पंचायती राज का मुख्य भाव है-जनता द्वारा चुनी गई वह संस्था जो गाँव की विभिन्न व्यवस्थाओं का प्रबंध करती हैं। गावं के विकास के साधन जनता सहमति से जुटाती है। भारतवर्ष में पंचायत की व्यवस्था बहुत ही प्राचीन कल से चली आ रही हैं। वहाँ की जनता का पंचायत में पूर्ण विश्वास रहा है।
पंचायती राज अर्थात् पंचायतों का गठन उन आदमियों पर आधारित हुआ करता था जिनका चुनाव गाँव-बिरादरी के सामने गाँव के लोगों द्वारा ही होता था। यही पाँच व्यकि मिलकर एक मुखिया चुनते थे , जिन्हे सरपंच कहा जाता था। बाकी सभी पंच या सदस्य पंचायत कहलाते थे। दूर-दराज के देहातों में रहने वाले लोगों की अपनी छोटी-छोटी समस्याओं को सुलझाने के लिए राजधानी व शहर के चक्कर नहीं काटने पड़ते थे ।
गावं
की सम स्या गावं में ही सुलझा ली जाती थीं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर इन पंचायतों व
पंचायती राज व्यवस्था का गठन किया
जाता था और आज भी किया जा रहा है। गाँव देहात की कोई भी
समस्या उत्पन्न होने पर ये पंचायतें उनका निर्णय निष्पक्ष रूप से करते हैं । दोनों पक्षों की बाते सुनने के बाद पंचों की सहमति से सरपंच जो भी
निर्णय करता था, उसे पंच परमेश्वर का फैसला मानकर स्वीकार कर लिया जाता था । ऐसी पंचायती राज परम्परा प्राचीनकाल से ही चली आ
रही थी।
भारत के लिए यह व्यवस्था कोई नई व्यवस्था नहीं थी। यह एक प्राचीन बुनियाद व्ययस्था हैं । पहले बड़े –बड़े सम्राट भी इन्ही पंचायतों के माध्यम से अपनी न्याय-व्यवस्था को जन-जन तक पहुँचाया करते थे। आज भी शक्ति का विकेन्दरिकर्ण करने के लिए पंचायती राज की व्यवस्था को अपनाया गया है। पंचायत के ऊपर कई गाँवों की खण्ड पंचायत होती थी । यदि स्थानीय पंचायत कोई निर्णय नहीं कर पाती या फिर उसको निर्णय किसी पक्ष को स्वीकार नहीं होता था तो मामला खंड पंचायत के सामने लाया जाता था। खण्ड पंचायत के ऊपर होती थी पूरे जिले की 'सर्वग्राम पंचायत'
भारत में अंग्रेज़ी शासन व्यवस्था लागू होने पर इन पंचायतों की उपेक्षा कर दी गई और अपनी न्याय प्रणाली को थोप दिया गया था। किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतवर्ष ने पंचायती राज व्यवस्था को पुनः संगठित किया । फलतः भारतीय संविधान की रचना करते समय इस विषय को नीति-निदेशक सिद्धान्तों के अन्तर्गत रखा गया। सन् 1993 में वर्तमान आर्थिक ,राजनीतिक और प्रशानिक व्यव स्था में पंचायती राज पर वाद-विवाद के बाद इसका संशोधित विधेयक बहुमत से संसद में पास कर दिया गया ।
यह अत्यन्त सुखद विषय है कि भारतवर्ष में फिर से पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की गई हैं । यह अपेक्षा पहले की अपेक्षा अधिक सक्रिय है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह भी है कि इसमें महिलाओं की भूमिका भी बढ़ी हैं ।
महिलायें भी पंचायत मेम्बर एवं सरपंच चुनी जाती हैं। पूरे देश में इससे महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति जागृति आई हैं । आज ग्रामीण विकास के कई कार्यक्रम इन पंचायतों के माध्यम से संपादित किए जा रहे हैं। निश्चय ही गावों में पंचायतों के पुनर्गठन से गावों के लोगों में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है।
देश में लोकतंत्र की मज़बूती के लिए पंचायतों का सुचारु रूप से चलना नितांत आवश्यक है। किन्तु थोड़ा अफसोस भी है कि जहाँ प्राचीनकाल में पंचायती राज के गठन में आपसी सहमति ही प्रधान थी आज पंचायत के चुनाव भी राजनीति के अखाड़े बन गए हैं और आपसी सहमति की अपेक्षा वोट की शक्ति बन गई हैं । इससे गाँव के आपसी सहयोग व प्रेम की भावना को ठेस पहुँची है।
0 टिप्पणियाँ