ई. ई. ईवान्स प्रिटवार्ड के सामाजिक संरवना के विचारों का उल्लेख कीजिए।

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ई. ई. ईवान्स प्रिटवार्ड के सामाजिक संरवना के विचारों का उल्लेख कीजिए।

 




ई.ई. ईवान् प्रिटवार्ड ने अपनी पुस्तक ' न्यूर' (1940) में सामाजिक संरचना की अवधारणा का वर्णन किया है।



 न्यूर में अपने प्रबंध विषय में उन्होंने उन मानव के जीवन के लिए  मवेशी की उपयोगिता के बारे  में बताया जिसका उन्होंने अध्ययन किया था। 




विज्ञान प्रणाली में वे स्वयं को अपने क्षेत्रीय वितरण के अनुकू‌लित और ऋतु प्रवास में पाते हैं। न्यूर की समय और स्थान की अवधारणाएं  अधिकांश उनकी जीविका के प्रतिमान से पैदा होती है।




 तब केंद्रीकृत राजनीतिक सत्ता के अभाव में ईवान्स प्रिटचर्ड ने उन क्षेत्रीय खंडों का परीक्षण किया जिनसे राजनीतिक व्यवस्था को बनाते हैं। 



न्यूर राज्य विहीन (या नेतृत्वविहीन) समाज के अच्छे उदाहरण है। उनकी विवेचना ने विभाजनकारी राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा को जन्म दिया जहाँ पर सामाजिक व्यवस्था  अधिकांशतः विपक्ष के क्रियाकलापों एवं समाज के विभिन्न वर्गों का संतुलन है।



 

न्यूर समाज और उनके आआंतरिक संबंधों के बारे में ईवान्स प्रिटचर्ड के अंकन ने उन्ने सामाजिक संरचना की अवधारणा का मार्ग विखाया।



 व्यक्त्ति संबंधी विचार से आरंभ करने के स्थान पर जैसा कि रेडक्लिफ-ब्राउन ने किया, ईवान्स प्रिटचर्ड ने सामाजिक संरचना को समूह के रूप में देखना आरंभ किया।



 उनके शब्दों में 'सामाजिक संरचना से हमारा आशय समुदायों के मध्य उन संबंधों से है जो उच्च प्रकार की सामंजस्यता और स्थिरता वाले हों।

 

संरचना 'समुदायों का एक सुव्यवस्थित संयोजन है। व्यक्ति विशेष आता है और चला जाता है। वह समय के साथ-साथ नियुक्त होता है तथा ऐसे ही विलुप्त हो जाता है। किंतु समुदाय जैसा था वैसा ही रहता है।




 इसमें मनुष्य पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ता जाता है। जीवन और मृत्यु की प्रक्रिया व्यक्तियों को अनुकूलित करती है। किंतु समाज की संरचना टिकाऊ है। 




यह स्पष्ट है कि ईवान्स प्रिटचर्ड के अनुसार सामाजिक संरचना उन एकांशों के बारे में बताती है जो अधिकांशतया स्थिर है, अर्थात् समुदाय है। 'संरचनात्मक स्वरूप' से रेडक्लिफ ब्राउन का   आशय उसी से हैं जिसे ईवान्स प्रिटचर्ड (सामाजिक संरचना ) कहते हैं ।





ईवान्स प्रिटचर्ड परिवार को 'संरचनात्मक समुदाय के रूप में नहीं मानते है।




 यह इसलिए क्योंकि वे सोचते है कि परिवार में अन्य समुदायों की भाँति सुसंगति और स्थिरता नहीं है। परिवार अपने सस् की मृत्यु के उपरांत लुप्त हो जाता है और फिर एक नया परिवार अस्तित्व में आता है।





 फिर भी, इसका यह अर्थ नहीं है कि परिवार कम महत्वपूर्ण है क्योंकि 'संरचना के संचयन के लिए परिवार अनिवार्य है। परिवार में सदस्यों का जन्म होता है जो परिवारकी निरंतरता और व्यवस्था को बनाए रखते है।




 इस संरना के सुत्रीकरण का वान्स प्रिटचर्ड स्पष्टीकरण यह कह कर देते हैं कि इसका आशय यह नहीं है कि समुदाय - सुसंगत और स्थिर जिनसे सरचना का निर्माण होता है. स्थाई है। क्षेत्रीय वंशावली तथा आयु वर्ग प्रणाली परिवर्तनशील है, किंतु धीरे-धीरे और उनके हिस्सों में हमेशा एक ही प्रकार का आपसी संबंध विद्यमान रहता है।




 

न्यूर का उदाहरण देते हुए ईवान्स प्रिटचर्ड कहते हैं कि जनजाति आवासीय एकांश की अव्यवस्थित सभा नहीं है। प्रत्येक स्थानीय समुदाय विभक्त है और ये विभक्त समुदाय दूसरे समुदायों में मिल जाते हैं।




 इसी कारण प्रत्येक इकाई को समस्त पद्धति के रूप में ही परिभाषित किया जा सकता है। एक समाज को 'समूहों की पद्धति के रूप में परिकलित किया जा सकता है, जिसमें व्यक्तियों के समूहों के मध्य संबंध विद्यमान रहते है तथा ये संबंध संरचनात्मक संबंध है।




 इस प्रकार, संरचना 'समुदायों के मध्य एक संबंध है। इन संबंधों को प्रणाली के नाम से भी परिभाषित किया जा सकता है। ईवान्स-प्रिटचर्ड सगोत्र संबंधों को सगोत्र व्यवस्था के रूप में देखते हैं या हम राजनीतिक संबंधों को राजनीतिक व्यवस्था भी कह सकते हैं।




 

यह हमें समूह की परिभाषा के विषय की ओर लाता है। ईवान्स प्रिटचर्ड के शब्दों में, समूह एक ऐसे व्यक्तियों का संघ है जो स्वयं को दूसरी इकाइयों की तुलना में एक विशेष इकाई मानते हैं।




 किसी समूह के सदस्यों में अपनी पहचान का ज्ञेय बोध होता है और वे दूसरे समूह से इस प्रकार से परिभाषित किए जाते हैं। समुदाय के सदस्यों के मध्य अन्योन्य आबंध होते हैं।




 जब भी उनका अपने समूह या इसके सदस्यों में किसी एक से संबंधित विषय को लेकर मुकाबला होता है तब उनके एक जुट हो जाने की अपेक्षा की जाती है।




 इस आधार पर 'प्रतिशोधी समुदाय' बनते हैं। जिनका उद्देश्य अपने सदस्यों में से एक सदस्य की मृत्यु का बदला लेना है।




 मानव वध के मामले में मारे गए समुदाय के सदस्य मारने वाले वर्ग के सदस्यों के विरुद्ध एक हो जाते हैं। इस प्रकार दो रूप के संरचनात्मक समकक्ष और परस्पर विरोधी दो समूहों का जन्म होता है। 




इस अर्थ में एक जनजाति, एक वंशावली व एक आयु वर्ग का एक हिस्सा समूहों के उदाहरण हैं। फिर भी, एक मनुष्य की सगोत्रता एक समूह को नहीं बना सकती और न ही पड़ोसी जनजाति या बाहरी व्यक्ति से समूह बनता है।

 

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