(1) आत्म-नियंत्रण एवं आत्मसिद्धि :इसमें मेरी निजी इच्छाओं आदेश, सुदृद्दीकरण या इनके निराकरण पर मेरा काम करना शामिल है जो इस बात के साथ जुड़ा हुआ है कि क्या इसे करना मेरे लिए सही या अच्छा है।
यह एक जटिल धारणा है जिसकी जड़ें काम की स्वतंत्रता में निहित है। आधुनिक समय में इस किस्म का विकास लॉक, रूसो, कांत और हेगल के माध्यम से देखा जा सकता है।
यह हैरी फ्रैंकफर्ट और चार्ल्स टेलर के हाल ही के कार्य में दुबारा नजर आया है। हम इस विचार के आदी हैं कि हम आत्मनियंत्रण को दर्शाते हैं जब हम लालसा को रोकते है।
काम की स्वतंत्रता हमारी ऐसी योग्यता में शामिल है ताकि ऐसी इच्छाओं का मूल्यांकन किया जा सके जो हमें ऐसा काम करने के लिए उकसाती है और यह फैसला करने में सहायक होती है कि क्या इसकी पूर्ति की जाए या नहीं।
इस आधार पर स्वतंत्रता का प्रतिमान हमारी इच्छाओं के विरुद्ध जाता है जिन्हें हम सभी करना चाहते हैं या जिन्हें करना हम बेहतर समझते हैं।
(2) पितृसत्तावाद: मान लीजिए मैं आत्म नियंत्रण लागू करने के योग्य नहीं हूँ। मैं विकल्पों के पूर्ण मूल्य को शायद नहीं समझता।
उस बच्चे की तरह जो कड़वे स्वाद काली (लेकिन प्राण रक्षक) औषधि लेना पसंद नहीं करता। मुझे अपनी वास्तविक सचियों का नहीं पता।
ऐसी परिस्थितियों में समझदार अभिभावक तुनकमिजाज नहीं होगा। वह जबर्दस्ती औषधि देगा। शायद तब तुम्हारे लिए मुझ पर नियंत्रण कायम करना सही नहीं होगा कि मैं प्राप्त करने या कायम रखने के योग्य नहीं हूँ?
शायद स्वतंत्रता के लिए यह जरूरी नहीं कि मेरे ऊपर आज जो नियंत्रण कर सकतें हैं, वह आत्म नियंत्रण की मेरी खुद की शक्ति को कम कर देगा।
यह विचार विशेष रूप से कारगर है, जहाँ आपका पितृसत्तात्मक अंत क्षेप मेरे लिए स्वायत्त चयन की दशाएँ सृजित करता है जो मेरी निजी गतिविधियों को निष्फल कर देती है।
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