Sociology: लैंगिक भेदभाव उन सामाजिक रूपों से निर्मित व सास्कृतिक रूप से निर्धारित उस भूमिका का उल्लेख करता है.
जिसे पुरुष व महिलाएँ अपने जीवन में निभाते हैं। यह एक संकल्पनात्मक साधन और इसका प्रयोग श्रम बाजारों और राजनीतिक संरचनाओं व घरो में पुरुष और महिलाओं के सबंधों के बीच दृष्टिगत होने वाली संरचनात्मक असमानताओं का उल्लेख करने के लिए किया जाता है।
लैंगिक भेदभाव का प्रयोग सभी क्षेत्रों और किसी भी निर्धारित समाज के सदर्भ में महिलाओं व पुरुषों की भूमिका, दायित्वों, बधनों और जरूरतों का विश्लेषण करने के लिए किन्या जाता है।
लैंगिक भेदभाव में भूमिकाएँ महत्त्वपूर्ण कारकों, श्रम विभाजन, परिवार में समाजीकरण की प्रक्रियाओं द्वारा स्थापित प्रतिथनों जाति, विवाह और सगोत्रता संगठन आदि कारकों के मध्य दरत्पर क्रिया के द्वारा निर्धारित होती है।
मार्क्स का यह मत है कि पूँजीवाद के विकसित होने के साथ-साथ मध्य वर्ग की उत्पत्ति हुई। कुछ विचारकों का मानना है कि बाजार संरचना के साथ उस अत्यधिक महत्त्वपूर्ण वर्ग का विकास हुआ, जिसके पास उत्पादन के अपने साधन नहीं है।
इस इकाई में लैंगिक भेदभाव पर आधारित सामाजिक स्तरीकरण के संबंध को स्पष्ट करने का प्रयात्त किया गया है।
लेगिक भेदभाव का अर्थ, जाति और वर्ग में क्षेत्रीय विभिन्नताओं के संबध में विचार प्रस्तुत किए गए है।
इस इकाई में भारत की विभिन्न जातियों और वर्ग के बीच संबंध को स्पष्ट रूप से समझाया गया है।
इसके साथ तालिकाओं के माध्यम से अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों जैसे सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों में, महिलाओं की सहभागिता की चर्चा करने का प्रयास किया गया है।
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