महाकुंभ 2025 के पावन अवसर पर पूर्व बॉलीवुड अभिनेत्री ममता कुलकर्णी ने एक ऐतिहासिक और अद्भुत निर्णय लिया, जिसने सभी का ध्यान आकर्षित किया।
ममता कुलकर्णी ने अपने गृहस्थ जीवन को त्यागकर संन्यास का मार्ग अपनाया और अब वह संतों का जीवन व्यतीत करेंगी। किन्नर अखाड़े में दीक्षा लेकर उन्हें महामंडलेश्वर के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। उनका नया नाम श्रीयामाई ममतानंद गिरि रखा गया है।
संन्यास की प्रक्रिया
ममता कुलकर्णी ने महाकुंभ नगरी प्रयागराज में संगम तट पर पिंडदान करके अपने पुराने जीवन को विदा दिया।
शुक्रवार को वह किन्नर अखाड़ा शिविर पहुंचीं, जहां उनकी संन्यास दीक्षा की विधियां पूरी हुईं। यह प्रक्रिया करीब दो घंटे तक चली। इस दौरान कई प्रमुख संत और आचार्य, जैसे श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर गर्गाचार्य मुचकुंद और पीठाधीश्वर स्वामी महेंद्रानंद गिरि, मौजूद रहे।
दीक्षा के बाद ममता कुलकर्णी ने संत जीवन की शुरुआत की, जिसमें सांसारिक सुख और मोह को त्याग दिया गया। शाम को संगम तट पर धार्मिक अनुष्ठान के तहत उनका पिंडदान हुआ, जो संन्यास की महत्वपूर्ण प्रक्रिया मानी जाती है। इस दौरान हर-हर महादेव के जयकारों के साथ ममता का किन्नर अखाड़े में पट्टाभिषेक किया गया।
महामंडलेश्वर की उपाधि
पट्टाभिषेक कार्यक्रम किन्नर अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की अगुवाई में संपन्न हुआ। इसमें ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर के रूप में स्थापित किया गया।
इस दौरान उनका नाम बदलकर श्रीयामाई ममतानंद गिरि रखा गया। धर्मध्वजा के नीचे उन्हें यह उपाधि दी गई, जो अखाड़े में उनकी आधिकारिक स्थिति और धर्मकार्य में उनके योगदान को दर्शाती है।
एक नई दिशा
ममता कुलकर्णी के इस कदम ने न केवल उनके जीवन में एक नया अध्याय जोड़ा है, बल्कि समाज को यह संदेश भी दिया कि जीवन में किसी भी समय बदलाव संभव है।
एक समय पर ममता बॉलीवुड की चर्चित अभिनेत्री थीं, जिन्होंने कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया। लेकिन अब उन्होंने सांसारिक मोह-माया को त्यागकर अध्यात्म की राह चुनी है।
कुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों में संन्यास दीक्षा और महामंडलेश्वर पद की प्रक्रिया अत्यंत पवित्र और अनुशासित होती है। किन्नर अखाड़ा, जिसे समाज में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है, में दीक्षा लेना और वहां अपनी सेवा देना एक बड़ी जिम्मेदारी का संकेत है।
समाज और धर्म में योगदान
ममता कुलकर्णी का यह निर्णय केवल उनके व्यक्तिगत जीवन का नहीं, बल्कि धर्म और समाज में उनकी नई भूमिका का परिचायक है। किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने इस कदम को सराहा और इसे समाज में समानता और धर्म की शक्ति का उदाहरण बताया।
ममता कुलकर्णी का यह रूपांतरण न केवल महाकुंभ 2025 का मुख्य आकर्षण बना, बल्कि यह दिखाता है कि धर्म, अध्यात्म और समाज सेवा के प्रति समर्पण किसी भी समय संभव है।
उनके इस साहसिक निर्णय ने उन्हें एक नई पहचान दी है, जो उनके जीवन के नए अध्याय का शुभारंभ है।
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