Sociologi: जेंकिन्स ने संजातीयता के प्रारूप को किस प्रकार व्यक्त किया है

Advertisement

6/recent/ticker-posts

Sociologi: जेंकिन्स ने संजातीयता के प्रारूप को किस प्रकार व्यक्त किया है

 

 





Sociologi:    रिचर्ड जेंकिन्स, जो एक प्रसिद्ध सामाजिक वैज्ञानिक और नृविज्ञानी हैं, ने संजातीयता के विषय पर महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए हैं। उनके द्वारा संजातीयता को एक सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से समझाया गया है, जो समाज के भीतर विभिन्न समूहों और उनके परस्पर संबंधों को समझने में मदद करता है। 



जेंकिन्स ने संजातीयता के विचार को केवल एक जैविक या शारीरिक भेदभाव के रूप में नहीं, बल्कि इसे एक जटिल और गतिशील सामाजिक संरचना के रूप में व्यक्त किया है, जो संस्कृति, पहचान और सामाजिक व्यवहार से जुड़ी होती है। उनके द्वारा प्रस्तुत प्रारूप में यह स्पष्ट किया गया है कि संजातीयता न केवल बाहरी पहचान के बारे में है, बल्कि यह एक गहरी सामाजिक प्रक्रिया भी है, जो समाज की रचनाओं और सांस्कृतिक पहचान के साथ जुड़ी होती है।



संजातीयता का सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ

जेंकिन्स के अनुसार, संजातीयता मुख्य रूप से समाज में सांस्कृतिक विभेदीकरण से संबंधित है। इसका मतलब यह है कि संजातीयता समाज के भीतर विभिन्न समूहों के बीच सांस्कृतिक भिन्नताओं को पहचानने और समझने का एक तरीका है। 



यह सामाजिक पहचान को स्थिर और स्पष्ट करने का एक उपकरण है, जो सामाजिक समूहों के बीच भेदभाव को प्रदर्शित करता है। संजातीयता सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो एक व्यक्ति या समूह के लिए अपनी सामाजिक स्थिति को समझने का तरीका होती है।




जेंकिन्स का मानना है कि संजातीयता न केवल समानता और असमानता के बीच के विवादों से संबंधित है, बल्कि यह पहचान के संघर्ष का भी परिणाम है। समाज में प्रत्येक व्यक्ति या समूह अपनी पहचान को दूसरों से अलग करके प्रस्तुत करता है, और यह पहचान विभिन्न समूहों के बीच भेदभाव या विभाजन की प्रक्रिया को जन्म देती है। इस दृष्टिकोण से, संजातीयता सिर्फ एक सांस्कृतिक या जैविक भेदभाव का मामला नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक संरचना है, जो निरंतर विकसित होती रहती है।




संजातीयता और सामाजिक पहचान

संजातीयता को समझने के लिए, जेंकिन्स ने सामाजिक पहचान के सिद्धांत का उपयोग किया है। उनके अनुसार, संजातीयता का संबंध केवल व्यक्तिगत पहचान से नहीं, बल्कि यह समूहों और उनके भीतर की पहचान से भी जुड़ा हुआ है। 



प्रत्येक समाज में विभिन्न जातीय और सांस्कृतिक समूह होते हैं, जिनकी अपनी अलग पहचान होती है। ये समूह अपनी विशेषताओं, परंपराओं, भाषा, धर्म, और अन्य सांस्कृतिक पहलुओं के आधार पर खुद को परिभाषित करते हैं।

सामाजिक पहचान का सिद्धांत यह समझाता है कि लोग अपनी पहचान को केवल अपनी व्यक्तिगत विशेषताओं के आधार पर नहीं, बल्कि अपने समूह के संदर्भ में भी बनाते हैं। जेंकिन्स के अनुसार, संजातीयता का अस्तित्व समाज के भीतर विभिन्न समूहों के बीच पहचान और भेदभाव के माध्यम से होता है। सामाजिक पहचान का यह संघर्ष, जो समानता और असमानता के बीच होता है, अक्सर संजातीयता के रूप में प्रकट होता है।



सांस्कृतिक विभेदीकरण और संजातीयता

जेंकिन्स ने संजातीयता के संबंध में यह भी बताया कि यह सांस्कृतिक विभेदीकरण के रूप में प्रकट होती है। सांस्कृतिक विभेदीकरण का मतलब है कि समाज में विभिन्न समूहों के बीच सांस्कृतिक अंतर होते हैं, जो उनके जीवनशैली, मान्यताओं, और व्यवहारों को प्रभावित करते हैं। संजातीयता के माध्यम से, ये सांस्कृतिक अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। 



उदाहरण के तौर पर, एक समाज में यदि एक जातीय समूह अपनी सांस्कृतिक पहचान को महत्वपूर्ण मानता है, तो वह अन्य समूहों से भिन्न होने के कारण एक विशेष पहचान को बनाए रखेगा।



यह सांस्कृतिक विभेदीकरण सामाजिक असमानता और भेदभाव की प्रक्रिया को जन्म देता है, क्योंकि समाज के भीतर विभिन्न जातीय समूहों के बीच एक अंतर उत्पन्न होता है। 



यह अंतर केवल शारीरिक या जैविक नहीं होता, बल्कि यह समूहों के सांस्कृतिक, धार्मिक, और सामाजिक व्यवहारों में भी होता है। जेंकिन्स का कहना है कि यह विभेदीकरण समाज में लोगों के बीच के अंतर को और गहरा करता है, और इसके परिणामस्वरूप, संजातीयता के माध्यम से समाज में भेदभाव और असमानता बढ़ सकती है।




सामाजिक व्यवहार और संजातीयता

जेंकिन्स ने यह भी बताया कि संजातीयता केवल एक सांस्कृतिक या सामाजिक पहचान का विषय नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक व्यवहार के रूप में भी प्रकट होती है।



 इसका मतलब है कि संजातीयता समाज में लोगों के व्यवहार, उनके कार्यों, और उनके आपसी संबंधों से उत्पन्न होती है। समाज में जब लोग एक-दूसरे से बातचीत करते हैं, तो वे अपनी संजातीय पहचान को व्यक्त करते हैं, जो सामाजिक ढांचे में अहम भूमिका निभाती है।




यह सामाजिक व्यवहार और संजातीयता के बीच का संबंध समाज के भीतर विभिन्न जातीय समूहों के परस्पर संबंधों को समझने में मदद करता है। जेंकिन्स के अनुसार, संजातीयता एक प्रकार का सामाजिक व्यवहार है, जो लोगों के बीच संपर्क और संवाद में प्रकट होता है।



 यह व्यवहार समाज के भीतर सांस्कृतिक मान्यताओं और धारणाओं से प्रभावित होता है, जो संजातीयता के रूप में व्यक्त होते हैं।




संस्कृति और समाज के बीच का संबंध

जेंकिन्स ने यह भी बताया कि संजातीयता का संबंध केवल संस्कृति से नहीं है, बल्कि यह समाज के भीतर सांस्कृतिक और सामाजिक संरचनाओं से भी जुड़ा हुआ है। 



समाज में विभिन्न जातीय समूहों के बीच संपर्क और संबंध की प्रक्रिया में संजातीयता एक महत्वपूर्ण तत्व होती है। जब लोग एक-दूसरे से संपर्क करते हैं, तो उनकी संजातीय पहचान प्रकट होती है, जो समाज के भीतर सामाजिक संरचनाओं और धारणाओं को आकार देती है।




निष्कर्ष

संजातीयता एक जटिल और विविध सामाजिक प्रक्रिया है, जिसे समझने के लिए हमें केवल सांस्कृतिक और जैविक दृष्टिकोण से काम नहीं लेना चाहिए, बल्कि हमें इसे सामाजिक, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक संदर्भों में भी देखना चाहिए।



 जेंकिन्स ने संजातीयता के बारे में जो दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है, वह समाज के भीतर विभिन्न समूहों के बीच के भेदभाव और असमानता को समझने में मदद करता है। उन्होंने संजातीयता को एक सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान के रूप में व्यक्त किया है, जो समाज के भीतर विभिन्न पहचान संघर्षों और भेदभावों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं । 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ