Sociology: पहचान के निर्माण में एरिकसन के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।

Advertisement

6/recent/ticker-posts

Sociology: पहचान के निर्माण में एरिकसन के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।

 






एरिकसन मनोविज्ञान के क्षेत्र में प्रशिक्षित था । मूलतः वह बच्चों के मनौ विज्ञान विश्लेषक के रूप में कार्य करता था । 



वह अमेरिका में रहता था तथा एक यूरोपीय शरणारथी के रूप में एवं हिटलर की नीतियों तथा दूसरे विश्य युद्ध के अनुभवों ने उसके लेखन पर प्रभाव डाला । द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामों के कारण ही एरिकसन ने पहचान की धारणा का निर्माण शुरू किया । 


पचास और साठ के दशकों में प्रकाशित उसका अधिकांश लेखन बुद्धिजीवी समाज   तक ही सीमित रहा । 




1963 में उसकी पुस्तक बचपन और समाज का पुनः प्रकाशन हुआ और इस पुस्तक से उसे अत्यधिक लोकप्रियता मिली और सामान्य पाठकों में को स्वीकृति प्राप्त हुई ।



 उसका अत्यधिक महत्वपूर्ण योगदान महात्मा गांधी पर किया गया उसका अध्यन था जिससे उसको पुलिजर पुरस्कार और राष्टीय पुरस्कार प्राप्त था  1973 में उसे प्रतिष्ठित जैफरसन भाषण माला में मानविकी विषय पर भाषण देने के लिए   चुना गया जिसने उसे विचार प्रवर्तक बना दिया जैसे कि गिलीसन कहते हैं । 




उसके विचार     संस्कृतिक  महत्त्व की चीज बन गए। एरिकसन के अनुसार पहचान व्यक्ति के मूल में और उसकी सांप्रदायिक संस्कृति में निहित होती हैं ।   वह अपनी इस धारणा का , विकसित होती अमेरिकी पहचान  संदर्भ में, वर्णन करता है और लिखता है। 




'अमरीकी पहचान   निर्माण की प्रक्रिया व्यक्ति के   अहम् की पहचान का तब तक समर्थन करती प्रतीत होती है, जब तक वह स्वायत  और स्वतंत्र चयन की    निजी अभिश्चितता को संरक्षित रख सकती है। 



व्यक्ति अपने   आपको    यह समझाने में सक्षम होना चाहिए कि अगला कदम उसके ऊपर निर्भर करता है और  इस बात से उन्हे       कोई फर्क नहीं पड़ता कि  वह कहाँ है और किध र जा रहा है क्योंकि उसके पास   छोड़ने अथवा विपरीत दिशा  में मु ड़ने का अधिकार सदैव उसकी इच्छा के आधार पर उसके आधार   उसके पास   बना रहता है।




 इस देश में प्रवासी चलने की बात और सुस्त लोग रुके रहने की बात    सुनना   नाहीं चाहते क्योंकि प्रत्येक की जीवन शैली में कुछविरोधी तत्त्व एक सक्रिय विकल्प के   रूप में छुपे होते     है जिन्हें वह बहुत ही निजी और व्यक्तिगत निर्णय के रूप में मानता है। 



एरिकसन के     लेखों में राजनीतिक क्षेत्र को घेरती सामाजिक पहचान का निर्माण   केंद्र में रहा हैं । यद्यपि    उसका प्राथमिक ध्यान लड़कपन की    आयु में व्यक्तित्व के निर्माण पर   था व्यक्ति की पहचान की भावी   धारणा की परख भी करता था। उसके विचारों के अनुसार :    लड़क पन    ही प्रखर सकारात्मक अहम् की पहचान को अंतिम रूप से स्थापित करने की उम्र    हैं ।




       इसी समय में ही अपनी पहुँच के भीतर तक का भविष्य सिर तक जीवन योजना का एक  अंग    बन जाता है। ठीक उसी समय यह प्रश्न उठता है कि अपने पहले की अपेक्षाओं में भविष्य का     पूर्वानुमान लगाया गया था अथवा नहीं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ