मेलिनोवस्की के प्रकार्यवाद का वर्णन कीजिए ।

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मेलिनोवस्की के प्रकार्यवाद का वर्णन कीजिए ।

 


उत्तर - मेलिनोवस्की वह है जो पृथक 'स्कूल', 'प्रकार्यात्मक स्कूल के निर्माण का दावा करते हैं।



 प्रकार्यात्मक विश्लेषण का उद्देश्य उनके लिए विकास के समस्त स्तरों पर उनके  प्रकार्य के द्वारा उस संस्कृति की समग्र प्रणाली के अंतर्गत जिस भूमिका को वे निभातें हैं , के  द्वारा मानववैज्ञानिक तथ्यों की व्याख्या तक पहुँचना है।

 

 

 

उनका मानना है कि प्रत्येक सभ्यता में प्रत्येक रिवाज, भौतिके विषय या विचार और  विश्वास की कुछ आवश्यक प्रकार्यों को पूरा करते हैं उनके पास निष्पादित करने के लिए कुछ  कार्य होता है, वे एक संपूर्ण कार्यकरण के अंतर्गत अनिवार्य तथ्य प्रस्तुत करते हैं।

 

मेलिनोवस्की का आरंभिक बिंदु 'व्यक्ति" है जिसके पास मूल (या जीव विज्ञान संबंधी आवश्यकताओं का ऐसा समूह है जिसकी संतुष्टि व्यक्ति विशेष के जीवित रहने के लिए आवश्यक है। मेलिनोवस्की व्यक्ति को जो महत्व देते हैं उसी के कारण मनोवैज्ञानिक प्रकार्य वाद शब्द उनके लिए सुरक्षित रखा गया हैं ।



मेलिनोवस्की का उपागम जैविकी, सामाजिक संरचनात्मक और प्रतीकात्मक तीनों स्तरों में भेद करता है। इनमें से प्रत्येक स्तर की कुछ जरूरते है जिनका संतुष्ट होना मनुष्य के जीवित रहने के लिए जरूरी है।



 उसके जीवित रहने में अधिसंख्य सत्ता (यथा, समूह, समुदाय, संस्थाएँ) की उत्तरजीवितता निर्भर करती  है। मेलिनोवस्की ने प्रस्तावित किया कि ये तीन स्तर श्रेणीबद्ध समाज का निर्माण करते हैं।



 इसकी सतह पर जैविकी व्यवस्था उसके बाद दूसरा जाता सामाजिक संरचना और अंत में प्रतीकात्मक प्रणाली होती है। जिस रूप में आवश्यकताएँ एक स्तर पर पूर्ण होती है, इस रूप से वे परवर्ती स्तर पर पूर्ण होने के तरीके को भी प्रभावित करती है।

 

 

अत्यधिक प्रमुख आवश्यकताएँ जीव विज्ञान संबंधी है। किंतु यह किसी प्रकार के हासवाद कि में समाविष्ट नहीं होता है क्योंकि प्रत्येक स्तर अपनी एक विशेष गुणधर्म और आवश्यकता को बनाता है और विभिन्न स्तरों के अंतर्संबंधों से वह संस्कृति विकसित होती है जो समस्त को - जोड़ती है। संस्कृति मेलोनोवस्की के उपागम का सार-तत्त्व है। 



यह 'अद्वितीय मानवीय है, जो अन्य उप-मानव में विद्यमान नहीं होता। सभी बातों की तुलना करने पर चाहे वह भौतिक हाँ । या अभौतिक जिसका मानव ने कालांतर से निर्माण किया है, को अपने वानरी पूर्वजों से पृथक - करते हैं, संस्कृति एक ऐसा उपकरण बन गई है जो मानव की जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। 



यह आवश्यकताओं की सेवा करने वाली तथा आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली प्रणाली है। संस्कृति की इस भूमिका, जो जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति करती है, के कारण मेलिनोवस्की का प्रकार्यवाद 'जैव-सांस्कृतिक प्रकार्यात्मकवाद के रूप में भी जाना हैं । 

 

मेलिनोवस्की के लिए संस्कृति एक मौलिक अवधारणा है। मेलिनोवस्की के उपागम  का आधार 'अनिवार्य श्रेणी' का सिद्धांत है, जिसका जैविक आधार है और जो समस्त समाज में  समाविष्ट है।



 ये श्रेणियाँ ग्यारह के अंक में हैं, जिनमें से हर एक आवेग से बना है, जो एक सम्बद्ध शरीरविज्ञान संबंधी कार्य और एक संतुष्टि है जो उस कार्य का परिणाम है।

 

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