Spiritual And Informative Stories: पढ़िए पांच अध्यात्मिक व ज्ञानवर्धक कहानियां

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Spiritual And Informative Stories: पढ़िए पांच अध्यात्मिक व ज्ञानवर्धक कहानियां



 सच्चा समर्पण  True Dedication

एक राजा पहली बार  गौतम बुध के दर्शन करने अपने पास का एक अमूल्य स्वर्णाभूषण लेकर आया था। गौतम बुद्ध उस अमूल्य भेंट के स्वीकार करेंगे, इस बारे में उसे शंका थी। सो अपने दूसरे हाथ में वह एक सुंदर गुलाब का फूल भी ले आया था। उसे लगा भगवान बुद्ध इसे अस्वीकार नहीं करेंगे। गौतम बुद्ध से मिलने पर जैसे ही उसने अपने हाथ में रखा रत्नजड़ित आभूषण आगे बढ़ाया तो मुस्कराकर बुद्ध ने कहा,‘‘इसे नीचे फेंक दो।’’ राजा को बुरा लगा। फिर भी उसने वह आभूषण फें क कर दूसरे हाथ में पकड़ा हुआ गुलाब का फूल बुद्ध को अर्पण किया, यह सोचकर कि गुलाब में कुछ आध्यात्मिकता, कुछ प्राकृतिक सौंदर्य भी शामिल है। बुद्ध इसे अस्वीकार नहीं करेगे। लेकिन फूल देने के लिए जैसे ही हाथ आगे बढ़ाया, बुद्ध ने फिर कहा, इसे नीचे गिरा दो। 

    राजा परेशान हुआ। वह बुद्ध को कुछ देना चाहता था, पर अब उसके पास देने के लिए कुछ भी बचा नहीं था। तभी उसे अपने आप का ख्याल आया। उसने सोचा, वस्तुएं भेंंट करने से बेहतर है कि मैं अपने आपको ही भेंट कर दूं। ख्याल आते ही उसने अपने आपको बुद्ध को भेंट करना चाहा। बुद्ध ने फिर कहा, नीचे गिरा दो। गौतम के जो शिष्य वहां मौजूद थे वे राजा की स्थिति देखकर हंसने लगे। तभी राजा को बोध हुआ कि ‘मैं अपने आपको भेंट करता हूं’ कहना कितना अहंकारपूर्ण है। ‘मैं अपने को समर्मित करता हूं’- यह कहने में समर्पण नहीं हो सकता, क्योंकि ‘मैं’ तो बना हुआ है। वह समर्पित कहां हुआ। इस बोध के साथ राजा स्वयं बुद्ध के पैरों पर गिर पड़ा।


सत्य-असत्य True-False

स्वामी दयानंद अपने शिष्यों की भावनाओं का बहुत ख्याल रखते थे। वे अपने शिष्यों की बातें बहुत ध्यान से सुनते थे, लेकिन करते वही थे जो उन्हें उचित लगता था। किसी भी सलाह को वे पहले सत्य के निष्कर्ष पर कसते थे। उसके बाद ही उसके अमल पर निर्णय करते थे। स्वामी जी के एक शुभचिंतक श्रद्धालु ने उन्हें एक बार सलाह दी,‘‘अपने प्रवचन में आप ऐसा न कहा करें कि यह वेद-सम्मत है, बल्कि ऐसा कहें कि यह बात मुझे ईश्वर ने साक्षात बतलाई है।’’ स्वामी दयानंद का उत्तर था,‘‘सत्य के प्रचार के लिए मैं असत्य का सहारा नहीं ले सकता। असत्य के आधार पर सत्य का प्रचार करने वाला व्यक्ति वस्तुत: असत्य का ही प्रचार करता है।’’


श्रेष्ठता की कसौटी Criteria Of Excellence

ऋषियों की सभा चल रही थी। एक ऋषि ने जानना चाहा कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में श्रेष्ठ कोैन हैं? निर्णय के लिए ऋषियों ने भृगु क ो चुना। निर्णय करने के लिए भृगु तीनों देवों से मिलने चल पड़े। वे सबसे पहले ब्रह्मा के पास गए और नमस्कार किए बिना उनके पास जाकर बैठ गए। ब्रह्मा को क्रोध तो आया, परंतु भृगु क ो निकट का समझकर शांत हो गए। ब्रह्मा में प्रतिक्रिया तो हुई, लेकिन विचार द्वारा उन्होंने उसे निंयत्रित कर लिया। अब भृगु शिव के पास गए। शिव जैसे ही भृगु को स्रेहवश आलिंगन करने के लिए आगे बढ़े, भृगु पीछे हट गए। उन्होंने चिता की भस्म में डूबे शिव को अपना शरीर दूर रखने के लिए कहा।

     इस पर शिव क्रुद्ध हो गए और त्रिशूल लेकर भृगु को मारने दौड़े। अंतत: पार्वती के समझाने पर शिव शांत हुए। प्रतिक्रिया हुई। वह प्रकट रूप में सामने भी आई, लेकिन किसी अपने के परामर्श से वह शान्त हो गई। इसके बाद भृगु विष्णु के पास गए और सोते हुए विष्णु की छाती पर पैर रख दिया। विष्णु ने शांत ही नहीं रहे, वे भृगु के पैर पकड़कर बोले,‘‘मेरा वक्षस्थल तो युद्ध में शत्रुओं के आघात से कठोर हो गया है, आपके कोमल पैरों को चोट तो नहीं लगी?’’ सभा में आकर भृगु ने सारा वृत्तांत सुनाया तो शांत और स्रेह वत्सल विष्णु को ही सर्वश्रेष्ठ देवता घोषित किया गया।


सही उम्र Correct Age

तथागत बुद्ध ने एक व्यक्ति से पूछा,‘‘तुम्हारी आयु क्या है?’’ उसने कहा,‘‘साठ वर्ष।’’  ‘‘नहीं।’’ बुद्ध ने रोक दिया। वह झेंपा और बोला,‘‘भन्ते! मैं आपकी वाणी में संदेह नहीं कर सकता और अपनी स्मरणशक्ति पर भी मुझे पूरा विश्वास है। अत: सत्य बताने की कृपा करें?’’ बुद्ध ने कहा,‘‘तुम्हारी उम्र एक वर्ष है।’’ वह विस्मय में पड़ गया। सोचने लगा, ‘सिर के बाल सफेद हो गए, मुंह के दांत गिर गए हैं। मेरा पौत्र दस वर्ष का है। ऐसी स्थिति में, मेरी आयु एक वर्ष कै से हुई?’ बुद्ध ने सविस्तार बताया,‘‘आयुष्मान्! वास्तव में तुम्हारे उनसठ वर्ष निरर्थक बीते हैं। उनका तुमने जरा भी लाभ नहीं उठाया। एक वर्ष से तुम धर्म और सदाचार की साधना में रत हो। अत: तुम्हारी उम्र एक वर्ष की हीे है।’’  


लालच का अंत End Of Greed

एक किसान के खेत से जादुई टब निकला। उसमें विचित्र गुण था। उसमें कोई एक चीज डालने पर वैसी ही सौ चीजें निकल आती थीं। किसान ने उस टब में लीची का एक पौधा डाला। थोड़ी देर में टब से लीची के सौ पौधे निकल आए। इसी तरह वह अनेक चीजोें का ढेर लगाकर समृद्ध हो गया। चर्चा जमींदार के पास पहुंची। उसने किसान से वह जादुई टब छीन लिया। अब जमींदार उस टब से ऐश्वर्य की अनेक चीजें बनाने लगा । राजा को जब इस बात का पता चला तो उसने टब पर अधिकार कर लिया। उसने उससे अपना राज-भंडार भरना शुरू कर दिया। 

    उसे टब में एक मोती डाला। सौ मोती निकल आए। वह बहुत चकित हुआ। सोचने लगा,‘यह क्या माया है टब में जाकर देखना चाहिए, ताकि इस कौशल से बड़े पैमाने पर चीजें सौ गुनी की जा सकें।’ राजा टब के भीतर घुसा। एक के बाद एक सौ राजा उस टब से बाहर निकल आए। राजाओं की फौज खड़ी हो गई। राज सिंहासन एक था और राजाओं की संख्या सौ। युद्ध छिड़ गया। सभी राजा आपस में लड़कर मारे गए। बेचारा जादुई टब एक तरफ यो ही लुढ़का पड़ा था।

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