राष्टीय एकता पर हिंदी निबंध।

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राष्टीय एकता पर हिंदी निबंध।

 





भूमिका, भारत में उत्पन्न समस्याएँ, दूषित राजनीति, असमानताओं में समानता , उपसंहार ।

              किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बहुत से लोगों का मिलकर कार्य करना संगठन कहलाता हैं । संगठन ही सभी शक्तियों की जड़ हैं।  एकता के बल पर ही अनेक राष्ट्रों का निर्माण हुआ है, एकता एक महान् शक्ति है।


 एकता के बल पर ही छोटे से छोटे व्यक्ति  भी अपना कार्य पूर्ण कर लेता है। जिस परिवार में एकता होती है, वहाँ सदा सुख-शांति रहती हैं । एकता के बल पर  बलवान शत्रु को भी पराजित किया जा सकता है। छोटे-छोटे जीव-जंतु भी संगठन के बल पर अपने सभी कार्य पूर्ण कर लेता हैं। मधुमक्खियाँ एकत्रित होकर एक बहुत बड़े रस के पिंड का निर्माण कर लेती हैं।

 

अल्पानामापि वस्तूनाम संहाति कार्यसाधिका ।

 

तृर्णं गुणत्वमान्नैः वध्यन्ते मत्त हस्तिनः ।।

 

अर्थात् छोटी-छोटी वस्तुओं का समूह भी कार्य को सिद्ध करने में समर्थ होता है। जैसे छोटे –छोटे तृण रस्सी के रूप में परिणित हो  जाते हैं तो उससे मतवाले हाथी भी बाँधे जा सकते हैं। एकता वह शक्ति है, जिसके बिना कोई भी देश   उन्नति नहीं कर सकता।


 एकता के अभाव के कारण ही हम लोग सैकड़ों वर्ष अंग्रेज़ों के गुलाम रहे । हमारी कमजोरी का फायदा उठाते हुए  उन्होंने मनमाने अत्याचार किए, भारत की संस्कृति पर कुठाराघात किए। उन लोगों ने हमारी मान –मर्यादाएं लूटी और हम परतंत्रता की बेड़ियों में इस प्रकार जकड़ गए कि उनसे मुक्ति की कल्पना ही संदिग्ध  प्रतीत होने लगी ।

 

स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद से ही भारत में अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती रही हैं। इनमें साप्रदायिक समस्या प्रमुख हैं । हमारे देश का  विभाजन भी इसी समस्या के आधार पर हुआ। कुछ स्वार्थी तत्त्वों ने देश में सांप्रदायिकता की आग फेला दी , जिससे आज हम मुक्त नहीं हो पाए हैं।


 हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए और प्रगति के लिए राष्टीय एकता पर विशेष ध्यान देना चाहिए । प्रत्येक    वर्ग में एकता के विना देश कदापि उन्नति नहीं कर सकता। वर्तमान देश में अनुशासन  तथा आपसी सहयोग के वातावरण अति आवश्यकता है।

 

कुछ वर्षों से हमारे देश में दूषित राजनीति से विषैला वातावरण बनता जा रहा हैं । धर्माधता के कारण लोग आपस मे झगड़ रहे हैं ।   अपने-अपने स्वार्थों में लिप्त लोग आपसी प्रेम को भूल रहे हैं। स्वार्थ की भावनाओं, भाषावाद के कारण लोग प्रभावित  हुई है। हमारे देश के लोगों में संकीर्णता की भावना पनप रही है और व्यापक दृष्टि कोण लुप्त होता जा रहा हैं ।



 इसलिए विश्व -  बंधुत्व की भावना अपने परिवार तक ही सीमित होकर रह गई है। अगर किसी ने  प्रयास भी किया तो वह प्रदेश स्तर तक ही जाकर असफल हो गया। इसके परिणामस्वरूप सांप्रदायिक ताकतें मजबूत हो रही हैं। लोग एक –दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं ।

जम्मू-कश्मीर, असम आदि प्रदेशों में नर-संहार के किस्से सुनने को मिलते  हैं । इन सबके के लिए वे स्वार्थी नेत जिम्मेवार हैं ,  जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए देश को दाँव पर लगा रहे हैं। अनेक विषमताओं के होते हुए भी जब हम राष्टीय एकता के  विषय में विचार करते हैं तो पता चलता है कि इस राष्ट्रीय एकता के कारण धार्मिक भावना ,   दार्शनिक दृष्टिकोण, साहित्य, संगीत और नृत्य आदि अनेक ऐसे तत्त्व हैं, जो देश को एकता के सूत्र में बंधे हुए हैं । 


बस सरकार  और जनता को एकजुट होकर प्रयास करना होगा। आज राष्ट्रीय एकता के लिए व्यक्तिगत की सुरूक्षा का   प्रबंध करना आवश्यक है। शत्रुपक्ष पर कठोर दंडनीति लागू की जाए। पुलिस की गतिविधियों पर भी नियंत्रण रखा जाए । 



आज सभी संगठनों को मिलकर राष्ट्रीय एकता के लिए प्रयास करना चाहिए। हमारी स्वतंत्रता राष्टीय एकता पर आधारित हैं । इसके अभाव  में हमारी स्वतंत्रता भी असंभव है। अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए हमें भरपूर प्रयास करना चाहिए ,  एकजुट होकर राष्टीय एकता  की रक्षा करनी चाहिए, जिससे हम और हमारे वंशज स्वतंत्रता की खुली हवा में सांस लेते रहें ।



 यद्यपि विघटन की प्रवर्ती हमें झकझोर  देती है और राष्ट्रीय एकता को संकट-सा प्रतीत होने लगता है, परंतु देश की आत्मा बलपूर्वक एकरूपता को प्रकट कर देती हैं ।

 

हर्ष की बात है कि आज हमारा देश राष्ट्रीय एकता के लिए राष्ट्र की आय का तीन प्रतिशत व्वय कर रहा है और हमारी   भारत सरकार इसके लिए हर संभव प्रयास कर रही है। हम अपने देशवासियों से यह निवेदन कर रहे हैं कि वे अपने पूर्वजों के समान ही एकता के सूत्र में बंध जाएं , क्योंकि सही अर्थ में देश की उन्नति ही आपकी उन्नति हैं ।

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