महाकुंभ नहीं जा पा रहे? इन मंत्रों के साथ करें स्नान, घर में पाएं गंगा स्नान का पुण्य!

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महाकुंभ नहीं जा पा रहे? इन मंत्रों के साथ करें स्नान, घर में पाएं गंगा स्नान का पुण्य!





धार्मिक आस्था और आध्यात्मिकता का केंद्र, महाकुंभ, प्रयागराज में संगम तट पर पूरे वैभव के साथ मनाया जा रहा है। परंतु हर व्यक्ति के लिए वहां जाकर त्रिवेणी में स्नान करना संभव नहीं है। 


ऐसे में शास्त्र और पुराणों ने समाधान प्रस्तुत किया है, जिससे आप घर पर ही गंगा स्नान का पुण्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं।


गंगा नदी को भारतीय संस्कृति में पवित्रता, मोक्ष और शुद्धिकरण का प्रतीक माना गया है। 


यह कहा गया है कि गंगा माता ने स्वयं वचन दिया है कि जब भी कोई श्रद्धालु उन्हें स्मरण करेगा, वह उसे शुद्ध करने अवश्य आएंगी। स्नान के समय गंगा सहित अन्य पवित्र नदियों का आह्वान करने से आपका घर भी तीर्थक्षेत्र बन सकता है।


स्नान से पहले नदियों के आह्वान का यह मंत्र उच्चारित करें:
"गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु॥"


इस मंत्र के प्रभाव से स्नान का जल गंगाजल के समान पवित्र हो जाता है। इसके साथ ही, गंगा माता की स्तुति में यह श्लोक भी अत्यंत प्रभावी है:
"गंगां वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतं।
त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु मां॥"


यह श्लोक गंगा जल की पवित्रता और उसके पाप नाशक गुणों का वर्णन करता है। ऐसा माना जाता है कि गंगा का नाम लेने मात्र से पापों का क्षय होता है।


"गंगा गंगेति यो ब्रूयात, योजनानां शतैरपि।
मुच्यते सर्वपापेभ्यो, विष्णुलोके स गच्छति॥"


महत्वपूर्ण है कि स्नान के दौरान मन शुद्ध और भावनाएं ईमानदार हों। यह कहा गया है कि जब आप श्रद्धा और भक्ति के साथ इन मंत्रों का उच्चारण करते हैं, तो गंगा माता स्वयं आपके समीप आकर आपको पवित्र करती हैं।


गंगा के साथ-साथ अन्य नदियों, जैसे यमुना, सरस्वती, गोदावरी, कावेरी, नर्मदा आदि का स्मरण भी पुण्यकारी है। इन नदियों को "सप्तधारा" कहा गया है, और इनका ध्यान करते हुए स्नान का यह मंत्र उच्चारित करें:


"ॐ गंगे च यमुने चैव, कावेरी सरस्वति।
सर्वे तीर्थाः समुद्भूता, स्नानेन प्रीयतां नित्यं, सर्वपापप्रणाशिनः॥"

इसके अतिरिक्त, भगवान विष्णु का स्मरण भी शुद्धिकरण का साधन है। उनका यह मंत्र स्नान से पहले पढ़ा जा सकता है:


"ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥"


संत रविदास जी का "मन चंगा तो कठौती में गंगा" यह संदेश देता है कि पवित्रता और मोक्ष का मार्ग आपके शुद्ध मन और निष्ठा में निहित है।


 यदि आपका मन सच्चा है और आप दूसरों की भलाई के लिए समर्पित हैं, तो आपके घर का आंगन भी प्रयागराज के समान पवित्र हो सकता है। श्रद्धा और भक्ति से अपने आसपास का वातावरण शुद्ध करें और ईश्वर को स्मरण करते हुए आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करें।

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