SOCIOLOGY: प्रजाति और संजातीयता के बीच के संबंधों का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए ।

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SOCIOLOGY: प्रजाति और संजातीयता के बीच के संबंधों का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए ।

 

  



SOCIOLOGY:  प्रजाति और संजातीयता (ethnicity) दोनों ही समाजशास्त्र और मानवविज्ञान में महत्वपूर्ण अवधारणाएं हैं, जो मानव समाज के विभिन्न समूहों के बीच अंतर और रिश्तों को समझने में मदद करती हैं। 




हालांकि दोनों शब्दों का उद्देश्य समाजों के वर्गीकरण को दर्शाना है, फिर भी इनमें बुनियादी अंतर होते हैं। इन दोनों के बीच के संबंधों को स्पष्ट करने के लिए, हम दोनों अवधारणाओं को अलग-अलग और तुलनात्मक रूप से देख सकते हैं।



प्रजाति (Race)

प्रजाति शब्द का इस्तेमाल शारीरिक और जैविक गुणों जैसे त्वचा का रंग, सिर की आकृति, बालों की बनावट आदि के आधार पर किया जाता है। यह अवधारणा प्राचीन समय से ही अस्तित्व में रही है, और इससे संबंधित अध्ययनों में मानवों को शारीरिक रूप से विभिन्न समूहों में विभाजित किया जाता है।



 हालांकि, जैविक दृष्टिकोण से मानव प्रजातियों में कोई बड़ा अंतर नहीं है, परंतु प्रजातिवाद (racism) ने ऐतिहासिक रूप से इन अंतर को भड़काने के लिए और उनके आधार पर भेदभाव करने के लिए इन श्रेणियों का इस्तेमाल किया।



संजातीयता (Ethnicity)

संजातीयता, दूसरी ओर, सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक पहलुओं पर आधारित है।



 इसमें भाषा, धर्म, रीति-रिवाज, परंपराएँ, और एक समूह की साझा ऐतिहासिक पहचान शामिल होती है। 



संजातीय समूह वे होते हैं, जो एक समान सांस्कृतिक धरोहर, रीति-रिवाजों और सामाजिक आस्थाओं को साझा करते हैं। इन समूहों का अस्तित्व किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र, एक विशेष भाषा या संस्कृति के द्वारा निर्धारित होता है, न कि शारीरिक गुणों के आधार पर।



प्रजाति और संजातीयता के बीच अंतर

  1. आधार:

    • प्रजाति: यह शारीरिक गुणों, जैसे त्वचा का रंग, रूप-रंग, आकार-प्रकार आदि पर आधारित है।
    • संजातीयता: यह सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भों पर आधारित है, जैसे भाषा, धर्म, रीति-रिवाज और एक साझा इतिहास।

  2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

    • प्रजाति: जैविक दृष्टिकोण से, मानवों के बीच कोई बड़ी प्रजातीय भिन्नता नहीं है, लेकिन ऐतिहासिक और सामाजिक दृष्टिकोण से इसे सांस्कृतिक मान्यताओं और भेदभाव के रूप में लागू किया गया है।
    • संजातीयता: यह सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से परिभाषित होती है, और इसका जैविक कोई आधार नहीं है।

  3. सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका:

    • प्रजाति: समाज में प्रजातिवाद के रूप में भेदभाव उत्पन्न कर सकता है, जहां एक प्रजाति को दूसरे से श्रेष्ठ या नीच माना जाता है। यह विभिन्न नस्लीय संघर्षों और असमानताओं का कारण बन सकता है।
    • संजातीयता: यह समूहों के बीच एक साझा पहचान, एकता और सांस्कृतिक गौरव को दर्शाती है, हालांकि यह भी कभी-कभी जातिवाद और भेदभाव के रूप में परिणत हो सकती है।
  4. इतिहास और विकास:

    • प्रजाति: प्रजाति का वर्गीकरण अक्सर यूरोपीय उपनिवेशवाद और दासता के दौरान किया गया, जहां मानवों को उनके शारीरिक रूप और उत्पत्ति के आधार पर विभाजित किया गया।
    • संजातीयता: संजातीयता का गठन एक समूह के सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं के आधार पर हुआ, जो समय के साथ विकसित हुआ और समाज के भीतर विभिन्न संजातीय समूहों की पहचान बनाई।

निष्कर्ष

प्रजाति और संजातीयता दोनों ही मानव समाज के वर्गीकरण और पहचान के तरीकों के रूप में कार्य करते हैं, लेकिन इन दोनों में बुनियादी अंतर है।


 प्रजाति शारीरिक गुणों पर आधारित है जबकि संजातीयता सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान पर निर्भर करती है।



 जहां एक ओर प्रजातिवाद समाज में भेदभाव और संघर्ष पैदा कर सकता है, वहीं संजातीयता का उद्देश्य एक समूह की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान को बनाए रखना होता है।




इसलिए, प्रजाति और संजातीयता के बीच का संबंध जटिल है और इसे समाजशास्त्र, मानवविज्ञान और राजनीति में विभिन्न दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है।

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