दुर्खाइम के राज्य की क्या अवधारणा थी?

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दुर्खाइम के राज्य की क्या अवधारणा थी?

 

पूँजीवाद के विकास एवं प्रकार्य का वर्णन कीजिए।



समाजशास्त्री दाइम के अनुसार राजनीतिक जीवन में शासित और शासक बीच विरोध प्रमुख है।




 राज्य के प्रति उसके विचार अधिकाधिक उसके श्रम विभाजन व्याख्या तथा समेकता से सम्बद्ध है। बुर्जाइम राज्य के विकास को समाज में हुए श्रम विभाजन पर आधारित मानता है



 जैसे-जैसे समाज जटिल होते गए तो शासित और शासक के बीच मे होता गया जिसके परिणामस्वरूप राज्य का गठन हुआ।



 दुर्खाइम के अनुसार राज्य का कार्ड विभिन्न हितों के बीच समन्वय स्थापित करना तथा विशेष रूप से व्यक्ति को छोटे समूचे शक्ति से बचाना होता है। इस प्रकार राज्य व्यक्ति की रक्षा करता है और हित समूहों को तंतुलित करता है।



 समाज का शासित और शासक में विभाजन केवल राज्य में हि नहीं होता  अपित  यांत्रिक पितरतंत्रात्मक परिवारों में भी   होता है। दुर्याइम ने राज्य और ऐसी संस्थाओं के बीच अंतर स्पष्ट करने का प्रयास किया है। एक निश्चित क्षेत्र का आकार और नियंत्रण ऐसी संस्थाओं को राज्य से विलंग करता  है। 



लेकिन दुखा इम के मतानुसार राज्य के महत्वपूर्ण लक्षण के रूप में अधिक लोगों पर नियंत्रण होना अनिवार्य नहीं है अपितु विभिन्न गौण सामाजिक समूहों पर नियंत्रण होना आवश्यक हैं ।  इन गौण सामाजिक समूहों पर शासन करने वाले अधिकारियों के संगठन को राज्य कहते हैं । यह पूरे समाज का मूर्त रूप नहीं हैं ,    अपितु एक विशेष संस्थान हैं ।  




इसके  बाद राज्य और व्यक्ति के संबंधों  पर चर्चा करता है। दुरखाइम के अनुसार यांत्रिक समेकता वाले राज्यों में यह कोई मुद्दा नहीं था जहां व्यक्ति पूरे समाज में ही माहित था  लेकिन जब जैविक समेकता में वृद्धि होती है तो राज्य की शक्तियों में भी वृद्धि होती है और व्यक्ति  के अधिकारों में भी वृद्धि होती है। राज्य की उन्नति और विकास से व्यक्ति के अधिकारों को कोई खतरा नहीं है अपितु व्यक्ति के अधिकार बढ़ते है।





दूरखाइम राज्य और समाज के बीच स्पष्ट भेद करता हैं । प्रत्येक समाज निरकुश होता हैं , कम से कम तब तो अवश्य ही होता हैं  जब समाज के अंदर से ही इस निरंकुशता को रोकने के लिए कोई दखल नहीं दिया जाता।



 जैसे-जैसे समाज अधिक विवश होता जाता है तब व्यक्ति को एक समूह से दूसरे समूह में जाने की और गौण समूहों द्वारा अपने सदस्यों पर निरकुश नियंत्रण को रोकने की जरूरत होती है और राज्य का यह कर्तव्य है कि वह इस जरूरत को  पूरा करे।




 दुखा र्इ का यह विचार था कि यदि समाज का कोई सदस्य समाज के प्रति  अपनी प्रतिबद्धता अनुभव करता हैं तो राज्य को ऐसी परिस्थितियाँ बनानी चाहिए कि व्यक्ति अपने दायित्व का निर्वाह कर सके।

 

दूरखाइम  के लिए समाज अद्वितीय है। उसकी दृष्टि में समाज प्रत्येक चीज से अधिक महत्वपूर्ण हैं । समाज का अस्तित्व व्यक्ति से कहीं अधिक है और यह व्यक्तियों पर अपनी अपार  शक्ति का प्रयोग करता है।



 समाज के संबंध में उसके विचार राज्य के प्रति उसके विचारों में झलकते हैं। दुर्खाइम के अनुसार राज्य आवश्यक रूप से गौण समूहों के बीच वैसे ही मध्यस्थ है। गौण समूह समाज में विकसित होते हैं क्योंकि आधुनिक समाजों में विभाजन अधिक भ्रामक और कुतर्कपूर्ण है।




 ये गौण समूह व्यक्त्ति और समाज के बीच मध्यस्थ होते हैं जैसे राज्य  राज्य व्यक्ति और गौण समूहों के बीच मध्यस्थता करता है।

 

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