उत्तर भारत में कपास का उत्पादन कैसे बढ़ाएं, कृषि वैज्ञानिकों ने बताए तरीके

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उत्तर भारत में कपास का उत्पादन कैसे बढ़ाएं, कृषि वैज्ञानिकों ने बताए तरीके




उत्तरी भारत में बदलते मौसम को मध्य नजर रखते हुये कपास की उत्पादकता बढ़ाने के लिए पारस्परिक विश्लेषण आयोजन



सिरसा केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान में उत्तरी भारत में बदलते मौसम को मद्देनजर रखते हुए कपास की उत्पादकता बढ़ाने के लिए पारस्परिक विश्लेषण सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सी.सी.एस.एच.ए.यू. हिसार के कुलपति डा. बी.आर. कंबोज ने की तथा सह-अध्यक्ष के तौर पर केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर के निदेशक डा. वाई. जी. प्रसाद मौजूद रहे। इस आयोजन में मंच संचालन प्रधान वैज्ञानिक डा. सतीश सैन ने किया।



कार्यक्रम में डा. बी.आर. कंबोज ने सभी वैज्ञानिकों व अधिकारियों को कपास की उत्पादकता बढ़ाने व भविष्य में सम्भावित सभी प्रकार के कीट एवं रोगों के नियंत्रण के लिए नई-नई खोज व तकनिकों को विकसित करने के लिए प्रेरित किया तथा उनको प्रसार अधिकारियों के माध्यम से किसानों के खेतों तक पहुंचाने के लिए निर्देश दिए। डा. कम्बोज, ने सूक्ष्म सिंचाई पद्धति व पोषक तत्वों के उचित प्रबंधन के लिए किसानों को प्रेरित करने का आग्रह किया।



प्रधान वैज्ञानिक व अध्यक्ष डा. ऋषि कुमार ने भाग लेने वाले सभी वैज्ञानिकों, अधिकारियों व हितधारकों का स्वागत किया और उत्तरी भारत में कपास की वर्तमान फसल अवस्था के बारे में सामान्य जानकारी दी। उन्होंने इस चौथे पारस्परिक विश्लेषण सम्मेलन में भाग लेने के लिए सभी वैज्ञानिकों, अधिकारियों व तीनों राज्यों के विश्वविद्यालयों के निदेशक, अनुसंधान व निजी हितधारकों, प्रगतिशील किसानों तथा ऑनलाईन जुड़ने वाले सभी प्रतिभागियों का बहुत-बहुत धन्यवाद और आप सभी ने इस मिटिंग को उपयोगी बनाने में बहुमूल्य समय व सुझाव दिए।




कार्यक्रम में डा. वाई. जी. प्रसाद, ने उत्तरी भारत में कपास उत्पादन में आने वाली समस्याओं तथा कपास के क्षेत्रफल के साथ-साथ प्रति एकड़ उत्पादकता बढ़ाने के लिए विस्तृत में चर्चा की।



पी.ए.यू. बठिंडा के निदेशक डा. परमजीत सिंह, प्रधान वैज्ञानिक डा. अमरप्रीत सिंह, प्रधान वैज्ञानिक डा. सतीश सैन, अटारी जॉन-1 निदेशक डा. परवेन्दर श्योराण, ने भी कार्यक्रम में संबोधित किया। उन्होंने कपास की किस्मों विषेशतया बी.टी. संकर के चुनाव के बारे में जानकारी तथा भविष्य में उपयुक्त किस्मों के चुनाव में रखे जाने वाली सावधानियों, कपास उत्पादन तकनीकी विशेषकर सघन पौधा रोपण तकनीकी, कपास की फसल में लगने वाले कीटों खास कर सफेद मक्खी व गुलाबी सुंडी के जीवन चक्र की पहचान व प्रबंधन के बारे में बताया। साथ ही कार्यक्रम में कपास की फसल में लगने वाले रोगों की पहचान व उनके समन्वित प्रबंधन, उत्तरी भारत के जॉन-1 में कपास उत्पादन को बढ़ाने के लिए नई-नई तकनिकों का प्रचार-प्रसार विभिन्न कार्यक्रमों के बारे में चर्चा की गई। 



कार्यक्रम में कीटों के बारे में विस्तृत जानकारी दी तथा इनके प्रबंधन के लिए नये प्रोग्राम बनाने के बारे में चर्चा की।



पी.ए.यू. लुधियाना के प्रधान वैज्ञानिक डा. विजय कुमार, एस. के. एन. आर. ए. यू. बीकानेर के निदेशक-अनुसंधान डा. विजय प्रकाश, जे.ए.यू. जोधपुर के निदेशक-अनुसंधान डा. एम.एम. सुन्दरीया, एच.ए.यू. हिसार के निदेशक-अनुसंधान डा. राजबीर गर्ग ने अपने-अपने विश्वविद्यालयों के द्वारा कपास उत्पादन को बढ़ाने के लिए चलाए जा रहे विभिन्न प्रचार-प्रसार कार्यक्रमों व कपास की फसल के बारे में सामान्य जानकारी दी। रासी सीड्स की ओर से केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय स्टेशन सिरसा के साथ किए जा रहे अनुसंधान व विकास कार्यों के बारे में जानकारी दी।



कार्यक्रम में वैज्ञानिकों, अधिकारियों व तीनों राज्यों के विश्वविद्यालयों के निदेशक, अनुसंधान व निजी हितधारकों, कृषि आदान विक्रेता, प्रगतिशील किसानों के भाग लिया।



प्रधान वैज्ञानिक डा. एस. के. वर्मा ने कार्यक्रम में भाग लेने वाले सभी वैज्ञानिकों व अधिकारियों को केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय स्टेशन सिरसा की ओर से धन्यवाद ज्ञापित किया।

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