अनंत चतुर्दशी के व्रत का शास्त्रों में बहुत ही खास महत्व बताया गया है। अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा होती है और हाथ में 14 गांठों वाला धागा अनंत बांधा जाता है। ऐसा करने से मां लक्ष्मी की प्रसन्न होती है।
अनंत चतुर्दशी की पूजा में कथा का पाठ करने का बहुत
ही महत्व माना गया है। आप भी जानें यह कथा और इसका पाठ करें।
अनंत चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत और पर्व है, जो भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है और व्रत धारण किया जाता है।
यह पर्व विशेष रूप से उनके लिए महत्वपूर्ण है जो अपने जीवन में
समृद्धि, शांति, और अनंत कृपा की कामना करते हैं। इस दिन
गणेशोत्सव का समापन भी होता है, जब गणपति बप्पा की मूर्ति का विसर्जन
किया जाता है।
अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा: एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया और यज्ञ मंडप का निर्माण बहुत ही सुंदर व और अद्भुत रूप से किया गया। उस मंडप में जल की जगह स्थल तो स्थल की जगह जल की भ्रांति होती थी।
इससे दुर्योधन एक स्थल को देखकर जल कुण्ड में जा गिरे। द्रौपदी ने यह देखकर
उनका उपहास किया और कहा कि अंधे की संतान भी अंधी होती है। इस कटुवचन से दुर्योधन
बहुत आहत हुए और इस अपमान का बदला लेने के लिए उसने युधिष्ठिर को द्युत अर्थात जुआ
खेलने के लिए बुलाया और छल से जीतकर पांडवों को 12 वर्ष वनवास दे दिया।
वन में रहते उन्हें अनेकों कष्टों को सहना
पड़ा। एक दिन वन में भगवान कृष्ण युधिष्ठिर से मिलने आए। युधिष्ठिर ने उन्हें सब
हाल बताया और इस विपदा से निकलने का मार्ग भी पूछा। इस पर भगवान कृष्ण ने उन्हें
अनंत चर्तुदशी का व्रत करने को कहा और कहा कि इसे करने से खोया हुआ राज्य भी मिल
जाएगा। इस वार्तालाप के बाद श्रीकृष्णजी युधिष्ठिर को एक कथा सुनाते हैं।
प्राचीन काल में एक ब्राह्मण था उसकी एक कन्या थी जिसका नाम सुशीला था। जब कन्या बड़ी हुई तो ब्राह्मण ने उसका विवाह कौण्डिनय ऋषि से कर दिया। विवाह पश्चात कौण्डिनय ऋषि अपने आश्रम की ओर चल दिए।
रास्ते में
रात हो गई जिससे वह नदी के किनारे आराम करने लगे। सुशीला के पूछने पर उन्होंने
अनंत व्रत का महत्व बता दिया। सुशीला ने वहीं व्रत का अनुष्ठान कर 14 गांठों वाला
डोरा अपने हाथ में बांध लिया। फिर वह पति के पास आ गई।
कौण्डिनय ऋषि ने सुशीला के हाथ में बांधे डोरे
के बारे में पूछा तो सुशीला ने सारी बात बता दी। कौण्डिनय ऋषि सुशीला की बात से
अप्रसन्न हो गए। उसके हाथ में बंधे डोरे को भी आग में डाल दिया। इससे अनंत भगवान
का अपमान हुआ जिसके परिणामस्वरूप कौण्डिनय ऋषि की सारी संपत्ति नष्ट हो गई।
सुशीला ने इसका कारण डोर का आग में जलाना बताया।
पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए ऋषि अनंत भगवान की खोज में वन की ओर चले गए। वे भटकते-भटकते निराश होकर गिर पडे़ और बेहोश हो गए। भगवान अनंत ने उन्हें दर्शन देते हुए कहा कि मेरे अपमान के कारण ही तुम्हारी यह दशा हुई और विपत्तियां आई।
लेकिन तुम्हारे पश्चाताप से मैं तुमसे अब प्रसन्न हूं। अपने आश्रम में जाओ और 14 वर्षों तक विधि विधान से मेरा यह व्रत करो। इससे तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। कौण्डिनय ऋषि ने वैसा ही किया और उनके सभी कष्ट दूर हो गए और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति भी हुई। श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया। जिससे पाण्डवों को महाभारत के युद्ध में जीत मिली।
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