आधुनिक खेती में रासायनिक खादों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण मिट्टी में केंचुओं की संख्या कम होती जा रही है। केंचुए मिट्टी के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं, इसलिए इनकी घटती संख्या के कारण मिट्टी की उर्वरता कम होती जा रही है। केंचुओं की कमी से जुड़ी कुछ और बातें:
1) केंचुए मिट्टी को खाकर उसे पलट देते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।
2) केंचुए मिट्टी में मौजूद कच्चे कार्बनिक पदार्थ को खाकर बारीक खाद बनाते हैं, जिसे केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट कहते हैं।
3) केंचुए मिट्टी को भुरभुरा बनाते हैं, जिससे मिट्टी में लाभदायक बैक्टीरिया पनपते हैं और मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है।
4) केंचुए हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म करते हैं, जो डायरिया, फंगस और पेट से जुड़ी दूसरी बीमारियों का कारण बनते हैं।
खेती में केंचुए किस तरह महत्वपूर्ण हैं:
1) मिट्टी को हवादार बनाने में: केचुओं की खुदाई की गतिविधि मिट्टी को हवादार बनाने में मदद करती है, जिससे जड़ें गहराई तक जा पाती हैं और मिट्टी में पानी की घुसपैठ में बढ़ोतरी होती है।
2) पोषक चक्रण: केंचुए कार्बनिक पदार्थों को तोड़ते हैं, इसे पोषक तत्वों से भरपूर मल में बदल देते हैं जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है।
3) मिट्टी की संरचना में सुधार: वे चैनल बनाते हैं जो मिट्टी की संरचना में सुधार करते हैं, संघनन को कम करते हैं और जल निकासी को बढ़ावा देते हैं।
4) माइक्रोबियल गतिविधि: केंचुए का मल लाभकारी माइक्रोबियल गतिविधि को बढ़ावा देता है, जिससे मिट्टी का स्वास्थ्य और पौधों की वृद्धि में सुधार होता है।
■ मिट्टी में केंचुओं की संख्या बढ़ाने के तरीके:
1) बायोपेस्टीसाइड का उपयोग करें। इनमें सूक्ष्मजीव, पौधों के अर्क कीटों के प्राकृतिक दुश्मन होते हैं। इनका उपयोग करने से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है और केंचुओं की संख्या बढ़ती है।
2) पत्तियों की खाद, गोबर की खाद एवं अन्य जैविक उर्वरक का उपयोग करें। इससे मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा और पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती हैं।
केंचुओं की घटती संख्या से समस्याएँ:
किसानों द्वारा रासायनिक खादों और कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण केंचुओं की संख्या में भारी कमी आई है। इससे हमारी मिट्टी की संरचना में भी बदलाव आया है, जो पहले नरम और छिद्रपूर्ण थी, अब कठोर और सघन हो गई है। केंचुओं की संख्या बढ़ाने के लिए किसानों को रासायनिक खादों का इस्तेमाल कम करके जैविक खेती अपनानी चाहिए।
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