sociology: प्रवासन का अर्थ है भौगोलिक क्षेत्र में पशुओं और पक्षियों जैसे जीवो का संचालन ।
यह एक स्थान से दूसरे स्थान को, व्यक्तिगत रूप से आवास समूहों में , लोगों के संचलन की और भी संकेत करता है। प्रवासन का तद नुसार अर्थ हुआ आवास का परिवर्तन।
प्रवासन दूरी दिशा एवं अवधि महत्त्वपूर्ण नहीं होती, फिर भी इन तीनों में से कोई भी कारक किसी देश में प्रवासन की प्रकृति को पुनर्परिभाषित करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
प्रवासन के प्रकारः प्रवासन विभिन्न प्रकार के होते हैं:
चक्रीय अथवा प्रचल प्रवासनः लोगों का आवागमन जिसमें महज निवास को अस्थई परिवर्तन शामिल हो, उसे चलवासिता अथवा चारागाही खानाबदोशी कहा जाता है।
यदि लोगों का यह संचलन को नियत बिंदुओं के बीच उनके मवेशियों, भेडों बकरियों एवं दुधारू पशु के साथ होता है तो इसे ऋतु प्रवास (transhumance) कहा जाता है। खेतों में काम करने वालों का आवागमन भी एक प्रकार का चक्रीय प्रवसन है क्योंकि वे फसल पकने की ऋतु में ही आते हैं।
कुछ प्रवासन दबाव कारकों की वजह से होते हैं जबकि अन्य खिंचाव कारकों के प्रति अनुक्रिया की वजह से। असाधारण परिस्थितियों में लोग प्रवासन के लिए बाह्य होते।
उदाहरण के लिए, प्राकृतिक आपदाएँ, जैसे बाढ़, सूखा, दावानल, पहाड़ी क्षेत्रों में हिमधाव और भूकंप आदि लोगों को अपनी जान बचाने के लिए अपने घरों से सुरक्षित स्थानों पर भाग जाने के लिए बाध्य करते हैं।
आंतरिक एवं बाहरी (अंतर्राष्ट्रीय) प्रवासनः जब लोग अपने जन्म/निवास/अधीवाद के भीतर ही प्रवास करते हैं तो इसे आंतरिक प्रवासन कहा जाता है। आंतरिक शब्द से यहाँ अर्थ गृह-प्रदेश अर्थात् अपने ही देश की सीमाओं के भीतर आवागमन। जब लोग एक देश से
दूसरे देश की ओर आवागमन करते हैं तो इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन कहा जाता है।
आदिम अथवा आरंभिक प्रवासनः प्रारंभिक प्रवासन, विशेष रूप से प्राग्ऐतिहासिक एव आरंभिक इतिहास के काल में, एक प्रकार के यादृच्छिक या बेतरतीब आवागमन थे, न कि कोई नियोजन प्रवासन। लोग एक प्रकार की घुमन्तु ललक के कारण अन्यत्र जाते थे। परंतु वे विश्वभर में महाद्वीपों को आबाद करने के लिए उतर्दयी थे ।
बलात् अथवा अभिप्रेरित प्रवासनः जब जन अथवा जनसमूह सूखा महामारियों, युद्ध ,ग्रह युद्ध अथवा आतंकित करती तानाशाही शासन-व्यवस्थाओं से उत्पन्न बर्बादी से बचने के लिए अपने गृह-प्रदेश अथवा स्वदेश को छोड़ने का फैसला लेते हो तो इसे बलात् प्रवसन (Forced migration) कहा जाता है।
द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व हिटलर के अधीन जर्मनी नाजीवादी राज्य व्यवस्था द्वारा जारी उत्पीड़न से पचने के लिए बड़ी संख्या में लोगों ने प्रवास किया । जब कोई राज्य या देश अपने जनसमुदाय के किसी हिस्से को देश से बाहर चले जाने को बाध करता है जो कि चांछनीय न हो, तो इसे बलात् अथवा अभिप्रेरित प्रवासन कहा जाता है।
शरणार्थी स्थानांतरणः इतिहास में बीता हमेशा पुराना नहीं होता। वर्तमान जगत में भी लोग उत्पीड़न एवं आसन्न मृत्यु से बचने के लिए अपने घरों एवं चूल्हों को छोड़ते और एक देश से दूसरे देश पलायन करते देखे जा सकते हैं।
वे प्रायः पड़ोस के देशों में शरण लेते हैं। वस्तुतः इन दिनों शरणार्थियों देशांतरण इतने आम है कि संयुक्त राष्ट ने शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए एक विशेष कोष बना दिया है। तथाकथित बिहारी मुसलमान जो 1947 में ब्रिटिश भारत के विभाजन के तत्काल पश्चात् पूर्वी पाकिस्तान चले गए थे, आज 62 वर्ष बीत जाने पर भी शिविरों में ही रह रहे हैं।
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