शिप्रा का रिजर्वेशन जिस बोगी में था, उसमें लगभग सभी लड़के ही थे। टॉयलेट जाने के बहाने शिप्रा पूरी बोगी घूम आयी थी, मुश्किल से दो या तीन औरते होंगी। मन अनजाने भय से काँप गया। पहली बार अकेले सफर कर रही थी इसलिए पहले से ही घबराई हुई थी। अत: खुद को सहज करने के लिए चुपचाप अपनी शीट पर मैगजीन निकाल कर पढ़ने लगी। नवयुवकों का झुँड जो शायद किसी कैम्प जा रहा था, के हँसी मजाक, चुटकुले उसके हिम्मत को और भी तोड़ रहे थे। शिप्रा के भय और घबराहट के बीच अनचाही-सी रात धीरे-धीरे उतरने लगी। सहसा सामने के शीट पर बैठा मैं बोला हैलो- मैं धीरज और आप? भय से पीली पड़ चुकी शिप्रा ने कहा- जी मैं, कोई बात नहीं नाम मत बताइये। वैसे कहाँ जा रही है आप? शिप्रा ने धीरे से कहा- जयपुर।
क्या जयपुर? वहाँ तो मेरा नानी का घर है। इस रिश्ते से तो आप मेरी बहन लगी। खुश होते हुए मैंने कहा और फिर जयपुर की अनगिनत बातें बताता रहा की मेरे नाना जी काफी नामी व्यक्ति है और मेरे दोनों मामा सेना में उच्चअधिकारी है और ढेरों नई पुरानी बातें। शिप्रा भी धीरे-धीरे सहज होकर मेरी बातों को ध्यान से सुन रही थी। सुबह शिप्रा ने कहा- लीजिये मेरा पता रख लीजिये कभी नानी घर आइयेगा तो जरूर मिलने आइयेगा। कौन-सा नानी का घर बहन? वो तो मैं आपको डरते देखा तो झूठ-मूठ का रिश्ते गढ़ता रहा। मैं तो कभी जयपुर आया ही नहीं। शिप्रा चौंक उठी- क्या? बहन! ऐसा नहीं है की सभी लड़के बुरे होते है कि किसी अकेली लड़की को देखा नहीं और उस पर गिद्ध दृष्टि डालने लगे। हम में ही तो पिता और भाई भी होते हैं।
ऐसा कहकर प्यार से उसके सर पर हाथ रखकर मुस्कुरा दिया। शिप्रा मुझे देखती रही जैसे की कोई अपना भाई उससे विदा ले रहा हो... शिप्रा की आँखों से आंसू छलक पड़े। काश! इस संसार में सब ऐसे हो जायें न कोई अत्याचार, न व्यभिचार, भयमुक्त समाज का स्वरुप हमारा देश, हमारा प्रदेश, हमारा शहर, हमारा गाँव जहाँ सभी बहन बेटियां खुली हवा में साँस ले सके। निर्भय होकर कभी भी कही भी आ जा सके। जहाँ पर हर कोई एक-दूसरे का मददगार हो।
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