16 नवंबर से अगहन महीना शुरू हो गया है। जो 15 दिसंबर तक रहेगा। इस महीने सुख-समृद्धि के लिए शंख और लक्ष्मी जी की पूजा करने की परंपरा है। सूर्य को जल भी चढ़ाते हैं। इससे हर तरह के दोषों से मुक्ति मिलती है। मान्यता है, इस महीने किए गए स्नान-दान, व्रत और पूजा-पाठ से अक्षय पुण्य मिलता है।
श्रीकृष्ण का प्रिय महीना होने से अगहन मास में यमुना नदी में नहाने का विधान ग्रंथों में बताया है। इससे हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं। इस महीने के आखिरी दिन यानी पूर्णिमा पर चंद्रमा मृगशिरा नक्षत्र में रहता है। इसलिए इसे मार्गशीर्ष कहा गया है।
अगहन मास की दोनों एकादशी खास अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं। पौराणिक कथा के मुताबिक इस तिथि पर भगवान विष्णु से एकादशी प्रकट हुई थी। इसलिए इसे उत्पन्ना कहते हैं। वहीं, शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्ष देने वाली होती है।
पुराणों के मुताबिक इस तिथि पर भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता सुनाई थी। इसलिए गीता जयंती इसी तिथि पर मनाते हैं।
सुख-समृद्धि के लिए शंख और लक्ष्मी पूजा इस महीने में शंख पूजा करने की परंपरा है। अगहन मास में किसी भी शंख को श्रीकृष्ण का पांचजन्य शंख मानकर उसकी पूजा की जाती है। इससे कृष्ण प्रसन्न होते हैं। साथ ही इस महीने देवी लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए।
शंख को देवी लक्ष्मी का भाई माना जाता है। इसी कारण लक्ष्मी पूजा में शंख को भी खासतौर से रखते हैं। लक्ष्मी जी और शंख पूजा करने से सुख-समृद्धि बढ़ती है। इस महीने हर दिन श्रीकृष्ण की बाल स्वरूप में पूजा करना चाहिए।
सूर्यदेव की पूजा का होता विशेष महत्व अगहन महीने में भगवान सूर्य की पूजा का भी विशेष फल है। ग्रंथों में बताया गया है कि इस महीने में रविवार को उगते हुए सूरज को जल चढ़ाने से हर तरह के दोष और पाप खत्म हो जाते हैं। अगहन महीने में रविवार को बिना नमक का व्रत करना चाहिए। ऐसा करने से कुंडली में ग्रह-नक्षत्रों के अशुभ फल में कमी आती है।
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