नागरिकता लोकतांत्रिक व्यवस्था का सर्वाधिक प्रचलित शब्द है। इसका प्रयोग राजनीति के सभी स्तरों पर किया जाता है।
इस शब्द का प्रयोग राजनीति के सभी स्तरों, औपचारिक कानूनी इस्तावेजों, कानूनों, संविधानों, पार्टी घोषणापत्रों तथा भाषणों में होता है।
नागरिक शब्द 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के बाद ही काफी लोकप्रिय हुआ और बाद में जहाँ भी लोकतंत्र का गठन हुआ, इस शब्द का प्रयोग किया गया।
एक लोकतांत्रिक राज्य के लिए अनिवार्य है कि उसके नागरिक सरकारी कार्यों में सहभागी हों। नागरिक समाज से अभिप्राय व्यक्ति के निजी क्षेत्र से है। आर्थिक प्रतिस्पर्धा और स्वतंत्रता नागरिक समाज की विशेषताएँ है।
नागरिक समाज में पारिवारिक एकता और मध्यकालीन संस्थाएँ देखने को नहीं मिलती। अब राज्य की नागरिकता के स्थान पर वैश्विक नागरिकता की बात होती है।
एक देश से दूसरे में प्रवास करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि के कारण दोहरी नागरिकता की माँग बढ़ रही है। पिछले दिनों में भारत ने दूसरे देशों में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों को दोहरी नागरिकता प्रदान की है।
इस इकाई में हमने नागरिकता के विभिन्न पक्षों पर चर्चा की है। नागरिकता के सिद्धांत को कानूनी और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में परिभाषित किया है। नागरिक के अधिकारों और कर्त्तव्यों, वैश्विक और दोहरी नागरिकता आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है।
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