Sociology: जनजातियों में सामाजिक विभेदीकरण Social Differentiation among Tribes.

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Sociology: जनजातियों में सामाजिक विभेदीकरण Social Differentiation among Tribes.

 


       






         Sociology  :     सामाजिक विभेदीकरण स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाली    अल्पकालीन प्रक्रिया है। इसके अंतर्गत     विभिन्न व्यक्तियों या समूहों के बीच एक प्रकार का विभाजन पाया जाता है.



 जिसमें   उंच  -नीच या हीनता की भावना ही नहीं है। यह एक तटस्थ प्रक्रिया है। सामाजिक विभेदीकरण के परिणामों  को दो तरीकों से देखा जा सकता है 'भूमिकाओं की जटिलता और सम्बद्ध प्रतिस्थितियों    जिनमे     सामाजिक संस्थाएँ भी शामिल है. 




स्टेबिस (1987) "सामाजिक विभेदीकरण एक विस्तृत सामा जिक प्रक्रिया है जिसमें लोगों के बीच आयु, लिंग, व्यक्तिक्रम मानवजातीय और सामाजिक    विभेदी करण    की भूमिकाओं के आधार पर भेद  किया जाता है।



 जनजातियों तथा सरल समाजों में सामाजिक विभेदीकरण मुख्यत वंश, लिंग, आयु, स्थिति अथवा अनुक्रम पर आधारित है।



 जनजातियों में सामाजिक विभेदीकरण के ढाँचे सामाजिक तंत्र, परंपरा तथा आस्था पद्धतियों में परिवर्तनों के अनुसार एक-दूसरे से अलग होते हैं। उत्पत्ति की दृष्टि से सभी मनुष्य समान होते हैं। 




अतीत  में और वर्तमान समय में जितनी अवधारणाएँ उभरकर आती है, उन सबका स्थायी भाव यही कटु   सत्य है कि असमानताएँ मानव प्रकृक्ति में समाहित होती है। 




प्रस्तुत इकाई भारत में जन जातियों के विशिष्ट संदर्भ में सामाजिक विभेदीकरण को स्पष्ट करती है। 




इसके अंतर्गत सामाजिक विभेदीकरण की अवधारणा, परिभाषा एवं श्रेणीकरण का वर्णन किया गया है।




 साथ-साथ नाते दारी, वंश, लिंग, आयु, स्थान और वंशानुक्रम, व्यवसाय, शिक्षा, धर्म आदि के पश्चात् विभिन्न श्रेणियों  के अंतर्गत जनजाति के मध्य सामाजिक विभेदीकरण का अध्ययन किया गया है।


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