1. सिनेमा समाज का प्रतिबिंब है
जयदीप ने सही कहा कि "हम सिनेमा समाज से बनाते हैं, समाज से सिनेमा नहीं बनता।" सिनेमा अक्सर वही दिखाता है जो समाज में पहले से हो रहा है। लेखकों और निर्देशकों का काम है समाज की हकीकत को पर्दे पर दिखाना, चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक।
2. प्रेरणा या बहाना?
यह सही है कि जो लोग गलत कार्य करते हैं, वे केवल फिल्मों से प्रेरित नहीं होते। उनके अंदर की प्रवृत्ति पहले से मौजूद होती है। सिनेमा महज एक बहाना बन सकता है, लेकिन किसी के मूल स्वभाव और सोच को पूरी तरह से बदलना मुश्किल है।
3. सिनेमा की सीमित भूमिका
सिनेमा का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन है। यह सही है कि सिनेमा लोगों को सोचने और समझने का एक नया नजरिया दे सकता है, लेकिन यह उनकी पूरी जीवनशैली नहीं बदल सकता। अगर रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ इंसान को सीखने और सही रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित नहीं कर सके, तो मिर्जापुर या कोई और फिल्म यह काम कैसे करेगी?
4. समाज की जिम्मेदारी
जयदीप ने यह भी सही कहा कि 140 करोड़ लोगों की जिम्मेदारी सिनेमा पर डालना अनुचित है। यह समाज और परिवार की जिम्मेदारी है कि वह अपने मूल्यों को बनाए रखें। अगर कोई इंसान बुराई करता है, तो वह केवल फिल्मों के कारण नहीं करता, बल्कि उसकी परवरिश, माहौल और परिस्थितियां भी उसमें भूमिका निभाती हैं।
मेरा विचार
सिनेमा समाज को प्रेरित करने का एक माध्यम हो सकता है, लेकिन इसे समाज की सारी समस्याओं का कारण मानना गलत है। बदलाव की असली शुरुआत इंसान के परिवार, शिक्षा और सामाजिक माहौल से होती है। हां, सिनेमा समाज पर प्रभाव डालता है, लेकिन वह समाज के मूल को पूरी तरह से बदलने में सक्षम नहीं है।
आपका क्या मानना है? क्या आपको लगता है कि सिनेमा को दोष देना सही है, या जयदीप की बातों से आप सहमत हैं?
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