भारतीय किसान पर निबंध ।

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भारतीय किसान पर निबंध ।

 

       


भारतवर्ष कृषि प्रधान देश है। कृषि ही यहाँ की अर्थव्यवस्था का मूल आधार हैं । देश की कुल श्रम शक्ति का लगभग 55 प्रतिशत भाग कृषि एवं इससे सम्बन्धित उद्योग-धन्धों से अपनी आजीविका कमाता है। प्राचीन काल में कृषक अपनी खेती –बड़ी के  काम से सन्तुष्ट था। कृषि अर्थात् खेती के साथ-साथ पशुओं को भी अपना धन मानता था । 



 भारतीय किसान को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। अंग्रेज़ों के शासंन कल में भी भारतीय कृषक अंग्रेजों और   जमींदारों के तरह-तरह के जुल्मों का शिकार हुआ। उसका जीवन जीना ही कठिन हो गया था । आजादी के बाद  किसान की दशा में कुछ सुधार हुआ।




 किन्तु जिस प्रकार कृषकों के शहरों की ओर पलायन करने और उनकी आत्महत्या की खबरें  सुनने को मिलती हैं, उससे पता चलता है कि उनकी स्थिति अच्छी नहीं है। उनकी  हालत इतनी खराब हो गई है कि कोई भी  किसान अपने बेटों को कृषक नहीं बनाना चाहता है। अन्नदाता कहलाने वाले कृषक  यह दशा हो जाना चिंता का विषय है।

 

'अन्नदाता' 'सृष्टि पालक' कहलाने वाला कृषक बहुत ही सरल और सहज  जीवन जीता था । उनके पास किसी   प्रकार का दिखावा नहीं था। उसके जीवन की आवश्यकताएँ भी वहुत कम थीं। वह सादा भोजन खाकर भी स्वर्ग की  अनुभूति करता था। कठोर परिश्रम करने पर भी उसके जीवन की आवश्यकताएँ पूरी नहीं होती थी । आज  के किसान को घटते भू – क्षेत्र के  कारण गरीवी की रेखा से नीचे जीवनयापन करना पड़ता है।




 गर्मी, सर्दी, वर्षा हर समय मेहनत करनी पड़ती हैं । इसके बावजूद   उसे फसलों से उचित आय प्राप्त नहीं हो सकती। कृषि संबंधी उपकरण, बिजली, खाद आदि महंगे होने के कारण    जीवन-स्तर और भी निम्न हुआ है। भारतीय कृषकों की गरीबी का अन्य प्रमुख व मानसून की अनिश्चितता के कारण प्रायः किसानों को कई प्रकार की कठिनाइयों  का सामना करना पड़ता हैं। कभी सूखे की मार  पड़ती है तो कभी बाढ़ में सब कुछ बह जाता है। कृषि में श्रमिकों की साल भर आवश्यकता नहीं होती । इसलिए साल में कई मास उनको खाली बैठना पड़ता है। कृषकों के शहरों की ओर पलायन का यह भी  एक बड़ा कारण हैं ।




 स्वतन्त्रता के पश्चात् कृषकों के सुधार के लिए अनेक आयोगों व कमेटियों का गठन किया गया तथा उन्हे कृषकों के जीवन-सुधार के अनेक सुझाव दिए गए। फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्यों की भी घोषणाएं की गई किन्तु समय पर कभी भी फसल का उचित मूल्य प्राप्त नहीं हुआ।

 

कृषक की गरीबी का एक प्रमुख कारण उसकी अनपढ़ता भी रहा है। कृषकों को खेती के नए-नए तरीके एवं आधुनिक कृषि उपकरणों के सम्बन्ध मे  उचित जानकारी न होने के कारण फसलों से उचित  लाभ नहीं मिल सकता। 




इस दिशा में भारत सरकार ने यद्यपि कई कदम उठाए हैं ,जैसे किसान कॉल सेंटर ,   इससे बिना  कोई शुल्क दिए कृषक अपने खेती के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त रेडियो व टीवी पर भी कृषकों चेनलों की शुरुआत की गई है। इसके अतिरिक्त केन्द्र सरकार ने देश के ग्रामीण क्षेत्र में सरल नालेज  सेंटर्स की भी स्थापना की हैं। इन केन्द्रों पर आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी व दूर संचार तकनीक का उपयोग किसानों को जानकारी उपलबद्ध करने के लिए  किया जाता है।




 

भारत सरकार ने किसानों को खाली समय में काम देने के लिए राष्ट्रीय रोजगार गरंटी योजना का 2006 में शुभारभ किया ।  यह अधिनियम ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को वर्ष में कम –से –कम 100 दिन के ऐसे रोजगार की गरंटी देता हैं।  इस योजना में 33 प्रतिशत लाभ महिलाओं को दिया जाता है।

 

आज का कृषक यद्यपि पहले की अपेक्षा बहुत जागरूक हो चुका है। वह आज संगठन बनाकर अपनी जरूरी मांगों को सशक्त रूप से सरकार  के सामने रखता है और आन्दोलन करता है। फिर भी अनपढ़ता ,  अंधविश्वास के  कारण उसकी आर्थिक दशा में मनोवांछित सुधार नहीं हो सका। आज भी वह शोषण का शिकार बना हुआ हैं । उसके परिश्रम का  फल व्यापारी वर्ग लूट ले जाता है। उसकी मेहनत दूसरों को सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं ।  देश की प्रगति के लाने के लिए भारतीय कृषक की प्रगति नितान्त आवश्यक हैं ।

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