पितृपक्ष में पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध के जरिए पितरों को श्रद्धांजलि दी जाती है. जो लोग इस समय श्राद्ध नहीं करते उन्हें जीवन में गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
सांसारिक यात्रा समाप्त कर मृत्यु (Death) के बाद पूर्वज परलोक पहुंचते हैं. शास्त्रों (Shastra) में बताया गया है कि, परलोक में न ही अन्न होता है और ना ही जल. ऐसे में पुत्र-पौत्रादि जब पितरों का तर्पण और श्राद्ध करते हैं तो इससे पितृ संतुष्ट होते हैं और अपने वंश को फलने-फूलने का आशीर्वाद देते हैं.
पितृपक्ष में पितरों को अपने वंशों से आशा रहती है कि वे उनका श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान करेंगे और इसी आशा के साथ आश्विन मास में पितृपक्ष के समय पितृ धरती पर आते हैं. ऐसे में जब पितरों का श्राद्ध नहीं होता तो वे बहुत दुखी होकर और श्राप देकर वापस अपने लोक लौट जाते हैं.
पितृपक्ष के समय जो लोग अपने मृत पूर्वजों का श्राद्ध नहीं करते उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं और जीवनभर परेशानियों का सामना करना पड़ता है. आइये जानते हैं श्राद्ध न करने पर क्या होता है.
पितृदोष लगता है: पितरों का श्राद्ध न करने पर पितृदोष (Pitra Dosh) लगता है. क्योंकि श्राद्ध-तर्पण न करने से पितृ अतृप्त रहते हैं और वे अपने वंशों को आशीर्वाद देने के बजाय कष्ट पहुंचाते हैं.
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, जिस कुल में श्राद्ध नहीं होता है. वहां दीर्घायु, निरोगी या वीर संताने जन्म नहीं लेती हैं. साथ ही ऐसे परिवार में मंगल कार्य नहीं होते.
साथ ही जो लोग पितरों का श्राद्ध या तर्पण नहीं करते हैं वह हमेशा ही बिना गलती के झूठे आरोपों में फंस जाते हैं, जिसका अपमान उन्हें जीवनभर झेलना पड़ता है. ऐसे लोगों को समाज में कभी सम्मान नहीं मिलता.
पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म न करने का बुरा प्रभाव न सिर्फ आपके जीवन पर बल्कि संतान पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. इतना ही नहीं आने वाली पीढ़िया भी इससे प्रभावित होती हैं और इसका बुरा फल उन्हें भी झेलना पड़ता है.
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