हिंदी न्यूज :भक्ति काल

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हिंदी न्यूज :भक्ति काल

 



भक्ति काल हिंदी साहित्य के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण युग है, जिसे हिंदी साहित्य का स्वर्णकाल भी कहा जाता है।


 इस युग की शुरुआत लगभग 1375 विक्रमी से मानी जाती है और इसका अंत 1700 विक्रमी में होता है। 


इसे हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ युग इसलिए कहा गया है क्योंकि इस समय की काव्य रचनाओं में भक्ति भावना, सामाजिक चेतना और आध्यात्मिक अनुभव का गहरा समावेश मिलता है।


आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस युग को "भक्ति काल" नाम दिया, जबकि हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इसे "लोक जागरण" का युग कहा। दक्षिण भारत में भक्ति आंदोलन का प्रारंभ आलवार भक्तों से हुआ।



 आलवार भक्त सामाजिक रूप से पिछड़ी मानी जाने वाली जातियों से भी थे, परंतु उनकी भक्ति और आध्यात्मिक गहराई ने समाज को प्रेरित किया।


आलवार भक्तों के बाद दक्षिण में रामानुजाचार्य जैसे आचार्यों ने भक्ति परंपरा को आगे बढ़ाया। रामानुजाचार्य की परंपरा में ही रामानंद का उदय हुआ, जिनका व्यक्तित्व असाधारण था।



 उन्होंने भक्ति को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया और अपने समय के सबसे प्रभावशाली आचार्य माने गए।


भक्ति काल में तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई और कबीर जैसे महान कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से भक्ति और सामाजिक चेतना को जन-जन तक पहुँचाया। इस युग की कविताएँ आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।

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