नव प्रकार्यवाद के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।

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नव प्रकार्यवाद के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।

 


एलेक्जेंडर  नव -प्रकार्यवाद" शब्द के प्रयोग से प्रसन्न नजर नहीं आता।


 उसका यह भी मानना है कि पार्सन के उपागम को दर्शाने में 'प्रकार्यवाद' उपयुक्त शब्द नहीं था ।



 पार्सन ने स्वंय अपने उपागम  के लिए संरचनात्मक प्रकार्यवाद' को हटाने का प्रयास किया –लेकिन उसे पता था की उसके समाजशास्त्र के लिए इसका प्रयोग निरंतर चलता रहेगा ।



 उसके कुछ सहयोगी इसके सिद्धांत को क्रिया सिद्धांत (एक्शन थ्योरी) कहना पसद करते हैं एलेक्जेंडर (1985) का यह भी सोचना है कि प्रकार्यवाद" शब्द के अनुपयुक्त होने के बावजूद भी पार्सन का सिद्धांत भविष्य में इसी नाम से जाना जाएगा। 



इस शब्द को हटाने से  कोई अधिक लाभ नहीं मिलेगा बजाय इसके  इस पर गौर करो और इसे पुनः परिभाषित करों ।  एकीकृत सिद्धांत होने की बजाय नव प्रकार्यवाद एक प्रवृत्ति है जो कि निम्नलिखितइस प्रकार है: 

(1) सपूर्ण रूप में समाज की मुक्त एवं बहुलवादी व्याख्या।

(2) कार्य बनाम संरचना के संदर्भ में बनाम व्यवस्था।


(3)   एकीकरण को एक संभावना के रूप में देखा जाता है विचलन एवं सामाजिक नियंत्रण विचारित वास्तविकताएँ है।


 

(4) व्यक्तित्व, संस्कृति एवं समाज के बीच पहचान।

 

(5) विभेवन को सामाजिक बदलाव लाने वाले प्रमुख बल के रूप में देखा जाता हैं ।


(6) संकल्पना एवं सिद्धांत के विकास को समाजशास्त्रीय विश्लेषण में शामिल सभीस्तरों से अलग रूप में माना जाता है।

 

प्रकार्यवाद को नवीन रूप देने के लिए एलेक्जेंडर एवं अन्य विचारकों के प्रयासों पर प्रदत  प्रक्रियाकों में भारी भिन्नता है। कुछ विचारकों ने एलेक्जेंडर की प्रकार्यात्मक परंपरा को अस्पष्ट पाया है।


 वे प्रकार्यवाद एवं नव-प्रकार्यवाद के बीच की निरंतरता पर भी सवालिया  निशान लगाते हैं क्योंकि 'नव प्रकार्यवाद में ऐसी हर बात का समावेश है जिसके लिए  प्रकार्यवाद की आलोचना की गई है। ऐसी बातों की एक सीमा है जहाँ सैद्धांतिक परिपेक्ष्य  बेतरतीब धारणाओं को अपने में समेट सकते हैं और बावजूद इसके उसका नाम एवं वंशावली भी  बनाए रखते हैं। कुछ समीक्षाकारों के लिए संरचनात्मक प्रकार्यवाद में पेश किए जाने वाले   परिवर्तन वास्तविक होने की बजाय अधिक क्रांतिबर्द्धक हैं।



 नव-प्रकार्यवाद अभी भी ऐसे लक्ष्यों  से ओत-प्रोत है जो प्रकार्यवाद को विशिष्ट बनाते हैं जैसे कि यह विचार कि समाजो को  व्यक्तिपरक ढंग से समझा जा सकता है। यह बात निरंतर हावी रही है। व्यक्तियों को अभी भी  गतिशील एवं सृजनात्मक नायकों की बजाय पद्धति के प्रतिकारियों के रूप में देखा जाता हैं ।  द्वंद्ध को पहचाना जाता है लेकिन सिद्धांत में इसका द्वितीयक स्थान ही बना रहता है और क्रांति  पर निश्चित रूप से विचार नहीं किया जाता।

 

एलेक्जेंडर का सुझाव है कि समाजशास्त्र विज्ञान के उत्तर-प्रत्यक्षवाद पर आधारित होना चाहिए जिसका अर्थ है कि हम अपने आसपास के विश्व को सैद्धांतिक तथा आनुभविक नजरिया प्रत्यक्षवाद का खंडन करता है क्योंकि वह सिद्धांत आनुभविक आँकड़ों तक सीमित करता है। 



अन्य शब्दों में इसके लिए आनुभविक तथ्यों से सिद्धांत को अलग करके नहीं देखा जा सकता। प्रत्यक्षवाद आनुभविक प्रेक्षणों एवं गैर-आनुभविक प्रतिज्ञप्तियों के बीच तीव अंतर बताता है। 



गैर-आनुभविक प्रतिज्ञप्तियाँ वर्शनशास्त्र और अलौकिकता के क्षेत्र की कोई स्थान नहीं मिल सकता। गठित करते हैं. अतः आनुभविक विज्ञान में इन्हें कोई स्थान नहीं मिल सकता ।

 

उत्तर प्रत्यक्षवाद मानता है कि सिद्धांत पर आनुभविक शोध की बजाय अन्य सिद्धांतों के सदर्भ में चर्चा, जाँच सत्यापन एवं इसकी व्याख्या की जा सकती है। 



अन्य शब्दों में, तथ्यों की बजाय एक सिद्धात दूसरे सिद्धांत का हवाला दे सकता है। सिद्धांतों को ऐसे लिया जाता है जैसे कि ये अनुभवजन्य प्रेक्षणों को दर्शाते हैं।



 एलेक्जेंडर सामाजिक विज्ञान में आनुभविक आधारित निष्कर्षों के आलोचक है। सामाजिक विज्ञान एवं प्राकृतिक विज्ञान के बीच का बुनियादी अंतर है कि सैद्धांतिक परिप्रेक्ष्य सदैव ऐसे हर कार्य में निहित होते हैं जिन्हें सामाजिक विज्ञानी करते हैं। 



अत समाजशास्त्रीय सिद्धांत आनुभविक प्रेक्षणों को स्पष्ट करने में अपनी योग्यता एवं क्षमता के बावजूद वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं।

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