गोगामेड़ी मेला 2024 : इस बार देवस्थान विभाग को चढ़ावे व दुकानों की नीलामी से 7 करोड़ 61 लाख रुपए की हुई आय, 24 लाख 58 हजार श्रद्धालु पहुंचे

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गोगामेड़ी मेला 2024 : इस बार देवस्थान विभाग को चढ़ावे व दुकानों की नीलामी से 7 करोड़ 61 लाख रुपए की हुई आय, 24 लाख 58 हजार श्रद्धालु पहुंचे

 




गोगामेड़ी मेला 2024 : हरियाणा की सीमा से सटे राजस्थान के धार्मिक ओर पवित्र स्थल गोगामेड़ी में एक माह तक चले वार्षिक मेले में इस बार 24 लाख 58 हजार श्रद्धालुओं ने गोगाजी महाराज को नमन किया। इस बार गोगामेड़ी मेला 2024 में देवस्थान विभाग को 7 करोड़ 61 लाख रुपए की आय हुई। जो की पिछले वर्ष की तुलना में करीब 59.51 लाख रुपए की अधिक आय हुई। पिछले वर्ष  2023 में 23.19 लाख श्रद्धालु मेले में पहुंचे थे। ओर करीब 7 करोड़ 11 लाख रुपए की आय हुई थी।


इस वर्ष का लेख जोखा 

देवस्थान विभाग के सहायक आयुक्त ओम प्रकाश ने बताया कि गोगामेड़ी मेला 2023 में 23.19 लाख श्रद्धालु मेले में पहुंचे थे। इस वर्ष श्रद्धालुओं की संख्या बढ़कर 24.58 लाख हो गई। इस वर्ष भेंट और चढ़ावे की राशि में भी बढ़ोतरी हुई। जहां पिछले वर्ष 184.20 लाख रुपए प्राप्त हुए, वहीं इस वर्ष 212.56 लाख रुपए चढ़ावे के रूप में प्राप्त हुए। 2023 में अस्थाई दुकानों व भूखंड के नीलामी से 527.31 लाख रुपए की आय अर्जित हुई। वहीं, इस वर्ष 558.46 लाख रुपए की आय अर्जित हुई। देवस्थान विभाग को पिछले वर्ष की तुलना में 59.51 लाख रुपए की अधिक आय हुई।

 


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गोगामेड़ी में गोगाजी की समाधी पर पूजा करने के बाद इन समाधियों पर भी नमन करते है श्रद्धालु, जाने जरूरी जानकारी


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गोगामेड़ी मेला 2024 : 19 अगस्त से 18 सितंबर तक एक महीने तक लगा वार्षिक मेला

जाहरवीर गोगाजी  हिन्दू, मुस्लिम, प्रत्येक वर्ग  व धर्म के लोगों की आस्था के प्रतीक उतर भारत के प्रसिद्व मेले गोगामेडी़ में हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, उतरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात व हिमाचल प्रदेश से लाखों लोग लोक देवता गोगा जी की समाधि पर धोक लगाने व सजदा करतेे हैं।  गोगा जी को हिन्दू लोग वीर के रूप में तथा मुस्लिम पीर के रूप में पूजते हैं। 


गोगाजी की समाधी पर पूजा अर्चना 

जाहरवीर गोगाजी की समाधि उनके मस्जिदनुमा मंदिर में स्थित है। जिसका हाल ही में जीर्णोंद्धार किया गया। जिससे मंदिर दूर से ही आकर्षक नजर आने लगा है। समाधि पर अश्वारोही गोगा जी की मूर्ति उत्र्कीण है। गुरू शिष्य परंपरा के अनुसार गोगामेडी़ आने वाले श्रद्धालु पहले गोगाजी के मंदिर से दो किलामीटर दूर गोगाणा में पवित्र तालाब में स्नान कर गुरू गोरखनाथ के धुणे पर शीश नवातें हैं। बाद में गोगामेड़ी मंदिर में गोगाजी की समाधी पर पूजा अर्चना करते  है। तथा प्रसाद के रूप में नारियल, खील, मिठाई, नीली ध्वजा, चद्दर, इत्र, धूप, पैसे व साने चान्दी के छत्र इत्यादि सामग्री चढाई।



जाहरवीर गोगाजी की समाधी पर धोक लगाने के बाद श्रद्धालु नाहर सिंह पांडे, माता बाछल, रानी सिरीयल, भजू कोतवाल, रतना हाजी, सबल सिंह बावरी, केसरमल, जीतकौर, श्याम कौर, भाई मदारण का समाधियों पर धोक लगाते है। तपती रेत व सड़कों पर पेट के बल कनक दण्डवत कर पहुँच रहे लोगों की श्रद्धा देखते ही बनती है। ढोल नगाडों पर नाचते गाते डमरू व सारंगी की लय पर आगे बढते श्रद्धालू गुरू गोरख नाथ की जय,जाहरवीर की जय,गोगापीर की जय,के गगनभेदी जयकारों से वातावरण पूरे भादो मास गुंजायमान रहता  हैं। 



मेला परिसर में मनिहारी बाजार, लाठी बाजार ढोलक बाजार, फोटो बाजार, पुस्तक बाजार, मूर्ति बाजार, खिलौनों आदी की दुकानें लगी। 


गोगा जी को सर्पो के देवता के रूप में भी पूजा जाता है

भाद्रपद महीने में चलने वाले रात्री जागरणों में गोगाजी के जन्म, विवाह, युद्व व पृथ्वी में समाने व उनके देवीय चमत्कार के किस्से जागरणकर्ताओं (जिन्हे समइया कहते हैं) द्वारा श्रद्धालुओं को सुनाए जाते हैं किवदंतियों के अनुसार गोगाजी की माता बाछल के कोई संतान नहीं थी माता बाछल ने गोरखटीला पर गुरू गोरखनाथ की पूजा पुत्र प्राप्ति के लिए की थी । महान योगी गुरू गोरखनाथ की कृपा से गोगाजी की उत्पति हुई। ये गुरू गोरखनाथ के परम शिष्य हुए। गोगा जी को सर्पो के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। गोगाजी के भक्तो को छाया घोट आती है तो वे मस्त होकर नाचने लगते हैं। तथा शरीर पर लोहे की सांकल(छड़ी )से अपने शरीर पर प्रहार करने लगते हैं।

 

 

 

सांप्रदायिक एवं सद्भावना के प्रतीक उत्तर भारत के प्रसिद्ध गोगामेड़ी मेले की शुरुआत पूर्णिमा, 19 अगस्त 2024 को पशुपालन, गोपालन, डेयरी एवं देवस्थान विभाग के कैबिनेट मंत्री जोराराम ने पूजा-अर्चना के बाद राष्ट्रीय ध्वजारोहण कर शुभारंभ किया था। मेला मजिस्ट्रेट पंकज गढ़वाल ने गोगामेड़ी मेला क्षेत्र में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में 18 सितंबर 2024  को मेले के समापन की घोषणा की। गोगा जी को हिन्दू लोग वीर के रूप में और मुस्लिम पीर के रूप में पूजते हैं। श्रद्धालु पहले गोगाजी के मंदिर से दो किलोमीटर दूर गोगाणा के पवित्र तालाब में स्नान कर गुरु गोरखनाथ के धुणे पर शीश नवाते हैं। बाद में गोगामेड़ी मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। 




गोगामेड़ी। गोगामेडी हिंदुओं तथा मुसलमानों का सांझा धार्मिक स्थल है। जितनी श्रद्धा से यहां हिंदू धोक ( पूजा) लगाते हैं उतनी श्रद्धा से मुसलमान भी सजदा करते हैं। हिंदू जाहरवीर गोगा जी को वीर कहते हैं तो मुसलमान गोगा पीर के नाम से पुकारते हैं। गोगामेडी हरियाणा राजस्थान की सीमा पर स्थित राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील में धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। गंगानगर से जयपुर जाने वाली रेलवे लाइन मेला स्थल के बीचो बीच गुजरती है। यहां दूर-दूर तक फैले रेगिस्तान में बालू रेत के टीले दृष्टिगोचर होते हैं। गोगामेडी से 2 किलोमीटर पहले गोगाना में गुरु गोरखनाथ का प्राचीन धूणा स्थित है। यहां पर स्थित गोरख गंगा का अपना ही महत्व है। गोगामेडी में यूं तो पूरे वर्ष श्रद्धालु आते रहते हैं लेकिन भादो मास में 1 महीने के लिए यहां भारी मेला लगता है। 




देश के कोने-कोने से भक्त आकर अपने लोक देवता को सजदा करते हैं ।  गोगा नवमी को जाहरवीर गोगा जी का जन्मदिन  है। इस दिन देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आकर रोक लगाएंगे ।  गोगामेडी स्थल के लिए 158 एकड़ जमीन आरक्षित है जिसका रखरखाव देव स्थान विभाग राजस्थान सरकार के अधीन है। यूं तो जाहरवीर गोगा जी के जीवन काल के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन इतिहास में कोई स्पष्ट टिप्पणी नहीं की गई है। लोक प्रचलित कथा के अनुसार उन्हें 11 वीं सदी में मोहम्मद गजनवी के समकालीन माना जाता है। सर्व सम्मत लोक मान्यता है कि राजस्थान के चुरू जिले के ददरेवा नामक ग्राम रियासत के राणा अमर सिंह चौहान राज करते थे। उनके दो पुत्र जेवर सिंह और नेवर सिंह की शादी सिरसा पट्टन के राजा कुंवर की दो पुत्रियां बाछल वह काछल से हुई । बताया जाता है कि जब उमर सिंह को उसकी मां गोद में उठाए खिला रही थी, तो ढयोडी पर एक फकीर आया। उसने भीख मांगी उमर सिंह की माता ने भीख देने से मना कर दिया। तो उस साधु ने श्राप दे दिया कि उन्हें अगली पीढ़ी में संतान नहीं होगी। जब उमर सिंह की माता को साधु के श्राप का आभास हुआ तो उसने साधु से अपनी भूल की माफी मांगी, क्षमा प्रार्थना की तब साधु ने रानी को कहा कि संतों फकीरों की सेवा करने पर इस रियासत में पुत्र प्राप्ति होगी। समय बीतने के बाद जेवर और नेवर की शादी को कई वर्ष हो गए। परंतु उनके कोई संतान पैदा नहीं हुई राजा उमर की मृत्यु के बाद राजगद्दी पर राजा जेवर सिंह को बैठा दिया। लेकिन संतान के अभाव में राजा जेवर सिंह हर समय चिंतित रहते। रानी बाछल हर समय  संतों की सेवा करती तथा अपने भाग्य को कोसती रहती। इसी दौरान महायोगी गुरु गोरखनाथ ददरेवा रियासत स्थित बाग में आकर अपने चेलों के साथ तपस्या करने लगे। तो सुखा बाग हरा भरा हो गया।  तभी राजा की बांदी ने बाग की तरफ देखा तो उसे यकीन नहीं हुआ। तो बांदी ने पूरी तसल्ली की। तसल्ली करने के बाद भागकर राज महल गई व रानी बाछल को साधुओं के डेरा डालने और बाग के हरा-भरा करने की पूरी कहानी सुनाई। तो रानी ने राजा जेवर को बताया। राजा जेवर को गुरु गोरखनाथ के आने का पता चला तो वह सहपरिवार उनके दर्शन के लिए राज उद्यान पहुंचे। जब गुरु गोरखनाथ ने राजा और रानी की व्यथा सुनी तो उन्होंने रानी बाछल को एक तेजस्वी पुत्र का आशीर्वाद दिया। गुरु गोरखनाथ ने आशीर्वाद देकर  दूसरे दिन आकर फल ले जाने के लिए कहा। गुरु गोरखनाथ द्वारा आशीर्वाद व बाछल को पुत्र के लिए मिलने वाले फल की बात उसकी बहन काछल ने सुनी तो काछल के मन में कपट आ गया । वह दूसरे दिन जल्दी उठ रानी बाछल के कपड़े पहन गुरु गोरखनाथ से दो फल ले आई। जब रानी बाछल गुरुजी के पास पहुंची तो गोरखनाथ वहां अपने चेलों के साथ प्रस्थान की तैयारी कर रहे थे। पास आते देख महायोगी बाल ब्रह्मचारी गुस्से से भर गए और उन्होंने कहा कि ज्यादा लोभ अच्छा नहीं होता, लेकिन तब रानी बाछल ने अपनी बहन काछल द्वारा ठगने की बात बताई तो गुरु गोरखनाथ का गुस्सा शांत हुआ। गुरुजी ने रानी बाछल को गूग्गल दी और कहा कि जो भी बांझ इस गूगल का सेवन करेगी उसे एक वीर तेजस्वी संतान की प्राप्ति होगी। रानी ने महल में आकर थोड़ी गूग्गल अपनी पंडिताइन को दी, थोड़ी सी अपनी दासी को, थोड़ी सी अपनी घोड़ी को खिलाकर बाकी गूगल खुद खा गई। समय बीतने पर बाछल के गर्भ से जाहरवीर गोगा जी का जन्म हुआ। पंडिताइन की संतान का नाम नाहर सिंह पांडे रखा गया। दासी की संतान का नाम भज्जू कोतवाल, घोड़ी ने नीले घोड़े को जन्म दिया।  काछल को दो पुत्र अर्जुन और सर्जन प्राप्त हुए। जाहरवीर गोगाजी अर्जुन, सर्जन एक साथ खेल कर बड़े हुए। एक साथ ही शिक्षा ग्रहण की। जाहरवीर के बड़ा होने पर जाहरवीर की शादी उत्तर प्रदेश रियासत के राजा की पुत्री सीरियल से हुई। जो बेहद खूबसूरत व समझदार थी। जाहरवीर के पिता की मृत्यु के बाद ददरेवा की राजगद्दी जाहरवीर गोगा जी ने संभाली, व भली भांति राजकाज चलाने लगे। एक बार गुरु गोरखनाथ पुनः ददरेवा पहुंचे तो राजमाता व जाहरवीर ने गुरु गोरखनाथ की आवभगत की। तब गुरु जी ने जाहरवीर को अपने साथ ले जाने की बात कही। माता की आज्ञा से जाहरवीर, गुरु गोरखनाथ व अन्य चैलों ने  दुनिया के कोने कोने की यात्रा की। जाहरवीर हिंदू और मुसलमान दोनों को समान रूप से प्यारे लगते थे। जाहरवीर गोगा जी की बातें हिंदू भी उतने ही चाव से सुनते थे और मुसलमान भी पूरी गौर से सुनते थे । वह हिंदुओं व मुसलमानों के समान रूप से लोकप्रिय हो गए। हिंदू इन्हें जाहरवीर तथा मुसलमान उन्हें गोगा पीर के नाम से पुकारने लगे। यात्रा से वापिस आकर जाहरवीर राज काज देखने लगे। जब मुगलों ने भारत पर आक्रमण किया तो जाहरवीर ने अर्जुन सर्जन व उसकी सेना को साथ लेकर दुश्मन का डटकर मुकाबला किया। तब  दुश्मन अपनी हार को देखकर घबरा गया।  उसने अर्जुन सर्जन को राज्य का लोभ देकर अपनी तरफ मिला लिया। अगले दिन जब युद्ध शुरू हुआ तो अर्जुन सर्जन दोनों तलवार लिए जाहरवीर के पीछे खड़े थे। तभी जाहरवीर गुरु गोरखनाथ की कृपा से उनकी मंशा को जान गए और  पलट कर दोनों को मौत के घाट उतार दिया। युद्ध समाप्त होने के बाद राज माता बाछल ने गोगाजी द्वारा अर्जुन सर्जन की मौत का समाचार सुना तो, वह आग बबूला हो गई और जब जाहरवीर गोगा जी  राज महल पहुंचे तो राजमाता ने जाहरवीर को देश निकाला दे दिया और कहा कि कभी उसे मुंह मत दिखाना। उधर रानी सीरियल को भी सजा के तौर पर महल के पीछे एक कोठरी दे दी गई। जाहरवीर रात को छिपकर अपनी पत्नी रानी सीरियल से आकर मिलने लगे, तब रानी सीरियल भी उदासी छोड़ हारशृंगार करने लगी। वह खुश रहने लगी। जब एक दिन  माता बाछल ने रानी को हार सिंगार किए हुए देखा तो वह रानी को खरी-खोटी कहने लगी। तभी रानी ने बताया कि जाहरवीर हर रात उनसे मिलने आते हैं तब राज माता बाछल ने पुत्र को आज्ञा पालन न करने की सजा देने की सोची। रात को छिपकर जाहरवीर का इंतजार करने लगी। जब जाहरवीर रात को रानी से मिलने आए तो राजमाता ने गोगाजी को ललकारा। तब गोगा जी ने राजमाता को मुंह नहीं दिखा कर उल्टे कदमों से वापिस दौड़कर घोड़े पर चढ़कर घोड़ा दौड़ा दिया। तभी राज माता बाछल ने हाथ में तलवार लेकर जाहरवीर के घोड़े के पीछे अपना घोड़ा दौड़ा दिया। काफी दूर तक पीछा करने के बाद जाहरवीर का घोड़ा यहां जंगल में वर्तमान गोगामेडी में दलदल में फंस गया। नीला घोड़ा गोगा जी दोनों धरती में समा गए। जब इस बात का पता चला रानी सीरियल को चला तो रानी ने भी  समाधि ले ली। जब राज माता बाछल को पुत्र तथा पुत्रवधू द्वारा समाधि लेने का पता चला तो, पश्चाताप करती हुई बाछल ने भी समाधि स्थल के  पास बैठ कर जान देने का निर्णय कर लिया।  माता की प्रार्थना पर जाहरवीर प्रकट हुए और भविष्यवाणी की कि वे जनता के उपकारक के रूप में सदा उपस्थित रहेंगे।  हिंदू और मुसलमान सभी धर्मों के लोगों के समान रूप से हितकारी होंगे।

 

जाहरवीर गोगा जी का जन्म भादो मास में नवमी को माना जाता है, जिसे गोगा नवमी कहते हैं। इसलिए पूरे भादो मास गोगामेडी में मेला लगता है यहां पर हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल सहित देश के दूर-दूर के राज्यों श्रद्धालु आते हैं। गोगा जी के भक्त गुरु शिष्य परंपरा का निर्वाह करते हुए पहले गुरु गोरखनाथ के धूणें पर जाकर नमन करते हुए फिर गोरक्ष गंगा में स्नान करने के बाद 3 किलोमीटर तक पैदल चलकर कनक दंडवत गोगामेडी में जाहरवीर की समाधि पर धोक लगाते हैंव सजदा करते हैं।  मंदिर में समाधि बनी हुई है यहां पर मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु  नारियल, खील, पतासे, नारियल, नीली ध्वजा, सोने व चांदी के छत्र इत्यादि चढ़ावा चढ़ाते हैं। जाहरवीर की समाधि पर धोक लगाने के बाद श्रद्धालु रानी सीरियल, माता बाछल, नाहरसिंह पांडे, भज्जू कोतवाल, रत्तना हाजी, सबल सिंह बावरी, केसरमल, जीत कौर, श्याम कौर, व भाई मदारण की समाधियों पर भी नमन करते हैं। गोगामेडी स्थल में 158 एकड़ भूमि आरक्षित है। जिस का रखरखाव देवस्थान विभाग राजस्थान सरकार के अधीन है। मंदिर में हिंदू और मुसलमान दोनों ही धर्मों के पुजारी हैं । भादो मास में ही गोगामेडी में उत्तर भारत का सबसे बड़ा ऊंट मेला लगता है। यहां पर देश के कोने-कोने से ऊंट व्यापारी व किसान पहुंचते हैं यह मेला पशुपालन विभाग  राजस्थान सरकार के सौजन्य से आयोजित किया जाता है । गोगामेडी मेला परिसर में क्षेत्र में भादो मास में गोगा जी का रात्रि जागरण होता है । भक्तों को गोगा जी की घोट व छाया आती है। तो भक्त अपने आप को लोहे की जंजीरों से पीटने लगते हैं।

 मान्यता है कि यहां पर सर्पदंश से किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं होती। बच्चों के मुंडन (पहली बार सिर के बाल काटना) का कार्य  यही होता है।  अधिकांश लोग गोगाजी को सर्पों के देवता के रूप में पूछते हैं। गोगाजी के निशान लेकर डमरु, ढोलक, खड़ताल लेकर नाचते गाते गोगामेडी तक पहुंचते हैं ।  यह नजारा देखने योग्य होता है। उत्तर प्रदेश से आने वाले पीत वस्त्र धारी श्रद्धालु यहां से गोरक्ष गंगा से पानी की बोतल या मिट्टी अपने साथ ले जाते हैं । हिंदू और मुसलमानों को एक साथ धोक लगाते देख अनूठा उदाहरण पेश होता है। गुरु गोरखनाथ की जय, जाहरवीर की जय, गोगापीर की जय से वातावरण गुंजायमान रहता है।

गोगाजी की घोड़ी का नाम क्या था?

 

लोक देवता गोगाजी की घोडी का नाम नीली घोड़ी है जिसे गौगा बापाकहते हैं !

 

गोगा जी कौन थे?

 

लोक देवता गोगा जी को नागों के देवता और जाहरपीर, हिंदु धर्म में नागराजजी का अवतार, मुस्लिम धर्म में गोगापीर इन नामों से जाना जाता है!

 

Gogaji को किसका अवतार माना जाता है?

 

लोक देवता गोगा जी को नागों के देवता और जाहरपीर, हिंदु धर्म में नागराजजी का अवतार, मुस्लिम धर्म में गोगापीर इन नामों से जाना जाता है!

 

गोगा जी की ओल्डी कहाँ स्थित है?

 

लोक देवता गोगा जी की ओल्डी ( झोंपड़ी ) सांचौर (जालौर) में स्थित है!


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