Sociology: भारतीय मजदुर वर्ग की वर्तमान संरचना और स्वरूप पर चर्चा कीजिए।

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Sociology: भारतीय मजदुर वर्ग की वर्तमान संरचना और स्वरूप पर चर्चा कीजिए।

                  

उत्तर- बहुसख्यात्मक अर्थव्यवस्था और आदिकालीन संबंध के प्रभावों के कारण  भारत    मजदूर वर्ग के रूप में विविधता विद्यमान है। इन भिन्नताओं में सर्वोपरि भिन्नता है। भिन्न- भिन्न    मजदूरियाँ जो  मजदूर वर्ग के बीच विभाजनों का आधार भी थी। मजदूरी के आधार पर    चार     प्रकार के मजूदर है:


  (1)  पहला , वे श्रमिक   कारखाना क्षेत्र में स्थायी कर्मचारी है और जिन्हें परित मजदूरी मिलती है। 'परिवार मजदूर से हमारा अभिप्राय है कि श्रमिक से मिलने वाली मजदूरी इतनी होनी चाहिए कि उससे वह न केवल अपनी बल्कि आपने पास्नी एक सदस्यों की जरूरतों को पूरा कर सके व उनकी देख-रेख कर सके। ऐसे श्रमिक अधिकांशतः सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और पेटो रासायनिक समास्युटिकल्स, केनिकल्स और इंजीनियरिंग के आधुनिक क्षेत्रों में काम करते हैं।


(2) दूसरा, मजदूर वर्ग का एक बड़ा और प्रधान वर्ग है जिससे परिवार मजदूरी नहीं मिलती। इसके अंतर्गत वे श्रमिक आते हैं जो जूट कपड़ा उद्योग, चीनी और कागज जैसे थोड़े पुराने उद्योगों में काम करते हैं।



 यहाँ तक कि चाय बागान के स्थायी मजूदर भी इसी श्रेणी के अंतर्गत आते हैं क्योंकि मालिकों ने व्यक्त्तिगत मजदूर के लिए परिवार मजदूर के मानदंड को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया था।


(3) तीसरा, मजदूर वर्ग वह वर्ग है जो मजदूरी पैमाने पर सबसे नीचे है। ये ठेके पर काम करने वाला बड़ा जनसमूह है। उद्योगों में कभी-कभी आकस्मिक मजदूर के रूप में काम करने वाले मजदूर जिसमें भवन-निर्माण, ईंट-निर्माण शामिल है और अन्य आकस्मिक मजदूर है।

(4) चौथी जी के आते है जो इन सबसे नीचे है वे मजदूर की आरक्षित समुयाय है जो छूट-पुट व्यापार में छूट-पुट वस्तुओं के उत्पादन में कार्य करते हैं। इसमें कीवी लगाने से लेकर गूदड बीनना शामिल है।



 ये सामान्यतः अनौपचारिक सेक्टर में काम करते है और उत्तम जीविका के लिए पर्याप्त मजदूरी की इच्छा से काम करते है। 




अधिकांश मजदूरी की आजीविका जिन्हें परिवार मजदूरी नहीं मिलती का अभिप्राय है कि या तो मजदूर के अन्य गैर-पूँजीवादी सेक्टर से सहायता अतिरिक्त राशि के रूप में कम मिलता है या मजदूर और उसका परिवार अपनी खपत के न्यूनतम स्तर से भी कम कर देते हैं।



 इसका अभिप्राय भी यही है कि प्रति घर में एक से ज्यादा आजीविक अर्जक होता है और जैसा कि दास गुप्ता उल्लेख करते हैं कि पुरुष और स्त्रियों दोनों ही बागान या विनिर्भाव में कार्य करते है। 




इसी के साथ-साथ वे विविध प्रकार की कृषि गतिविधियों से अपनी आजीविका को भी अभिवृद्ध करते हैं।




 कृषि गतिविधियों में न केवल खेतीबाड़ी बल्कि मुर्गीपालन और दुग्ध उत्पादन की गतिविधियाँ शामिल है। यहाँ तक कि बागान में मजदूरों कोकृषि उत्पादन करने के लिए भूखंड दिए गए। 



ये अनुपूरक कृषि गतिविधियाँ हैं जो इन क्षेत्रों में मजदूरी को कम रखने में मदद करती है। इस अर्थ में मजदूरों द्वारा उत्पादन के पूँजीवादी-पूर्व संबंधों के अंतर्गत अनुपूरक गतिविधि पूँजीवादी क्षेत्र के लिए एक भेंट है।

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