवती प्रसाद देवपुरा की स्मृति में आयोजित किया गया था। इस सम्मान समारोह ने न केवल डा. पीयूष के साहित्यिक योगदान को सराहा, बल्कि बाल साहित्य के महत्व और उसकी वर्तमान आवश्यकता पर भी विचार प्रस्तुत किए गए।


समारोह का उद्देश्य और महत्व

यह कार्यक्रम साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा द्वारा आयोजित किया गया, जो कि हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार और बाल साहित्य के संवर्धन के लिए समर्पित एक प्रमुख साहित्यिक मंच है। इस आयोजन का उद्देश्य हिंदी भाषा और साहित्य को एक नई दिशा प्रदान करना था। इसके अलावा, बच्चों के साहित्य पर विशेष ध्यान दिया गया, क्योंकि बाल साहित्य की भूमिका बच्चों की सोच और मानसिक विकास में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है।


इस कार्यक्रम का आयोजन हिंदी के महान साहित्यकार भगवती प्रसाद देवपुरा की स्मृति में किया गया, जिन्होंने राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार और बाल साहित्य के संवर्धन के लिए जीवनभर काम किया। उनके योगदान को याद करते हुए, इस समारोह में उनके सपनों को साकार करने के लिए विभिन्न साहित्यकारों को सम्मानित किया गया।

डा. ज्ञानप्रकाश पीयूष का योगदान

डा. ज्ञानप्रकाश पीयूष, जो सिरसा के एक प्रसिद्ध साहित्यकार हैं, हिंदी साहित्य के क्षेत्र में विशेष पहचान रखते हैं। उनके कार्यों ने न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण योगदान दिया है, बल्कि उनके लेखन ने समाज में जागरूकता और संवेदनशीलता की भावना को भी प्रेरित किया है। डा. पीयूष का साहित्य मानवता, सामाजिक बदलाव और समाज में व्याप्त असमानताओं के खिलाफ एक सशक्त आवाज है।


समारोह के पहले दिन के पहले सत्र में डा. पीयूष ने बाबू भगवती प्रसाद के अनुशासन के अप्रतिम प्रतिमान पर विचार प्रस्तुत किए। इस सत्र में उन्होंने बताया कि किस प्रकार बाबू भगवती प्रसाद ने अपने जीवन में अनुशासन और मेहनत के माध्यम से हिंदी भाषा और साहित्य को एक नई दिशा दी। इसके बाद, दूसरे सत्र में उन्होंने बाल साहित्य की आज की आवश्यकता पर विचार किया। उनका मानना था कि बच्चों के साहित्य को समाज में बदलाव लाने के लिए एक सशक्त औजार के रूप में प्रयोग किया जा सकता है, जो बच्चों की सोच को विकसित करने के साथ-साथ उन्हें नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों की ओर प्रेरित करता है।


सम्मान और उपाधियां

समारोह के दौरान, संस्था के प्रधानमंत्री श्याम प्रकाश देवपुरा ने डा. पीयूष को उनके साहित्यिक योगदान के लिए शाल, अंगवस्त्र, उत्तरीय, मोतियों की माला, श्रीफल, मेवाड़ी पगड़ी और श्रीनाथजी का प्रसाद प्रदान किया। इसके अलावा, उन्हें एक मनोहर तस्वीर और बाल साहित्य भूषण मानद उपाधि पत्र से भी सम्मानित किया गया। यह सम्मान डा. पीयूष के साहित्यिक योगदान को सराहते हुए उन्हें प्रदान किया गया।

समारोह में शिरकत करने वाले साहित्यकारों को भी उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया। विभिन्न प्रदेशों से आए साहित्यकारों को विभिन्न मानद उपाधियां और सम्मान सूचक उपकरण प्रदान किए गए। यह सम्मान समारोह भारतीय संस्कृति और साहित्य के प्रति सम्मान और निष्ठा को प्रकट करने का एक बड़ा अवसर था।


दूसरे दिन का कार्यक्रम

7 जनवरी को समारोह का समापन किया गया, जिसमें बाकि साहित्यकारों का सम्मान और उनकी पुस्तकों का विमोचन किया गया। यह दिन भी साहित्यकारों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर था, क्योंकि उनकी कड़ी मेहनत और साहित्यिक योगदान को समाज के सामने लाने का यह एक मंच था। समापन समारोह में राष्ट्रभाषा गान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ, जो इस बात का प्रतीक था कि हिंदी भाषा का सम्मान और प्रसार भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। श्यामप्रकाश देवपुरा ने इस समापन समारोह का संचालन किया और साहित्यकारों को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए धन्यवाद दिया।


मांड कलाकारों का योगदान

समारोह को और भी भव्य और आकर्षक बनाने के लिए मांड कलाकारों द्वारा विभिन्न संगीतमय प्रस्तुतियाँ दी गईं। इन प्रस्तुतियों ने समारोह में एक विशेष रंग भर दिया और आगंतुक साहित्यकारों ने इन्हें मुक्त कंठ से सराहा। मांड कला राजस्थान की एक प्रमुख कला है, जो भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। इस कला के माध्यम से समारोह में एक अद्वितीय आभा और आकर्षण था, जो सभी उपस्थित लोगों के दिलों को छू गया।


भगवती प्रसाद देवपुरा का योगदान

भगवती प्रसाद देवपुरा हिंदी भाषा के महान सेनानी और बाल साहित्य के प्रेरक थे। उन्होंने अपने जीवन के सबसे बेहतरीन वर्षों को हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार में समर्पित किया। उनका सपना था कि हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में पूरे देश में सम्मान प्राप्त हो, और बाल साहित्य के माध्यम से बच्चों को संस्कार और नैतिक शिक्षा दी जाए। उनके इस महान कार्य को उनके सुपुत्र श्यामप्रकाश देवपुरा ने पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ आगे बढ़ाया।


समापन

यह साहित्यिक समारोह न केवल हिंदी साहित्य के सम्मान का प्रतीक था, बल्कि यह बाल साहित्य के महत्व और आवश्यकता को समझाने का एक बड़ा प्रयास था। इस प्रकार के आयोजन साहित्य की दुनिया में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद करते हैं और साहित्यकारों के कार्यों को समाज के सामने लाने का एक अहम माध्यम बनते हैं। डा. ज्ञानप्रकाश पीयूष जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों के योगदान को स्वीकार कर, उनके कार्यों को महत्व देना, न केवल उनके लिए, बल्कि समग्र साहित्य जगत के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है।

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