पहचान के मूर्त रूप को मजबूत करने में प्रवास को एक महत्त्वपूर्ण कारक माना जाता है।
पहचान एक खोज है, एक दृष्टि है और एक प्रवृत्ति को आत्मसात करना है। यह प्रवृति हमें अपनी और दूसरों की छवि प्रदान करती है। अर्थात् पहचान अपने और अन्य के संबंधों को विकसित किया गया सामान्य विचार है।
यह शब्द इतना जटिल है कि इसकी व्याख्या अलग-अलग ढंग से की जाटी हैं । स माजशास्त्र में इसका प्रयोग 1950 के आरंभ में हुआ था।
पहचान शब्द को लेटिन शब्द में आइडेम' से लिया गया है। अंग्रेजी भाषा में इसका प्रयोग सोलहवीं शताब्दी से हो रहा है।
पहचान ' करना' शब्द का औपचारिक रूप में प्रयोग सिगमण्ड फ्रायड द्वारा मनोविज्ञान में एक प्रक्रिया को स्पष्ट करने के लिए किया गया, जिसमें एक बच्चा बाह्य व्यक्तियों और वस्तुओं के साथ संबद्ध बनाता है और स्वयं को उनसे जोड़ता है। पहचान एक उच्च श्रेणी की संकल्पना है।
एक सामान्य संगठनात्मक संदर्भ है, जिसमें कई सहायक तत्त्व सम्मिलित होते हैं। पहचान का तात्पर्य है कि क्या साझा और क्या विशिष्ट है। इस इकाई में पहचान की खोज, निर्माण, निर्धारण, चरित्ररऔर एरिकसन के योगदान का संक्षिप्त में वर्णन किया गया है।
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