गांव के निवासी राजकुमार सहनी बताते हैं कि
समूचे गांव में सिर्फ 2 लोग ही ऐसे हैं, जिन्होंने दसवीं
तक की पढ़ाई पूरी की है.गौर करने वाली बात यह है कि सहनी उनमें से एक हैं. बकौल
सहनी, हरका एक ऐसा गांव है जहां आज़ादी के 78 वर्षों में भी
अबतक किसी ने सरकारी नौकरी नहीं ली है.
आज हम आपको बिहार के एक ऐसे गांव की कहानी बताने वाले हैं, जहां का हर एक शख्स दिहाड़ी मजदूर है. विचारणीय बात तो यह है कि आज़ादी के बाद से अबतक, इस गांव के किसी भी शख्स ने सरकारी नौकरी तक नहीं ली है.
जहां तक बात शिक्षा की है, तो समूचे गांव
में सिर्फ 2 लोग ही ऐसे हैं जिन्होंने उच्च शिक्षा के नाम
पर दसवीं तक की पढ़ाई पूरी की है.विडंबना तो इस बात की है कि गन्ने की खेती का
सबसे बड़ा बेल्ट होने के बावजूद भी इस गांव के किसी भी एक शख्स के पास खेत का छोटा
टुकड़ा भी नहीं है.
ग्रामीण बताते हैं कि उनके पास घर के नाम पर
सिर्फ सर छिपाने भर की जगह है.हालत इतनी खस्ता है कि गांव के मर्दों के साथ
महिलाएं भी दिहाड़ी मजदूर का काम करने को मजबूर हैं. गांव में आज तक किसी की भी
सरकारी नौकरी नहीं लगी है. बता दें कि ये गांव पश्चिम चम्पारण ज़िले के बगहा 02
प्रखंड
के अंतर्गत आता है.गांव का नाम “हरका” है, जिसकी
आबादी करीब 800 है.
पूरे गांव में सिर्फ 2 लोग दसवीं पास
है
गांव के निवासी राजकुमार सहनी बताते हैं कि समूचे गांव में सिर्फ 2 लोग ही ऐसे हैं, जिन्होंने दसवीं तक की पढ़ाई पूरी की है.गौर करने वाली बात यह है कि सहनी उनमें से एक हैं.
बकौल
सहनी, हरका एक ऐसा गांव है जहां आज़ादी के 78 वर्षों में भी
अबतक किसी ने सरकारी नौकरी नहीं ली है. स्थिति इतनी दयनीय है कि युवा से लेकर
बुजुर्ग तथा महिलाएं तक, परिवार चलाने के लिए मजदूरी करती हैं
उन्होंने बताया कि गांव के कोई भी सरकारी विद्यालय नहीं है, जब हमने राजकुमार से इस दयनीय स्थिति का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि “हरका” ज़िले के सबसे पिछड़े गांवों में से एक है.
आज़ादी के 78 वर्षों के बाद भी यहां न तो कोई
विद्यालय बन पाया है और न ही कोई पंचायत भवन. गांव से क़रीब 03 किलोमीटर
की दूरी पर एक सरकारी विद्यालय मौजूद भी है,तो संसाधनों के
घोर आभाव की वजह से वहां कोई बच्चा पढ़ने के लिए जा नहीं पाता है. चौंकाने वाली
बात तो यह है कि यही सिलसिला पीढ़ियों से चलता आ रहा है.
पूरे गांव करता है मजदूरी
हैरत तो इस बात की है कि यहां के लोगों को सरकार के किसी योजना तक की जानकारी नहीं है.ग्रामीणों की माने तो,यहां के लोगों में बस खाने कमाने की प्रवृति बस गई है.
ऐसे में इसे ऊपर कोई सोंच ही नहीं
पाता है. युवा, महिला तथा बुजुर्ग सभी करते हैं मजदूरी ग्रामीण
लीलावती देवी बताती हैं कि उनके पति गोरखपुर में रिक्शा चलाने का काम करते हैं.
राजकुमार सहनी उनका बेटा है, जो गांव का दूसरा सबसे पढ़ा लिखा युवा
है.
घर की दयनीय स्थिति को देखते हुए राजकुमार ने भी दसवीं की पढ़ाई पूरी कर एक अस्थाई प्राइवेट काम से जुड़ने का फैसला कर लिया. विचारणीय बात तो यह है कि लीलावती भी गांव से बाहर दूसरों के घरों में झाड़ू पोंछा का काम करती हैं. कुछ ऐसी ही कहानी गांव के हर एक परिवार की है.
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