नवीन सामाजिक आंदोलन के भागीदारों की कोई स्पष्ट संरचनात्मक भूमिका नहीं होती है क्योंकि अक्सर उनका सामाजिक स्तर युवा , छात्र महिला, अल्पसंखाक, व्यावसायिक समूहों आदि के सप विचारित रहता है। नवीन सामाजिक आदोलन खडित विसरित तथा विकेंद्रीकृत होते हैं।
ये आंदोलन प्राथमिक रूप से सामाजिक होते है तथा राजनीतिक मुद्दों जैसे सत्ता हथियाने की बजाय सांस्कृतिक घेरे तथा सामाजिक -सांस्कृतिक मुद्दों पर समाज की लामबदी से अधिक सरोकार रखटे हैं । संगठना त्मक रूप को नवीन सामाजिक आंदोलनों को प्राचीन से विभेदित करने के मानक के रूप प्रयोग करना एक समस्या है।
इन आदोलनों का समान सरोकार सामाजिक समानता, वहनीय, विकास जीविका की सुरक्षा तथा सीमात लोगों को अधिकार देने, पर्यावरण की सुरक्षा, शाति तथा सामाजिक स्थिरता आदि को प्राप्त करना है।
नवीन सामाजिक आंदोलन समाज में परिवर्तन
नवीन सामाजिक आंदोलन समाज में परिवर्तन लाने के लिए किसी परिवर्तन को रोकने के लिए किया जा सकता है, जैसे आरक्षण को रोकने के लिए छा त्रो द्वारा किए गए आंदोलन और आरक्षण को लाने के लिए गुर्जरों द्वारा किए गए प्रयास, इस प्रकार कुछ आदोलनों का मुख्य उद्देश्य समाज में विद्यमान सामाजिक परिघटना की अनेक नई विशेषताएं तथा इनके गुणों को भी संक्षेप में बताया गया हैं ।
इसमें नवीन सामूहिक पहचान का निर्माण तथा इन पहचानों की स्वायत्तता आदि मुद्दों पर चर्चा की गई है। साथ ही नवीन सामाजिक आंदोलनों को प्राचीन आंदोलनों में विभेद करने की कोशिश की गई है, इन विभिन्नताओं का विश्लेषण किया गया हैं ।
हेगेड्स के अनुसार सामाजिक आंदोलनों का चलन अपने क्षेत्रों में अनिवार्य रूप से अहीनशात्मक , असमाकलित , वर्ग -पार ,विचारधारा पार आयु पार होते हैं ।
अतः सामाजिक आंदोलनों की अपनी एक संरचना होती हैं , जो उन्हे उनके लक्ष्यों से जोड़कर कार्यात्मक बनती हैं । इसका विस्तार राजनीतिक भागीदारी के पारस्परिक चैनलों की विश्वसनीयता के संकट के कारण होता हैं ।
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