SOCIOLOGY: माइकल ओमी और हावर्ड विनैन्ट की पुस्तक "अमेरिका में प्रजातीय संगठन" में वे प्रजातीय और संजातीयता (ethnicity) के बीच के अंतर और उनके सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभावों पर विचार करते हैं।
वे बताते हैं कि इन दोनों अवधारणाओं को एक दूसरे के स्थान पर उपयोग करना सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से हानिकारक हो सकता है। ओमी और विनैन्ट का यह तर्क है कि हमें प्रजातीयता और संजातीयता के बीच के संबंध को ठीक से समझना चाहिए और इस अंतर को पहचाने बिना सामाजिक संरचना का अध्ययन अधूरा रहेगा।
प्रजातीयता और संजातीयता का परिभाषा
प्रजातीयता (race) और संजातीयता (ethnicity) दो अलग-अलग सामाजिक और सांस्कृतिक श्रेणियाँ हैं, लेकिन इन्हें अक्सर एक दूसरे के स्थान पर इस्तेमाल किया जाता है।
प्रजातीयता सामान्यतः जैविक विशेषताओं जैसे त्वचा का रंग, चेहरा, और शारीरिक आकार पर आधारित होती है, जबकि संजातीयता समाज के भीतर साझा सांस्कृतिक पहचान, भाषा, धार्मिक प्रथाओं, इतिहास, और पारंपरिक जीवनशैली से संबंधित होती है।
माइकल ओमी और हावर्ड विनैन्ट के अनुसार, प्रजातीयता का निर्धारण समाज में ‘दिखाई देने वाली’ शारीरिक विशेषताओं पर आधारित होता है, जबकि संजातीयता एक समूह की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान से जुड़ी होती है।
वे यह भी मानते हैं कि दोनों अवधारणाएँ एक दूसरे से जटिल रूप से जुड़ी हुई हैं, लेकिन इनका अंतर समझना सामाजिक व्यवस्था और भेदभाव को समझने के लिए आवश्यक है।
प्रजातीयता और संजातीयता का ऐतिहासिक संदर्भ
अमेरिका में प्रजातीयता और संजातीयता का सवाल विशेष रूप से जटिल है। अमेरिका का इतिहास नस्लीय भेदभाव, गुलामी और जातीय संघर्षों से भरा हुआ है।
अफ्रीकी अमेरिकियों, मूल अमेरिकियों, और लैटिनो जैसे समूहों की पहचान अक्सर प्रजातीयता के आधार पर बनाई जाती है, जबकि उनके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अनुभवों को नजरअंदाज किया जाता है।
ओमी और विनैन्ट का कहना है कि अमेरिकी समाज ने प्रजातीयता को सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान से ज्यादा एक जैविक पहचान के रूप में देखा है, और यही कारण है कि प्रजातीय समूहों के बीच ऐतिहासिक भेदभाव को समझने में कठिनाई होती है।
वह यह भी बताते हैं कि जब हम प्रजातीयता और संजातीयता को एक जैसे मान लेते हैं, तो हम उन सामाजिक प्रक्रियाओं और संघर्षों को नजरअंदाज करते हैं जो इन समूहों की पहचान बनाने में काम करते हैं।
उदाहरण के लिए, अफ्रीकी अमेरिकी समुदाय की पहचान न केवल उनके शारीरिक लक्षणों के कारण बनती है, बल्कि उनका ऐतिहासिक अनुभव, सांस्कृतिक धरोहर और अमेरिका में उत्पीड़न के साथ उनका संघर्ष भी महत्वपूर्ण है।
इसी तरह, लैटिनो समुदाय की पहचान केवल उनके प्रजातीय लक्षणों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि उनके सांस्कृतिक और भाषाई विविधताओं पर भी आधारित है।
संजातीयता और प्रजातीयता में अंतर का महत्व
ओमी और विनैन्ट का यह तर्क है कि यदि हम संजातीयता और प्रजातीयता के बीच अंतर को पहचानते हैं, तो हम सामाजिक संघर्षों और भेदभाव को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।
अगर हम इन दोनों अवधारणाओं को एक जैसा मानते हैं, तो यह हमारी सामाजिक नीतियों और राजनीतिक रणनीतियों को भ्रमित कर सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि हम यह मानते हैं कि किसी समूह की प्रजातीय पहचान उसकी सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी होती है, तो हम उस समूह के भीतर के विविधताओं और अंतर को नजरअंदाज कर सकते हैं।
यह विशेष रूप से अमेरिका जैसे बहुसांस्कृतिक समाज में महत्वपूर्ण है, जहां विभिन्न जातीय समूह एक दूसरे के साथ रहते हैं, लेकिन उनके अनुभव अलग-अलग होते हैं।
ओमी और विनैन्ट यह कहते हैं कि हमें इस अंतर को पहचानने के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से गहरी समझ विकसित करनी होगी।
सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण
ओमी और विनैन्ट का यह भी कहना है कि प्रजातीय और संजातीय समूहों को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, सरकारें और राजनीतिक दल किसी विशेष जातीय या प्रजातीय समूह को अपने पक्ष में लाने के लिए उनकी सांस्कृतिक पहचान का उपयोग कर सकते हैं। यह रणनीति कभी-कभी समुदायों के बीच विभाजन पैदा कर सकती है और किसी एक समूह को अन्य से अधिक प्रमुखता देने का कारण बन सकती है।
राजनीतिक दृष्टिकोण से, ओमी और विनैन्ट का कहना है कि यदि हम प्रजातीयता और संजातीयता के बीच के अंतर को सही तरीके से समझते हैं, तो हम उन नीतियों को बेहतर तरीके से डिज़ाइन कर सकते हैं जो विभिन्न समूहों के अधिकारों और जरूरतों को मान्यता देती हैं।
उदाहरण के लिए, यदि सरकार यह पहचानती है कि अफ्रीकी अमेरिकी समुदाय की पहचान न केवल उनकी प्रजातीयता पर आधारित है, बल्कि उनके सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक अनुभवों पर भी निर्भर है, तो वह समूह के लिए अधिक प्रभावी नीतियाँ बना सकती है।
संजातीय समूहों के निर्माण में सतर्कता
ओमी और विनैन्ट यह भी बताते हैं कि संजातीय समूहों का निर्माण कभी-कभी भ्रामक हो सकता है।
वे यह सुझाव देते हैं कि हमें यह समझना चाहिए कि संजातीयता और प्रजातीयता में दोहराव नहीं है, बल्कि यह दोनों अलग-अलग और जटिल धाराएँ हैं जो किसी समूह की पहचान को आकार देती हैं।
उदाहरण के लिए, जब हम किसी समूह को केवल उसकी प्रजातीय पहचान से परिभाषित करते हैं, तो हम उसकी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक पहचान को नजरअंदाज कर सकते हैं।
इसलिए, संजातीय समूहों का निर्माण करते समय हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विभिन्न समूहों की पहचान केवल जैविक लक्षणों से नहीं, बल्कि उनके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अनुभवों से भी बनती है।
ओमी और विनैन्ट का यह सुझाव है कि हमें समूहों के निर्माण में सतर्क रहना चाहिए और उन समूहों के भीतर के विभिन्नता और भिन्नताओं का सम्मान करना चाहिए।
निष्कर्ष
माइकल ओमी और हावर्ड विनैन्ट की पुस्तक में प्रजातीयता और संजातीयता के बीच के अंतर को समझने के लिए एक गहरी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
उनका यह तर्क है कि इन दोनों अवधारणाओं को अलग-अलग समझना हमारे समाज के विविधताओं को सही ढंग से समझने और भेदभाव को समाप्त करने में मदद कर सकता है।
अमेरिका जैसे बहुसांस्कृतिक समाज में यह समझ महत्वपूर्ण है, जहां विभिन्न जातीय और प्रजातीय समूह अपनी अलग-अलग पहचान और अनुभवों के साथ रहते हैं। इसलिए, हमें प्रजातीयता और संजातीयता के बीच अंतर को पहचानकर समाज में समानता और न्याय की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।
0 टिप्पणियाँ