हिंदी साहित्य : कृष्णभक्त और कवयित्री मीराबाई पर निबंध ।

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हिंदी साहित्य : कृष्णभक्त और कवयित्री मीराबाई पर निबंध ।


मीराबाई (1498-1547) एक महान कृष्णभक्त और कवयित्री थीं, जिनकी भक्ति और कविताएँ भारतीय संस्कृति में अमूल्य धरोहर हैं। उनका जन्म राजस्थान के पाली जिले के कुड़की गांव में हुआ था, और उनका विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ था।


 उनके पति, महाराजा भोजराज, 1518 में दिल्ली सल्तनत से युद्ध में घायल हो गए थे और 1521 में उनकी मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु के बाद, मीरा ने राजसी जीवन को छोड़ दिया और कृष्ण भक्ति में लीन हो गईं।

मीराबाई का जीवन बहुत संघर्षों से भरा हुआ था। उनके परिवार और ससुराल वालों ने कई बार उनकी हत्या करने की कोशिश की, लेकिन वह हर बार चमत्कारी तरीके से बच निकलीं। 


एक बार, उनके ससुराल वालों ने उन्हें विष का प्याला भेजा, लेकिन वह इससे प्रभावित नहीं हुईं और विष अमृत में बदल गया। इसी तरह, एक अन्य घटना में उन्हें डूबने के लिए कहा गया, लेकिन वह पानी पर तैरती रहीं। इन घटनाओं से मीराबाई की भक्ति और विश्वास और भी मजबूत हुआ।

मीरा का जीवन और उनकी भक्ति केवल कृष्ण के प्रति उनके अनन्य प्रेम का उदाहरण नहीं है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि उन्होंने समाज की परवाह किए बिना अपनी आस्था और विश्वास को पूरी तरह से निभाया।


 वह समाज के विरोध और आलोचनाओं से प्रभावित हुए बिना अपनी कृष्ण भक्ति को पूरी निष्ठा से निभाती रहीं। 


मीरा का यह दृढ़ विश्वास था कि कृष्ण ही उनके पति हैं और वह उन्हीं के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करेंगी। उन्होंने अपने जीवन को कृष्ण की सेवा और भक्ति में समर्पित कर दिया।

मीराबाई की कविताएँ और भक्ति गीत भी उनकी गहरी कृष्णभक्ति को दर्शाते हैं। उनकी रचनाएँ मुख्य रूप से राजस्थानी और हिंदी में थीं, और इन्हें आज भी बड़े प्यार और श्रद्धा के साथ गाया जाता है। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में "पायोजी मैंने राम रतन धन पायो" शामिल है, जो आज भी भक्तों के बीच लोकप्रिय है।


 उनकी कविताएँ गेय पदों के रूप में होती थीं, जो कृष्ण के प्रति उनके प्रेम और भक्ति की अभिव्यक्ति करती हैं। इन पदों में कृष्ण के प्रति निस्वार्थ प्रेम, श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत समावेश है।

मीराबाई की भक्ति में अद्भुत रहस्यवाद और निर्गुण मिश्रित सगुण पद्धति का दर्शन होता है। उन्होंने अपने भक्ति गीतों के माध्यम से कृष्ण के साथ अपने संबंधों को एक विशिष्ट रूप में प्रस्तुत किया। उनकी भक्ति में न केवल धार्मिक पहलू था, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक धारा को भी प्रभावित करने वाली थी। 


उनके समय में भारतीय समाज में महिला के स्थान को लेकर कई मुद्दे थे, लेकिन मीरा ने अपने कार्यों और भक्ति के माध्यम से यह सिद्ध कर दिया कि भक्ति और प्रेम में कोई भेदभाव नहीं होता।

उनकी कविताएँ और भक्ति गीत न केवल उनकी आस्था को व्यक्त करते हैं, बल्कि उन्होंने भक्ति आंदोलन में एक नया मोड़ भी लाया। 


मीराबाई की रचनाएँ सिख धर्म के साहित्य में भी शामिल हैं, जहाँ उनका योगदान महत्वपूर्ण माना गया है। वह सिख धर्म के ग्रंथों में भी संकलित हैं, और उनकी कविता को गुरु गोबिंद सिंह ने महत्व दिया।

मीराबाई का जीवन और उनकी कविताएँ आज भी भारतीय समाज में प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका जीवन यह सिद्ध करता है कि भक्ति और विश्वास व्यक्ति को किसी भी कठिनाई या बाधा से ऊपर उठने की शक्ति देते हैं। मीरा का अद्भुत जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर दिल में सच्चा प्रेम और विश्वास हो, तो कोई भी कठिनाई हमें अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकती।

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