नवरात्रि पर शक्ति पीठ श्री नैना देवी की होती है विशेष पूजा, जानें इनसे जुड़ी पौराणिक कथा।

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नवरात्रि पर शक्ति पीठ श्री नैना देवी की होती है विशेष पूजा, जानें इनसे जुड़ी पौराणिक कथा।

 



शारदीय नवरात्रि आज से शुरू हो गई है. शारदीय नवरात्रि हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसकी शुरुआत आश्विन माह में होती हैं. इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती हैं, जिनमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री माता का नाम शामिल है. 


वहीं, शक्तिपीठ श्री नैना देवी पर भी माता की विशेष पूजा होती है.


हिमाचल प्रदेश के विश्व विख्यात शक्ति पीठ पर माता दुर्गा के शारदीय नवरात्रि की सुबह की आरती के साथ शुरुआत हो गई. शक्ति पीठ श्री नैना देवी हिमाचल प्रदेश के जिला बिलासपुर में विद्यमान है जो कि एक ऊंची पहाड़ी पर बसा हुआ है और यह समुद्र तल से लगभग 5500 फिट ऊंचाई पर है. 



प्रथम नवरात्रि पर आज मां के दरबार में श्रद्धालुओं ने विभिन्न प्रदेशों से आकर माता जी के दर्शन किए और माता जी के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा अर्चना की. साथ ही नवरात्रि के शुभ उपलक्ष्य पर श्रद्धालुओं ने हवन यज्ञ करके अपने घर- परिवार के लिए सुख समृद्धि की कामना भी की.



माता श्री नैना देवी का दरबार हरियाणा की समाजसेवी संस्था के द्वारा विभिन्न प्रकार के रंग-बिरंगे फूलों लाइटों और लड़ियों से सजाया गया है.



 लगभग 20 से ज्यादा कारीगर पिछले चार दिनों से मंदिर की भव्य सजावट में लगे हैं. माता जी के मंदिर की सजावट का दृश्य दूर-दूर तक श्रद्धालुओं के मन में प्राकृतिक सौंदर्य की अपार छटा बिखेर रहा है. श्री नैना देवी के दरबार में पंजाब, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, यूपी-बिहार और अन्य प्रदेशों से काफी संख्या में श्रद्धालु नवरात्र पूजन के लिए पहुंचे और अगले 10 दिनों तक इसी तरह माता का पूजन होता रहेगा. 

 

श्री नैना देवी जी से जुड़ी कथाएं

पुरानी कथाओं के मुताबिक, कहा जाता है की माता सती के नेत्र यहां पर गिरे थे इसलिए इस मंदिर का नाम श्री नैना देवी जी पड़ा है. कहा जाता है कि जब प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था तो उसमें माता सती और भगवान शिव शंकर जी को नहीं बुलाया था लेकिन माता सती हठ करके अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में चली गईं थी.



 परंतु, वहां पर भगवान भोले शंकर जी का अपमान देखकर और क्रोधित होकर यज्ञशाला में ही माता सती कूद गईं थी. जिसके बाद, माता सती के अर्धजले शरीर को भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल पर उठाकर ब्रह्मांड का भ्रमण किया था. फिर, भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र के द्वारा माता सती के अंगों काटकर जहां डाला और जहां-जहां भी माता सती के अंग गिरे उन जगहों पर शक्तिपीठों की स्थापना हुई. माता श्री नैनादेवी जी के दरबार में माता सती के नेत्र गिरे इसलिए इस शक्तिपीठ का नाम श्री नैना देवी पड़ा.




माता श्री नैना देवी ने किया था महिषासुर का वध

 

एक अन्य कथा के अनुसार, कहा जाता है कि माता श्री नैना देवी ने महिषासुर राक्षस का वध किया था और देवताओं ने उसमें खुश होकर जय नयने उद्घोष किया था. जिससे इस शक्ति पीठ का नाम श्री नैना देवी पड़ा और जो भी श्रद्धालु माता के दरबार में आते हैं माता रानी उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.

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