भारतीय जाति व्यवस्था में डॉ अम्बेडकर का प्रमुख स्थान है। एक दलित होते हुए भी उन्होंने सबसे पहले दलितों के लिए फिर समाज के अन्य वर्गों के लिए प्रयास किए गए जिनसे अवगत कराया गया है।
अम्बेडकर ने हिंदू समाज व्यवस्था पर समाज के वर्णों में विभाजन के प्रभाव या विश्लेषण किया। डॉ अम्बेडकर का कहना है कि हिंदू समाज व्यवस्था का यह मानना है कि मनुष्य का जन्म ब्राहण्ड के रचयिता के शरीर से हुआ है. यह सत्य है।
हिंदू समाज व्यवस्था को वे समतावादी मनो दशा के विरुद्ध मानते हैं। दूसरी ओर, राम मनोहर लोहिया विचारधारा से समाजवादी थे उन्होंने अल्प संख्यनको तथा महिलाओं सहित भा रत के सभी निम्न श्रेणी के लोगों के हित के लिए लड़ाई लड़ी।
जाति प्रथा के दुष्क्रियात्मक पक्षों पर राम मनोहर लोहिया के विचारों तथा उसे नष्ट करने के लिए उनके द्वारा देखे गए स्वप्न को भी स्पष्ट करने का अथक प्रयास किया है।
अम्बेडकर जो हिंदू धर्म के लिए पारंपरिक पुरोहिताई की संस्था को समाप्त करने पर जोर देते थे, जबकि लोहिया मिश्रित भोज , सास्कृतिक क्रियाओं और विनिमय की परिस्थितियों का निर्माण करने पर बल देते थे।
इस इकाई में बाबा साहब अम्बेडकर के प्रयासों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।
इसमे वर्णों की उत्पति कार्यों का विभाजन किस प्रकार हुआ तथा समाज में उनकी स्थिति से अवगत कराने का प्रयास किया गया है। अम्बेडकर के साथ-साथ सोनार्ड, रिसले, नेसफील्ड तथा केतकर द्वारा दी गई जाति व्यवस्था की परिभाषाओं की व्याख्या की गई है।
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