women of india भारत की नारियां:- राजमाता जीजाबाई

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women of india भारत की नारियां:- राजमाता जीजाबाई


women of india संसार के बहुत-से महापुरुषों की महानता का मूल उनकी माता की शिक्षा और प्रेरणा में मिलता है। हर मां चाहती है कि उसका पुत्र कुलदीपक हो। पर ऐसी स्त्रियां कम होती हैं जिनमें यह योग्यता हो कि वे पुत्र को किसी विशिष्ट ध्येय के लिए निरंतर संघर्ष करने की और जान की बाजी लगाने की प्रेरणा दें। उसे प्रेम और ममता के साथ-साथ वीरता, धैर्य, त्याग और संयम का पाठ पढाएं और इस योग्य बनाएं कि सारी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करते हुए अपने ध्येय की ओर बढ़ सकें।


ऐसी स्त्रियों में भी यह सौभाग्य बहुत कम स्त्रियों को ही प्राप्त होता है कि वे अपने जीवन में ही अपने स्वप्न को साकार होते देखें। छत्रपति शिवाजी की मां जीजाबाई इन अत्यंत भाग्यशाली स्त्रियों में थीं। उन्होंने पुत्र को स्वराज्य की स्थापना की प्रेरणा दी थी। इस प्रयास में वह बराबर उन्हें संबल और सलाह देती रहीं। मुगल और बीजापुर दोनों से संघर्ष कर और बड़ी-बड़ी कठिनाइयों को पार कर शिवाजी ने अपना राज्य स्थापित किया। women of india


 



 महाराष्ट्र के एक जागीरदार का बेटा स्वतंत्र राजा हो गया। यह राज्य उसे विरासत में नहीं मिला था, उसने पराक्रम से जीता था। मां का स्वप्न साकार हो गया था। जीजाबाई मानो यह समारोह देखने के लिए ही जीवित थीं। छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक के केवल तेरह दिन बाद ही वे चल बसीं, मानो अब उन्हें और कुछ देखने की इच्छा ही नहीं रही थी।



विदर्भ में सिंदखेड़ राजा के जागीरदार लखुजी जाधवराव की लड़की जीजाबाई सारे महाराष्ट्र की राजमाता होंगी और लखुजी अपने या अपने पुत्रों के कारण नहीं, बल्कि पुत्री और नाती के कारण प्रसिद्ध होंगे अगर यह उन्हें कोई पहले बताता तो उन्हें हंसी आए बगैर न रहती। लखुजी का संबंध देवगिरि के प्राचीन राजकुल से था। मुसलमानों द्वारा परास्त होने के बाद यह परिवार बिखर गया था। इसकी प्रतिष्ठा लखुजी ने फिर कायम की। उन्हें अहमदनगर के सुलतान की ओर से पांच हजार की मनसब मिली थी, दरबार में उनका बड़ा मान था, लोग उन्हें आदर से राजा कहते थे। women of india



एक बड़े जागीरदार की पुत्री के रूप में जीजाबाई का पालन-पोषण बड़े लाड़ से हुआ।उस समय लड़कियों के 5-7 वर्ष के होते ही उनका विवाह हो जाता था। जीजाबाई के विवाह के बारे में एक मनोरंजक कथा प्रचलित है। कहते हैं एक वर्ष होली पर लखुजी के यहां बड़ी दावत थी। उसमें उनके अधीन काम करने वाले मालोजी भोंसले आए थे। उनके साथ था-उनका छह-सात वर्ष का पुत्र शाहजी। वह और उससे दो-तीन वर्ष छोटी जीजाबाई, एक-दूसरे के साथ खेलने लगे। दोनों सुंदर थे और उनका यह खेल सब लोग बड़े कौतुक से देख रहे थे। लखुजी से रहा न गया। वे बोल पड़े "दोनों की जोड़ी कितनी अच्छी लगती है।"



मालोजी ने उनकी बात फौरन पकड़ ली। उन्होंने कहा "आप सब लोग साक्षी हैं। राजा साहब ने अपनी लड़की की मंगनी शहाजी के साथ कर दी है।'लखुजी जैसे बड़े जागीरदार को यह कैसे स्वीकार होता कि उनकी लड़की उनके ही अधीन काम करने वाले किसी कर्मचारी के लड़के से विवाह करे। विनोद में कही गई बात गंभीर रूप लेगी-यह वे नहीं जानते थे। पर मालोजी अपनी बात पर अड़े रहे।



शहाजी और जीजाबाई का विवाह अहमदनगर के सुलतान के दबाव के कारण ही संभव हो सका। इस बीच भोंसले परिवार ने भी सुलतान की सेवा में उन्नति की थी। सुलतान इस परिवार की बात रखना चाहता था। विवाह के बाद दोनों परिवारों में सौहाद्र तो हुआ ही नहीं, उलटे मनमुटाव ने वैर का रूप धारण कर लिया। इसके पीछे एक दुखद घटना थी। एक दिन सुलतान का दरबार समाप्त होने के बाद जब लोग बाहर निकले तो किसी सरदार का हाथी भड़क उठा। उसने कई लोगों को कुचल डाला। women of india



जीजाबाई का भाई दत्ताजी हाथी को मारने दौड़ा और शहाजी का चचेरा भाई संभाजी उसे बचाने। दोनों पक्षों में तलवारें खिंच गईं। एक ओर के नेता थे, लखुजी और दूसरी ओर थे, शहाजी। श्वसुर के हाथों दामाद आहत हुआ-शायद मारा भी जाता। संभाजी और दत्ताजी दोनों मारे गए।



पिता और पति के परिवारों के वैर का अभिशाप जीजाबाई जीवन भर ढोती रहीं। मायके से संबंध टूट चुका था। पर अभी उन्हें बहुत देखना था। अहमदनगर के सुलतान को संदेह था कि लखुजी मुगलों से मिले हुए हैं। सुलतान ने उन्हें दरबार में बुलाया। वहां उनकी और उनके पुत्रों की निर्मम हत्या की गई। जीजाबाई की मां और भौजाइयां बड़ी मुश्किल से बच निकलीं और अपने घर सिंदखेड़ में जाकर सती हो गईं।




बचपन से ही जीजाबाई देख रही थीं कि निरंकुश धर्मांध शासन के कारण बहुसंख्यक हिंदू जनता कितनी त्रस्त और पीड़ित थी। उनके पिता के साथ जो हुआ, वह जनसाधारण के साथ रोज होता था। women of india



इस अन्याय और अत्याचार से छुटकारा पाने का एक ही उपाय था-स्वराज्य की स्थापना। पर इसमें खतरा भी बहुत था। जीजाबाई पिता की हत्या देख चुकी थीं। अहमदनगर राज्य बचाने के प्रयास में शहाजी को जिन संकटों का सामना करना पड़ा, उसकी वे साक्षी थीं। पूना की सारी जागीर बीजापुर की सेना ने तहस-नहस कर दी थी। और जब शहाजी को बाध्य होकर सुलह करनी पड़ी तो सुलतान ने उन्हें महाराष्ट्र से दूर कर्नाटक भेज दिया था जिससे बगावत का कोई डर न रहे।



जीजाबाई की महानता यह थी कि इन संकटों से वे टूटी नहीं। पुत्र-प्रेम के बावजूद उन्होंने कभी पुत्र को खतरा उठाने, संघर्ष करने से नहीं रोका। उलटे उसे सलाह दी, उसका उत्साह बढ़ाया। जब शिवाजी अफजलखां से मिलने गए, उस समय जीजाबाई की क्या मनोदशा थी, उसकी आसानी से कल्पना की जा सकती है। शहाजी को इसी अफजलखां की सलाह के कारण एक बार कारावास भोगना पड़ा था। जीजाबाई के बड़े पुत्र की मृत्यु का भी परोक्ष रूप से वही कारण था। भोंसले परिवार के उस कट्टर शत्रु से मिलने में क्या संकट है, यह वह भली-भांति जानती थीं। फिर भी उन्होंने पुत्र को रोका नहीं।



इस दृढ़ निश्चय के साथ-साथ जीजाबाई में न्यायप्रियता और सुशासन के प्रति गहरा प्रेम था। पुणे और उसके आस-पास का इलाका फिर से आबाद करने और जागीर का बंदोबस्त करने का श्रेय जितना दादाजी कोंडदेव को है, उतना ही जीजाबाई को भी है। वर्तमान पुणे के कई देवालयों की स्थापना उन्होंने की थी। जब तक शिवाजी छोटे थे, न्यायदान का काम दादाजी करते थे। अगर उनके निर्णय से किसी को संतोष न हो तो वह जीजाबाई से अपील कर सकता था। 



जेजुरी के प्रसिद्ध देवालय का झगड़ा उन्होंने ही सुलझाया था। स्वराज्य की स्थापना के बाद जब कभी उनको किसी अन्याय या अत्याचार का पता लगता था तो वे स्वतः उस ओर ध्यान देती थीं और अपराधी को दंड दिलाती थीं। एक बार जब उन्हें पता चला कि एक माल अधिकारी दूसरे के काम में अकारण हस्तक्षेप कर रहा है तो उन्होंने पत्र भेजा-अगर बेकार झिकझिक करोगे तो शिवाजी बिल्कुल मुरौव्वत नहीं करेंगे, फिर रोओगे तो कोई फायदा नहीं होगा। वे सही अर्थ में राजमाता थीं। शिवाजी के अनुयायियों में किसी के घर शादी-ब्याह हो तो वे इस बात का बराबर ध्यान रखती थीं कि किसी बात की कमी न पड़े। women of india



जब शिवाजी औरंगजेब से मिलने आगरा गए तो राज्य का प्रबंध उन्होंने जीजाबाई को सौंपा था। बेटा संकट में है, औरंगज़ेब ने उसे बंदी बनाया है, पता नहीं उससे फिर भेंट होगी भी या नहीं, इन सब चिंताओं से ग्रस्त होने पर भी बूढ़ी जीजाबाई ने राज्य का प्रबंध बड़ी कुशलता से किया।



शिवाजी दुर्गा के भक्त थे और संभवतः यह पाठ उन्हें मां ने सिखाया था। शिवाजी आगरा से लौट आए पर उनके कुछ प्रमुख दुर्ग मुगलों के कब्जे में थे। इनमें कोंडाणा उर्फ सिंहगढ़ प्रधान था। यह ऐसे मौके की जगह थी कि यहां से मुगल किसी भी समय हमला बोल सकते थे। सिंहगढ़ अभेद्य था और उस पर मुगल सेना भी बहुत बड़ी थी। 



इन कारणों से शिवाजी चाहकर भी सिंहगढ़ जीतने की योजना बना रहे थे। पर जीजाबाई का आग्रह था कि चाहे जैसे भी हो सिंहगढ़ पर कब्जा करना ही होगा। उनके इस आग्रह के आगे शिवाजी को झुकना पड़ा और उनके बालसखा तानाजी ने प्राणों की आहुति दे सिंहगढ़ जीता।



इसी तरह एक बार पहले भी जीजाबाई ने अपने दृढ़ निश्चय का परिचय दिया था। बीजापुर के सरदार सिद्दी जौहर ने पन्हाला के किले पर घेरा डाला था। शिवाजी अंदर बंद थे। बाहर निकलने का रास्ता न था। जीजाबाई राजगढ़ से राज्य का प्रबंध देख रही थीं। सेनापति नेताजी पालकर घेरा तोड़कर पन्हाला पहुंचने में असमर्थ हो रहे थे। जीजाबाई ने नेताजी को डांटा - "राजा उधर बंद है और तुम शत्रु से डर कर पीछे हट रहे हो? शर्म नहीं आती? अब मैं स्वतः फौज लेकर घेरा तोड़ने जाती हूं।" women of india



भारत की नारियां:- नूरजहां Noorjahan



ऐसी तेजस्विनी थी, मराठों की यह राजमाता। सत्तर वर्ष के जीवन में इसने बहुत कुछ सहा और भुगता था। पर कभी झुकी नहीं। बड़ी से बड़ी विपत्ति उसे ध्येय से विचलित नहीं कर सकी। बड़े से बड़े त्याग से वह घबराई नहीं। दीप की तरह वह जीवन भर प्रकाश देती रहीं, नई दिशा की ओर बढ़ने की प्ररेणा देती रहीं।




जीवन के अंतिम दिन उन्होंने रायगढ़ के नीचे पांचाड़ गांव में बिताए। रायगढ़ बहुत ऊंचा है और वहां की जलवायु उन्हें न भाती थी। शिवाजी ने पांचाड़ गांव में उनके लिए भवन बनवा दिया था। यहां शिवाजी के राज्याभिषेक के केवल तेरह दिन बाद 17 जून, 1674 को उनकी मृत्यु हुई। पांचाड़ में ही उनकी अन्त्येष्टि हुई। वहीं उनकी समाधि आज भी है।


गंगाभट्ट ने जीजाबाई के बारे में लिखा है-

कादंबिनी जगजीवन दान हेतुः सौदामिनी सकलारि विनाशनाय । 

आलंबिनी भवति राजगिरे इदानी, जीजाभिधा जयति शहा कुटुंबिनी सा ।।



जिस प्रकार मेघ संसार को जीवन देते हैं और बिजली जहां गिरती है, वहां विनाश करती है। उसी प्रकार शहाजी की पत्नी राजमाता जीजाबाई अपने आश्रितों को नवजीवन देने वाली और शत्रुओं का विनाश करने वाली है। women of india

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