Sociology: सी . राइट . मिल्स के अनुसार शहरी आबादी को निम्नलिखित ढंग से स्तरबद्ध किया जा सकता है:
(क) Sociology: मध्यवर्ग की संकल्पना का वर्णन करते हुए भारत में मध्यवर्ग के उद्भभव तथा विकास पर टिप्पणी कीजिए।
(ख) दी गई सामाजिक श्रेणी या स्तर में सदस्यों को वं शानुक्रम अंतर्जातीय विवाह और पेशे संबंधी इतिहास। विषयपरक रूप में , सामाजिक सार के कोटि निर्धारित करने वाले के अनुसार तैयार किया जा सकता है,
(ग ) प्रत्येक व्याक्ति से कहा जा सकता है कि वह अपने लिए स्थिति निर्धारित करे , घ) इंटरव्यू लेने वाला अपने अंतर्जान के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति को श्रेणीबद्ध करे।
भारत में मध्य वर्गः बी.बी. मिश्रा के अनुसार ब्रिटिश शासन से पूर्व पूँजीवादी वृक्ष के प्रेरक संस्थानों की भारत में कमी नहीं थी।
ब्रिटिश पूर्व भारत भारतीय शिल्प उद्योग तथा व्यावसायिक विशेषज्ञता तथा अतिरिक्त रूप से अलग व्यापारी वर्ग का साक्षी रहा है।
श्रमिक शक्ति पूर्णतया धन-शाक्ति बनी रही जिसे किसी भी राजनीतिक प्राधिकरण या सैन्य प्रकृति से समर्थन प्राप्त नहीं था।
लोगों और नए शासकों के बीच संपर्क सूत्र के रूप में काम कर रहे मध्यस्थ वर्गों के उभरने के फलस्वरूप ब्रिटिश शासन भारत में आया। मिश्रा के मत में मौलिक रूप से भारत में सामाजिक सबंधों और वर्ग-संरचना के बीच एक क्रांति थी।
उद्भवशील मध्यस्थ वर्ग मध्य वर्ग ही था जिससे विदेशी शासन की प्रगति के साथ मजबूती और संपन्नता में वृद्धि होती रही। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी जिन व्यापार संबंधों का अनुसरण कर रही थी,
उन्हें स्थापित करके अग्रेज ने इस वर्ग के निर्माण का घरातल प्रदान किया। इसके अलावा, ब्रिटिश ने अपनी शैक्षिक नीति के एक हिस्से के रूप में देश के प्रशासन में अपनी सहायता के लिए अपने से तुलनीय एक वर्ग सृजित करने का अंग्रेजों ने प्रयास किया।
अंग्रेजों का लक्ष्य नए मूल्यों और विधियों का अनुकरण करने वाले वर्ग का निर्माण करना था न कि इन विधियों के मूल्यों का आरंभ करने वाले वर्ग का निर्माण करना था।
पवन के. वर्मा के मतानुसार अपने उद्भव और वृद्धि की परिस्थितियो से सरकारी कर्मचारियों, वकीलों, कॉलेज अध्यापकों और डॉक्टरों जैसे शिक्षित वर्ग के सदस्यों ने भारतीय मध्य वर्ग को निर्मित किया।
वर्मा की राय में इस मध्य वर्ग में अत्यधिक रूप से परंपरागत उच्च जातियों का प्रभुत्व था। अहमद और रेफील्ड का तर्क है कि अपने यूरोपीय प्रतिरूपों के कम से कम हिस्सों में भारतीय मध्य वर्ग के निर्माण में और उनके द्वारा इतिहास में अदा की गई
भूमिका में काफी घनिष्ट सहशचता हैं । अहमद और रेफील्ड का निष्कर्ष हैं कि 20 वीं शताब्दी के पारभ से ही भारतीय मध्य वर्ग ब्रिटिश शक्ति निरंतरता के प्रति एक गंभीर चुनोती बनकर खड़ा हुआ ।
यह राष्ट्रीय जागरुकता उत्पन्न करने और राष्ट्र के लोगों में एकता की भावना प्रदान करने के लिए एक साधनस्वरूप था।
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