पहचान एक सामाजिक रचना है तथा पहचान में बहुरूपता, विकल्प तथा तार्किकता नकारना दमन का सोत हो सकता है। पहचान के निर्माण में ऐसी सीमाओं का सामाजिक उत्पादन भी सम्मिलित है जो समावेशन तथा बहिष्कार की प्रक्रिया को प्रतिबिबित करते हैं।
चूकीं सामूहिक पहचान सामाजिक निर्माण का मसला है अतः इसकी सामाजिक आंदोलनों के रूपा तरण को प्रक्रिया में अनेक प्रकार से पुनर्रचना होती है। सामाजिक आंदोलन न सिर्फ नई सामा जिक पहचान को निर्मित करने में सहायक होते हैं, बल्कि इस पहचान के रूपांतरण के लिए व्यापक क्षेत्र भी प्रदान करते हैं।
लबे समय तक जारी रहने वाली आधारभूत लामबंदि में ने लिंग, जाति, किसान, नागरिक तथा राष्ट्रीय आदि को स्पष्ट करने तथा नवजीवन देने के लिए राह बनाई है।
पश्चिम बंगाल में किसान कामतापुरी आंदोलन तथा सीमित गैर-सरकारी संगठन सक्रियता का उसी तरह से हिस्सा रहे हैं जैसे कि उत्तर बंगाल में तथा आंध्र प्रदेश में अरैंक-विरोधी आंदोलन, माडीगा तथा धुडुम डेबा, तेलंगाना राज्यवादी आंदोलन, नागरिक स्वतंत्रता, किसान आदि आदोलन।
राजबंशियों ने एका अनुसूचित जाति के क्षेत्रीय, सांस्कृतिक, जातिगत, स्वायता के लिए कामता पुर आदोलन ने उत्तर बंगाल पृथक राज्य की माँग के साथ पैर घुसाने शुरू कर दिए है इन जिलो में कूच विहार , दार्जीलिंग उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजीकर में हुआ था। अब इर तथा मालदा को मिलाकर एक राज्य की माँग की जा रही है।
इस आदोलन को आर करने के लिए उत्तराखंड वल नामक एक क्षेत्रीय दल का गठन आआंदोलन को 1980 कामतापुर पीपुल्स पार्टी के नेतृत्व में गति मिली है। इस आंदोलन के दाल राजवशी अपनी सास्कृतिक तथा भाषाई पहवान के क्रमिक क्षरण तथा समाज में उनक आधिक सीमालीकरण के विरुद्ध प्रतिरोध कर रहे हैं।
उनका आरोप है कि उत्तर बंगाल को आर्थिक रूप से उपेक्षा की गई है तथा राजनीतिक रूप से यह पश्चिम बंगाल के कोलकाता स्थित राज्य प्रशासन द्वारा शातित है। इस आंदोलन ने आतंकवादी कामतापुरी मुक्ति संगठन के निर्माण के साथ नया मोड़ ले लिया है जिसने उत्तर बंगाल के विभिन्न भागों में वामपंथी कार्यकर्ताओं पर सामने से हमला करना आरंभ कर दिया है।
अर्थ इतिहास, भाषा, पारंपरिक सामाजिक
राजवंशियों का एक भाग, जो अर्थ इतिहास, भाषा, पारंपरिक सामाजिक र रचना, व्यवसाय तथा भूमि अधिकारों के संबंध में पहचान के लिए अधिक सचेत होते जा रहे है, इस आंदोलन का हिस्सा बन गए हैं। वेरोजगार शिक्षित युवक तथा स्कूलों से निष्कासित छात्र अन्य की अपेक्षा इस आंदोलन के साथ अपने जुड़ाव को व्यक्त करने में अधिक मुखर है।
नक्सलबाड़ी के एक युवक का कहना है हम अपनी ही भूमि पर सभी अवसरों से वंचित हैं। बाहरी लोगों के पास चाय के बागान सभी सरकारी सेवाएँ हटा दी गई है तथा भटियाओं, मारवाड़ियों, पंजाबियों द्वारा संचालित है जो ह हिकारत से देखते हैं तथा सभी व्यापारों पर स्वामित्व रखते हैं। ये हमारी भाषा, हम खान-पान की प्रवृत्तियों, हमारी वेशभूषा पर हँसते हैं। हमें अपनी भूमि पर उनकी भाषा में करनी पड़ती है।
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