दीपावली पर पटाखों का प्रदूषण पर निबंध ।

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दीपावली पर पटाखों का प्रदूषण पर निबंध ।

 

              


दीपावली भारत में मनाया जाने वाला सुप्रसिद्ध एवं महत्त्वपूर्ण त्योहार है। इसका धार्मिक ही नहीं अपितु सामाजिक महत्व भी  अत्यधिक है। यह केवल हिन्दुओं का त्योहार ही नहीं है, अपितु देश के हर धर्म के लोग इसे मनातें हैं । दीपावली का अर्थ होता है-दीपों की पंक्ति। इस त्योहार पर लोग अपने घरों को दीपों के द्वारा सजाते हैं। इसलिए इसे प्रकाश का त्योहार भी कहा जाता  है। इस त्योहार को श्रीराम के चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटने की खुशी में मनाते हैं। इस दिन धन की देवी लक्ष्मी   जी की पूजा होती हैं।  

 

 

निश्चय ही यह त्योहार खुशियों का त्योहार है, किन्तु इस त्योहार के मनाने में अब कुछ बुराइयाँ भी समिलित हो गई हैं, जैसे  जुआ खेलना, शराब आदि का सेवन करना तथा अत्यधिक पटाखों का जलाना आदि। आजकल पटाखे इतनी अधिक मात्रा में जलाए  जाते हैं कि जिससे इस त्योहार का सारा महत्त्व समाप्त हो जाता है।

 

पटाखों के चलाने से पर्यावरण प्रदूषण में कई गुणा वृद्धि होती है। प्रदूषण की समस्या  पहले ही विश्व के लोगों के लिए एक बहुत गम्भीर समस्या बनी हुई है। आज जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण अपनी चरम सीमा को छू रहा हैं ।



 राष्टीय और  अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या के समाधान खोजने के प्रयास किए जा रहे हैं, किन्तु कोई भारतवर्ष में पटाखों के अत्यधिक प्रयोग के कारण वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण की मात्रा कई गुणा बढ़ जाती हैं। कारखानों से  निकलने वाली विषैली गैसों से पहले ही वायु प्रदूषित होती है। दीपावली के अवसर पर पटाखे जलाने से उन्मे से निकलने वाली  जहरीली गैस से वायु इतनी प्रदूषित हो जाती है कि साँस लेना भी दूभर हो जाता है।




 चारों और पटाखों से निकलने वाला धुआँ फैल जाता हैं इससे आँखों में जलन होने लगती है। फेफड़ों में जहरीले धुएं  के पहुंचने से कई प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। इस कारण  खुशियों का त्योहार मानव-जीवन के खतरे का त्योहार बनता जा रहा है।

पटाखों के अन्धा-धुंध जलाने से अनेक दुर्घटनाएँ भी होती हैं। पटाखों के लापरवाही से जलाने पर बच्चों के हाथ –पर जल  जाते हैं। दूर जाकर गिरने वाली आतिशबाजी से जाग लगने का भय भी बना  रहता  हैं।

 

दीपावली के अवसर पर पटाखों के जलाने से ध्वनि प्रदूषण में भी वृद्धि होती हैं। कई पटाखों से इतनी त्रीव ध्वनि निकलती है की  कान के परदों के फटने का खतरा बढ़ जाता है। अधिक ध्वनि प्रदूषण के कारण कई बीमारियों का भी खतरा रहता   है। अधिक ध्वनि के कारण दिल की धड़कन बढ़ जाती है। तनाव भी बहुत अधिक होता हैं ।      ध्वनि प्रदूषण का मानव स्वभाव  पर भी बुरा प्रभाव पड़ता हैं । कहने का भाव है की दीपावली के त्योहार का प्रदूषण के कारण मजा किरकिरा हो जाता है।

 

यदि हम चाहते हैं कि दीपावली के त्योहार को मनाने का सही आनन्द प्राप्त करें तो हमें पटाखों के जलाने पर पूर्ण रूप से पाबन्दी लगानी होगी। उसे सहज भाव व सही ढंग से मनाना होगा। भारत सरकर ने पिछले वर्ष से पटाखों से जलाने वाली दुर्घटनाओं  और वायु व ध्वनि प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए पटाखों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया हैं।



 पटाखों की बजाए दीप जलाने  व फुल-झड़ियों का प्रयोग करना चाहिए। पटाखों के जलाने से होने  वाली हानियों के प्रति समाज में जागरूकता भी लानी चाहिए तभी इस बुराई से छुटकारा मिल सकता है। परम्परागत तरीकों से दीपावली का त्योहार मनाने से उसके वास्तविक महत्व का  सन्देश जनता में जाएगा। हमें स्वयं अपने पर्यावरण की स्वच्छता एवं शुद्धता को ध्यान में रखते हुए दीपावली पर न तो स्वयं पटाखे  जलाने चाहिएँ और दूसरों को भी पटाखे न जलाने की प्रेरणा देनी चाहिए। तभी हम समाज में शुद्ध एवं स्वच्छ वातावरण में  दीपावली के त्योहार का सही आनन्द प्राप्त कर सकेंगे।

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