ऊपर की गई चर्चा में हमने देखा कि किस तरह से उपभोक्ता को विभिन्न समस्याओ का सामना करना पड़ता हैं । निशिचत ही उसे निर्माता या विक्रेता के शौषन से सचाने के लिये सहायता की आवश्यकता है कि ताकि वह अपने प्रयोग की वस्तुएं अपनी जरूरत के अनुसार चुन सके तथा खरीद सके।
ऐसी समस्या भरी परिस्थितियों में जो साधन उपभोक्ता का मार्गदर्शन करते है उसे शोषण से बचाते हैं उन्हें उपभोक्ता सहायता साधन (Consumer Aids) कहते हैं । निर्माता तथा विक्रेता द्वारा , बहुत सी स्वेच्छिक संस्थाओं द्वारा तथा सरकार द्वारा ग्राहक को अनेक ऐसे साधन उपलब्ध करवाये गए हैं जो खरीददारी करते समय वस्तुओं के चयन में उसकी सहायता करते हैं।
यदि उसे यह महसूस होता है कि उसके हितों का हनन हो रहा हैं तो वह उसके विरुद्ध अपनी आवाज उठा सकता है, उचित अधिकारी को शिकायत कर सकता है तथा दोषी को दंडित करवा सकता हैं । यह सहायता
साधन निम्नलिखित हैं- 1. विज्ञापन (Advertisement)
2. पैकिंग (Packing)
3. लेबलिंग (Labelling)
4. मानकीकरण (Standardization)
5. सहकारी समितियाँ (Cooperative Societies)
6. स्वचालित संस्थायें (Autonomous Bodies)
7. उपभोक्ता निवारण संगठन (Consumer Redressal Cells)
8. खाद्य कानून (Food Laws)
9. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act)
(1,2,3) विज्ञापन, पैकिंग तया
लेबलिंग (Advertisement, Packing and labeling) – इन तीनों की चर्चा
ऊपर विस्तृत रूप से की जा चुकी है। व्यापारियों द्वारा दिये जाने वाले विज्ञापन यदि सही हों तो वह उपभोक्ता को उचित जानकारी प्रदान कर खरीददारी में उसका मार्गदर्शन करते हैं। यदि विज्ञापन भ्रामक हों तथा उपभोक्ता इससे गुमराह हुआ हो तो वह अपनी शिकायत भारतीय विज्ञापन मानक परिषद्, मुम्बई (Advertisement Standard of india) में कर सकता हैं
। उसी प्रकार वस्तुओं की पैकिंग भी एक प्रकार से सहायता साधन है। पैकिटों में बंद वस्तुए जैसे दालें, मसले आदि खुली वस्तुओं की अपेक्षा बढ़िया तथा सुरक्षित होती हैं। उनकी किस्म व मात्रा से छेड़-छाड़ नहीं की जा सकती । पै किटों में बंद वस्तुओं पर लगे हुये लेवल भी ग्राहक को उन वस्तुओं के उपलक्ष्य में काफी जानकारी देते हैं । लेबलों को ध्यानपूर्वक पढ़ने से उपभोक्ता को वस्तुओं के चुनाव में बहुत मदद मिलती है। लेबल लगी हुई पैकिट बन्द वस्तुएं संबंधी सुरूक्षा निशिचत करने के लिए भी सरकार ने एक अधिनियम जारी किया हुआ है जिसे 'डिब्बाबन्द वस्तु अधिनियम कहते हैं ।
4. मानकीकरण (Standardization)-उपभोक्ता द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली बहुत सी वस्तुओं की गुणवता का स्तर उचित हो, इसके लिये सरकार भी हमें बहुत से सहायता साधन उपलब्ध करवाती हैं और उनमे से महत्वपूर्ण
मानकीकरण। मानकीकरण से तात्पर्य उस प्रणाली से है जिसके द्वारा सरकार वस्तुओं की गुणता को नियत्रण करता है । विभिन्न प्रकार के बहुत से उत्पादनों के लिये सरकार द्वारा कुछ मानक (Standards) निर्धारित किए गए हैं ,तथा जो उत्पादन जांच की एक विशेष प्रक्रिया के बाद उन मानकों की पूर्ति करते हैं उन्हें एक विशेष चिह्न प्रयोग करने का अधिकार दे दिया जाता हैं ।
जिस उत्पादन पर सरकार का कोई मानक चिह्न लगा हुआ हो, उपभोक्ता उसे विश्वाश के साथ खरीद सकता है।
5. सहकारी समितियाँ (Co-operative Societies)- कई बार उपभोक्टया मिल कर सहकारी समितियाँ बना लेते हैं । प्रायः इस प्रकार की समितियाँ गाँवों में बनती हैं तथा कृषि सम्बन्धी खरीददारी के लिये होती हैं । जैसे खाद या बीज आदि खरीदने के लिये।
लेकिन घरेलू उपभोग की वस्तुयें भी इनके द्वारा खरीदी जा सकती हैं। एक स्थान पर रहने वालें कुछ परिवार मिल कर एक समिति बनाते हैं तथा सरकार से उसे पंजीकृत करवाते हैं।
इस प्रकार की समितियों को बहुत सी वस्तुए खरीदने के लिए कई प्रकार के करों में छूट मिलती है। यह सीधे उत्पादक से या थोक विक्रेता से ज़रूरत की वस्तुए सस्ते दामों में खरीद कर उपभोक्ताओं को उपलब्ध करवाती हैं। इसके अतिरिक्त ऐसी संस्थायें क्योंकि लाभ नहीं कमातीं इसलिए उपभोक्ता को वस्तुए बाजार की अपेक्षा काफी कम दामों पर मिल जाती हैं। समिति के लिये खरीददारी क्योंकि समिति के सदस्य ही करते हैं ।
6. स्वचालित संस्थायें (Autonomous Bodies)-कुछ autonomous Bodies भी देश में कार्यरत हैं जो उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करती हैं जैसे मदर डेरी या केन्द्रीय भण्डार आदि । यह प्रायः एसी संस्थाएं होती हैं जहाँ एक ही छत्त के नीचे बहुत सी विभिन्न प्रकार की वस्तुयें उपलब्ध होती हैं। मूल्य उचित व निशिचत होते हैं , वस्तुए पैकीट बंद होती हैं, तथा उनकी प्रकार उत्तम। इसलिये धोखाधड़ी की गुंजाइश नहीं होती।
7. उपभोक्ता निवारण संगठन (Consumers Redressal Cells)- यह उपभोक्ता संरक्षण संगठनों
Protection Organisations) का भाग होते हैं जो उपभोक्ताओं को निर्माताओँ व विकर्ताओं की धोखादड़ी के बारे में सजग करवाते हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न उत्पादनों के उचित मूल्य तथा गुणवत्ता की जानकारी भी देते हैं । यदि उपभोक्ता को यह अहसास हो कि उसे वस्तु निर्धारित से कम स्तर की मिली है, उसमें मिलावट है, या उनमें कोई हेर – फेर है तो
वह इन निवारण संगठनों में शिकायत दर्ज करवा सकता है, जो फिर आवश्यकतानुसार कार्यवाही करती हैं ।
8. खाद्य कानून (Food Laws)-उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने लिये तथा व्यापारियों पर लगाम कसने के लिए हमारे देश में बहुत से खाद्य पदार्थों सम्बन्धी कानून भी बने हुये हैं। इन कानूनों को बनाने व लागू करने का मुख्य उदेशय है उपभोक्ता को सुरक्षित एवं पौष्टिक खाद्य सामग्री उपलब्ध करवाना, खाद्य मिलावट के हानिकारक प्रभावों से उसकी रक्षा करना हैं तथा व्यापारियों में अनैतिक आचरण को रोकना व आवश्यकता पड़ने पर उन्हें दंड देना ।
'खाद्य मिलावट निषेध अधिनियम' (P.F.A.), 'फल उत्पादन आदेश' (FPओ), मास उत्पादन नियत्रण आदेश , हानिकारक औषधि अधिनियम तथा औषधि एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम ।
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