जनगणना में जाति के समावेश को लेकर किस प्रकार का विवाद होता है?

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जनगणना में जाति के समावेश को लेकर किस प्रकार का विवाद होता है?

 




 जनगणना के दौरान, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों से संबंधित एकत्रित डेटा पर पहले से ही राजनीतिक हस्तक्षेप होता है। सिंह ने लिखा है कि न्यायालयों विभिन्न समुदायों द्वारा आरक्षण प्राप्त करने के लिए अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का दर्जा लेने हेतु हजारों मामले विचाराधीन हैं। अन्य क्षेत्रों में, हालाँकि, वे उच्च प्रथागत प्रस्थिति का दावा करते हैं। 


कुछ समाजशास्त्रियों sociology का यह भी तर्क है कि नामों की बहुलता तथा संदर्भगत तरीके से उनके प्रयोग के कारण जाति संबंधित डेटा एकत्रित करना कठिन होता है और प्रवास, आधुनिक रोजगार पद्धतियों, अंतर जातीय विवाहों आदि में होने वाले परिवर्तनों के कारण यह समस्या बिगड़ गई है।


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आमतौर पर लागत, सामाजिक विवाद में वृद्धि तथा वैज्ञानिक दिखने वाले किंतु वास्तविक रूप से अविश्सनीय डेटा के संदर्भ में राष्ट्र को क्षति होगी। जातिगणना के समर्थक यह तर्क देते हैं कि जाति का माप लेने से मना करना उच्च जाति के हित का राष्ट्रीय या सार्वभौमिक हित के रूप में मौजूद होने का एक उत्तम उदाहरण है। सन् 1948 में भी, जब व्यापक जाति ब्यौरों को छोड़ दिया गया तो कुछ असंतोष फैला था।



sociologजाति जनगणना की मुख्य माँग पिछड़े वर्ग आयोग से आई, जो अपने कार्य के लिए डेटा के अभाव से पीड़ित था। स्वतंत्रता के बाद, 'अन्य पिछड़े वर्ग' शब्द प्रचलित हो गया और इसका आशय उन समूहों से है जो अनुसूचित जाति या जनजाति के नहीं हैं किंतु अब भी उन्हें 'सामाजिक तथा शैक्षिक पिछड़ेपन से ग्रस्त देखा गया। हालाँकि संविधान में 'वर्ग' शब्द का प्रयोग हुआ है, इसका अर्थ सामान्यतः कुछ जातियों के लिए लिया जाता है।




नौकरी और शिक्षा संस्थानों तथा जनकल्याण योजनाओं, छात्रवृत्तियों आदि में आरक्षण को लागू करने के लिए पिछड़े वर्गों की सूचियों की उनके राज्यों के लिए पहचान करने हेतु पिछड़े वर्ग आयोग की आवश्यकता है। जनगणना डेटा के अभाव में, आयोगों ने 1931 की जनगणना से डेटा प्राप्त कर लिए। अनेक ने अपने प्रतिदर्श सर्वेक्षण भी किए हैं. शैक्षिक संस्थानों तथा सरकारी कार्यालयों से डेटा एकत्रित किया है और व्यक्तियों था समूहों से आवेदन माँगे हैं। 





जहाँ अधिकांश गौण डेटा की आवश्यकता पड़ती रहेगी, अद्यतन जनगणना डेटा के साथ कार्य आसान हो जाएगा। यह तर्क दिया जाता है कि नई जातियों को सूची में शामिल करने या पुरानी को सूची से बाहर निकालने के लिए, अन्य पिछड़े वर्गों की नई सूचियाँ तैयार करने में जनगणना डेटा उपयोगी हो सकता है। इस प्रक्रिया के दौरान नुकसान उठाने चाली अल्पसंख्यक जातियों को राजनीतिक समर्थन नहीं था।





जातिगणना के समर्थक इसके योजना में उपयोगी होने का भी दावा करते हैं। पिछड़े वर्गों को लक्ष्य बनाने के लिए व्यक्ति को खंड अथवा जिलास्तरीय डेटा की आवश्यकता होती है क्योंकि यह वह स्तर है जहाँ विद्यालय अथवा प्राथमिक चिकित्सा केंद्र बनाने के निर्णय लिए जाते हैं। हालाँकि इस प्रकार के डेटा और वास्तविक सेवाओं के बीच की कड़ी संदिग्ध है। 





 स्थानीय सरकारों की कार्यशैली पर कुछ अध्ययन हुए हैं, उपलब्ध अध्ययन यह बताते हैं कि विद्यालयों के स्थान का निर्धारण आवश्यकता से न होकर सशक्त स्थानीय समूहों द्वारा होता है। उदाहरण के लिए, पी. सैनत ने दर्शाया है कि किस प्रकार उच्च वर्ग यह सुनिश्चित करते है कि ग्राम विद्यालय उनके आवास क्षेत्र में हो क्योंकि वहीं मतदान पर उनके नियंत्रण को सुनिश्चित करता है। इसी प्रकार अनुसूचित जनजातियों पर डेटा उपलब्ध होने के बावजूद जनजातिय क्षेत्रों में सुविधाओं का अभाव यह दर्शाता है कि दोषारोपण डेटा के अभाव पर न होकर अन्य घटकों पर होना चाहिए।



दूसरी और जाति जनगणना डेटा कुछ समूहों के लिए सुविधाओं के व्यवस्थित अभाव के बारे में जब जागरूकता और भत पैदा करने में उपयोगी भूमिका निभा सकता है। जहाँ व्यक्ति को यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी को मूलभूत सेवाएँ मिले, नागरिक की जाति अथवा किसी गाँव की जाति संरचना जानने की आवश्यकता नहीं है वहीं ऐसी स्थिति में जब सरकार ने सार्वभौमिक प्रावधान करने का दावा किया है, यह डेटा उपयोगी हो सकता है। प्रत्येक गाँव में प्राथमिक विद्यालय के होने के बावजूद यदि जनगणना डेटा यह बताता है कि कुछ जातियों को शिक्षा नहीं मिल रही है तो यह चिंता और संभावित गतिशीलता का मुद्दा है।

जहाँ जातिगणना के विरोधी गतिशीलता बढ़ाने और पहचान को अधिक सुदृढ़ करने में इसकी भूमिका पर जोर देते हैं; जातिगणना के समर्थक इसे असमानता और अंततः जाति उन्मूलन को उजागर करके यथास्थिति को चुनौती देने के कदम के रूप में प्रस्तुत करते हैं। 




जहाँ एक ओर जातिगणना के विरोधी अप्रबंधनीय जनप्रतिक्रिया के साथ असमंजस्य दशति है वहीं इसके समर्थक सरकार की और उसके द्वारा डेटा के प्रयोग की भोली और अच्छी तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। यदि जनगणना का उद्देश्य जाति उन्मूलन है तो यह प्रस्तुत डेटा के उपयोग से संघ द्वारा नहीं बल्कि जनगतिशीलता द्वारा हो पाएगा। 




केवल गतिशीलता से करने के बजाय व्यक्ति का ध्यान इसके द्वारा लिए गए रूप पर होना चाहिए।

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