कवि-परिचय- महाकवि तुलसीदास Great Poet Tulsidas

Advertisement

6/recent/ticker-posts

कवि-परिचय- महाकवि तुलसीदास Great Poet Tulsidas



तुलसीदास का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन 


जीवन-परिचय-

गोस्वामी तुलसीदास हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। अत्यंत खेद का विषय है कि इनका जीवन-वृत्तांत अभी तक अंधकारमय है। इसका कारण यह है कि इन्हें अपने इष्टदेव के सम्मुख निज व्यक्तित्व का प्रतिफलन प्रिय नहीं था। इनका जन्म सन् 1532 में बाँदा ज़िले के राजापुर नामक गाँव में हुआ था। कुछ लोग इनका जन्म-स्थान सोरों ( ज़िला एटा ) को भी मानते हैं। इनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। जनश्रुति के अनुसार, इनका विवाह रत्नावली से हुआ था। इनका तारक नाम का पुत्र भी हुआ था जिसकी मृत्यु हो गई थी।

 

 तुलसी अपनी पत्नी के रूप-गुण पर अत्यधिक आसक्त थे और इसीलिए इन्हें उससे "लाज न आवति आपको दौरे आयह साथ" मीठी भर्त्सना सुननी पड़ी थी। इसी भर्त्सना ने उनकी जीवनधारा को ही बदल दिया। इनके ज्ञान-चक्षु खुल गए। इन्होंने बाबा नरहरिदास से दीक्षा प्राप्त की। काशी में इन्होंने सोलह-सत्रह वर्ष तक वेद, पुराण, उपनिषद्, रामायण तथा श्रीमद्भागवत का गंभीर अध्ययन किया। इनका देहांत सन् 1623 में काशी में हुआ।



प्रमुख रचनाएँ-

तुलसीदास की बारह रचनाएँ प्रसिद्ध हैं। उनमें 'रामचरितमानस', 'विनयपत्रिका', 'कवितावली', 'दोहावली', 'जानकी मंगल', 'पार्वती मंगल' आदि उल्लेखनीय हैं।



काव्यगत विशेषताएँ-

तुलसीदास रामभक्त कवि थे। 'रामचरितमानस' इनकी अमर रचना है। तुलसीदास आदर्शवादी विचारधारा के कवि थे। इन्होंने राम के सगुण रूप की भक्ति की है। इन्होंने राम के चरित्र के विराट स्वरूप का वर्णन किया है। तुलसीदास ने श्रीराम के जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने 'रामचरितमानस' में सर्वत्र आदर्श की स्थापना की है। पिता, पुत्र, भाई, पति, प्रजा, राजा, स्वामी, सेवक सभी का आदर्श रूप में चित्रण किया गया है।



 तुलसीदास के साहित्य की अन्य प्रमुख विशेषता है-तुलसी का समन्वयवादी दृष्टिकोण। इनकी रचनाओं में ज्ञान, भक्ति और कर्म, धर्म और संस्कृति, सगुण और निर्गुण आदि का सुंदर समन्वय दिखाई देता है। तुलसीदास की भक्ति दास्य भाव की भक्ति है। वे अपने आराध्य श्रीराम को श्रेष्ठ और स्वयं को तुच्छ या हीन स्वीकार करते हैं। तुलसीदास का कथन है-



"राम सो बड़ो है कौन, मोसो कौन है छोटो ?

राम सो खरो है कौन, मोसो कौन है खोटो?"

कविवर तुलसीदास अपने युग के महान समाज-सुधारक थे। इनके काव्य में आदि से अंत तक जनहित की भावना भरी हुई है। तुलसीदास जी के काव्य में उनके भक्त, कवि और समाज-सुधारक तीनों रूपों का अद्भुत समन्वय मिलता है।



भाषा-शैली-

इन्होंने अपना अधिकांश काव्य अवधी भाषा में लिखा, किंतु ब्रज भाषा पर भी इन्हें पूर्ण अधिकार प्राप्त था। इनकी भाषा में संस्कृत की कोमलकांत पदावली की सुमधुर झंकार है। भाषा की दृष्टि से इनकी तुलना हिंदी के किसी अन्य कवि से नहीं हो सकती। इनकी भाषा में समन्वय का प्रयास है। वह जितनी लौकिक है, उतनी ही शास्त्रीय भी है। 



इन्होंने अपने काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। भावों के चित्रण के लिए इन्होंने उत्प्रेक्षा, रूपक और उपमा अलंकारों का अधिक प्रयोग किया है। इन्होंने रोला, चौपाई, हरिगीतिका, छप्पय, सोरठा आदि छंदों का सुंदर प्रयोग किया है।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ