अंतर तथा असमानता में उदाहरणों द्वारा अंतर स्पष्ट कीजिए।

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अंतर तथा असमानता में उदाहरणों द्वारा अंतर स्पष्ट कीजिए।

 


 

किसी एक या दो मान दंडों के समुच्यय के आधार पर समाज के लोग विविध श्रेणियों में बँट जाते है। सामाजिक स्तरीकरण रो आशय है:लोगों का विविध श्रेणियों में   विभाजन।



  इन श्रेणियों से इनमे बँटें   लोगों के बीच के अंतरों का पता चलता हैं । इसमे निहित   धारणा है कि श्रेणियों के बीच के अतरों पर ध्यान देना जरूरी है हालांकी   इनके बीच के     मतभेदों को कोई महत्व नहीं दिया जाता अर्थात श्रेणियों को कोई असमान स्थिति या आसमान     पारितोषिका नहीं दिया जाता। 




लोगों की ऐसी विविध श्रेणियों को समान दृष्टि से देखा जाता हैं ,  और एक की तुलना में दूसरे को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता। यह सामाजिक श्रेणियों को समान दृष्टि से देखा जाता हैं ।



 यह सामाजिक श्रेणियों में   व्याप्त अतंर की संकल्पना है। जब सामाजिक श्रेणियों में असमान  स्थितियों   को    जोड़  दिया जाता है तो एक या एकाधिक परिभाषित कारकों के   आधार पर ये असमान  समझी   जाने लगती है। 



गुप्ता के अनुसार मतभेदों को महत्त्व मिलने लगता है जबकि रैकिंग   विविधताएं   जटिल रूप धारण कर लेती है। सामाजिक स्तरीकरण में अंतर एवं असमानता    यथार्थ   संकल्पनाओं का समावेश है।


बतई (1969) का सुझाव है कि सामाजिक असमानता के दो पहलुओ करना जरूरी है। पहला है वितरण कारक जिसका अर्थ है विविध कारक (जैसे संपत्ति व्यवसाय, शिक्षा, सत्ता कौशल) जो कि आबादी में बँटे हुए है।




 ये समाज में अंत वेयक्ति , अंतक्रिया का आधार प्रदान करते हैं । दूसरा हैं : ऐसे    तरीके जिनमें   विविध     कारकों से व्यक्ति विशेष सदस्यों में जो अंतर आते हैं, वे समूहों या श्रेणियों की व्वयस्था के    दायरे में एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। 




यहाँ ऐसे लोगों की  अंतक्रिया पर जोर दिया जा रहा जो   एक समूह या श्रेणी से संबंधित हैं। वे स्पष्ट करते हैं कि अभी तक   समाजविज्ञानियों द्वारा    व्यापक रूप से सामाजिक असमानता की जिन किस्मों का अध्ययन किया गया है, वे संपती एवं   आय की असमानता की उपज है और जो सत्ता वितरण में व्याप्त असंतुलन से जन्मी  है।



 समाज में संपत्ति एवं आदर के असमान वितरण के निम्नलिखित व्यापक परिणाम हैं :                           


(1) 'संपत्ति में पाए जाने वाले अंतर से ऐसे लोगों का एक अलग किस्म का   समूह   उत्पन्न होगा जो इन अंतरों के चलते एक दूसरे से अलग दिखाई देंगे    और जो   आगे अलग किस्म की सामाजिक इकाइयों में गठित होते नजर आएँगे।




(2) समाज के ऐसे खडीकरण से सामाजिक एकात्मता की संभावना कम हो जाएगी   और  जिससे सार्वजनिक निधियों के प्रयोग जैसे सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर समाजव्यापी   सर्वसम्मति भी प्रभावित होगी अर्थात् सभी की राय एक दूसरे से अलग होगी।



(3) विविध पदों के लोगों की असमान आमदनी समाज के मानदंडों एवं कानून  पर  असमान वचनबद्धता को जन्म देगी और जिससे लोग पथभ्रष्ट होंगे और अपराध बढ़ेंगे । 


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