कार्तिक पूर्णिमा का व्रत हिंदू धर्म में विशेष
महत्व रखता है. इसे देव दीपावली भी कहते है. इस दिन देवताओं ने राक्षस त्रिपुरासुर
का संहार कर स्वर्ग को सुरक्षित किया था.
कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी को छोटी दिवाली, अमावस्या को दिवाली और कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली मनाने का विधान है. कार्तिक पूर्णिमा का व्रत और पूजन हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है. इसे देव दीपावली भी कहते हैं।
इस दिन देवताओं ने राक्षस त्रिपुरासुर का संहार
कर स्वर्ग को सुरक्षित किया था. कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान विष्णु, भगवान शिव और तुलसी माता की विशेष पूजा
की जाती है. यहां कार्तिक पूर्णिमा की पूजन विधि दी गई है. इस साल देव दिवाली 15
नवंबर यानी आज मनाई जा रही है.
पौराणिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता पृथ्वी पर आते हैं और गंगा घाट पर दीवाली मनाते हैं. कहा जाता है कि देव दीपावली के दिन की की गई पूजा पाठ से भगवान प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं.
ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता स्वर्ग से
गंगा नदी में स्नान के लिए आते हैं. इसलिए वाराणसी के गंगा घाट को दीयों से जगमग
कर दिया जाता है.
पूजा का शुभ मुहूर्त
देव दिवाली का शुभ पर्व 15 नवंबर यानी आज मनाया जा रहा है.
आज शाम 5 बजकर 10 मिनट से लेकर शाम 07 बजकर 47 मिनट तक प्रदोष काल रहेगा, इस शुभ घड़ी में
भगवान की पूजा की जाएगी.
देव दिवाली पर करें ये खास उपाय
1. देव
दिवाली के दिन मीठे जल में दूध मिलाकर पीपल को चढ़ाएं. इसस मां लक्ष्मी प्रसन्न
होंगी. जबकि चावल का दान करने से चन्द्र ग्रह शुभ फल देता है.
2.
दे देव दिवाली की संध्या को शिवलिंग पर कच्चा दूध, शहद और गंगाजल
मिलाकर चढ़ाएं. घर के मुख्य द्वार पर आम के पत्तों का तोरण बांधें. मिश्री और
गंगाजल से बनाएं और मां लक्ष्मी को भोग लगाएं.
क्यों मनाई जाती है देव दिवाली?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवता और ऋषि मुनि दानव के आतंक से त्रस्त थे. परेशान होकर सभी देवगण भगवान शिव से सहायता मांगने गए. भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया.
राक्षस के अंत की खुशी में सभी देवता प्रसन्न
होकर भोलेनाथ की नगरी काशी में पधारे. उन्होंने काशी में दीए जलाकर खुशियां मनाई.
जिस दिन ये हुआ, उस
दिन कार्तिक मास की पूर्णिमा थी.
देव दीपावली के साथ और भी कई पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं. कहते हैं कि कार्तिक पूर्णिमा ही वो तिथि थी, जब भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था.
भगवान कृष्ण को भी इसी दिन आत्म बोध हुआ. कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही माता तुलसी का धरती पर प्राकट्य माना जाता है. इस दिन तुलसी के सामने दीपदान की परंपरा है.
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