डिपथिरिया एक अत्यन्त संक्रामक तथा संचारी रोग है जिसके नाक गले तथा टॉन्सिल्स की श्लेष्मा झिल्ली प्रभावित होती है तथा उस पर एक अतिरिक्त झिल्ली बन जाती है।
यदि समय रहते उपचार न
हो तो रोगी की मृत्यु भी हो सकती है। नवजात
शिशुओं को छोड़ यद्यपि किसी भी आयु
में यह रोग हो सकता है, फिर
भी 3-5 साल की आयु के बच्चों में अधिकतर देखा जाता है।
डिफ़्थीरिया का संक्रमण कारक एक वैक्टीरिया है जिसे कोरीनीवेस्टीरियम् डिफथिरिए कहते हैं। यह रोगी के मुंह व नाक के विसर्जनों में पाया जाता है। इस रोग का उद्भवनकाल लगभग 2-6
दिन के बीच होता है।
रोग का प्रसार (Mode of Spread)-
(1) रोग मुख्यतः विन्दु संक्रमण (Droplet Infection) द्वारा फैलता है। जीवाणु, रोगी के खासने, बोलने व छिकने से
हवा में फैल जाते हैं तया स्वस्थ् व्यक्तियों के सांस लेने की क्रिया से उनके शरीर
में प्रवेश करते हैं
(2) अप्रत्यक्ष रूप से संदूषित रूमाल, खिलोनें , तो लिये, जूठे बर्तन आदि से भी कीटाणु फैल सकते हैं।
(3) रोगी के अपने शरीर के ऊपर भी एक भाग से दूसरे भाग तक संक्रमण फैल सकता है। जैसे नाक से जीवाणु हाथों
में लग जाते हैं तथा उन्हीं हाथों से अआँखें
छूने से आँखों में भी संक्रमण हो सकता है।
रोग के लक्षण (Symptoms)-रोग को निम्नलिखित तीन अवस्थाओँ में बाँटा जा सकता है
(क) जहरीली अवस्था। (ख) हृदय संस्थान में विकार आने की अवस्था।
(ग) नाड़ी संस्थान में विकार आने की अवस्था ।
पहली अवस्या में नाक, गले, टॉन्सिल (Tonsils) तथा तालू में संक्रमण होता है। इनकी श्लेष्मा झिलली पर एक सफेद जहरीली झिल्ली (False Membrane) बन जाती है।
गले की लसिका ग्रन्थियाँ (Lymph nodes) तथा टॉन्सिल सूज जाते हैं और थूक निगलने में कठिनाई होती है। यदि False Membrane सांस नली के ऊपर तक फैल जाए तो रास्ता रुकने के कारण सांस लेने में कठिनाई हो सकती है।
दूसरी व तीसरी अवस्था तब उत्पन्न होती है यदि समय रहते डिप्थीरिया का इलाज न किया जाए। क्योंकि ऐसी अवस्था में
इसके जीवाणु False Membrane के अतिरिक्त कुछ विषैले पदार्थ भी उत्पन्न करने लगते हैं जो रक्त में मिल के हृदय
तथा मस्तिष्क पर कुष्प्रभाव डालते हैं। इसके
फलस्वरूप अधरंग और कई बार मृत्यु भी हो सकती है।
बचाव तथा नियंत्रण (Prevention and Control)-संक्रमण पर नियंत्रण रखने के लिये के लिये निम्नलिखित उपाय करें-
(1) स्वास्थ्य अधिकारी को सूचित करें।
(2) रोगी को अलग साफ हवादार कमरे में रखें।
(3) रोगी के कपड़े, बिस्तर तथा उसके द्वारा प्रयोग की जाने वाली सभी वस्तुओं को समय-समय पर विसंक्रमित करें ।
(4) घर का विसंक्रमण करने के लिये 1% फार्मेलीन मिश्रण का स्प्रे करें।
(5) रोगी के मुँह तथा नाक के विजर्सनों को जला दें।
(6) निश्चित तालिका के अनुसार सभी बच्चों को उचित समय पर डी.पी.टी. के टीके लगवा कर बीमारी से प्रतिरक्षित करें ।
(7) पनि में लाल दवाई मिलकर गरारे करवाइएं ।
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