Historical Fiction: जानें बूचड़खाने तोड़ने वाले विश्व के सबसे बड़े गौरक्षक की जीवनी

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Historical Fiction: जानें बूचड़खाने तोड़ने वाले विश्व के सबसे बड़े गौरक्षक की जीवनी


जन्म स्थान

वीर हरफूल का जन्म 1892 ई. में भिवानी जिले के लोहारू तहसील के गांव बारवास में एक जाट क्षत्रिय परिवार में हुआ था। उनके पिता एक किसान थे। बारवास गांव के इन्द्रायण पाने में उनके पिता चौधरी चतरू राम सिंह रहते थे। उनके दादा का नाम चौधरी किताराम सिंह था। 1899 में हरफूल के पिताजी की प्लेग के कारण मृत्यु हो गयी। इसी बीच उनका परिवार जुलानी (जींद) गांव में आ गया। यहीं के नाम से उन्हें वीर हरफूल जाट जुलानी वाला कहा जाता है। हरफूल की माता की शादी उनके चाचा के साथ कर दी गई। हरफूल अपने मामा के यहां तोशाम के पास संडवा (भिवानी) गांव में चले गये। जब वे वापिस आये तो उनके चाचा के लड़कों ने उसे प्रोपर्टी में शेयर देने से मना कर दिया। जिस पर बहुत झगड़ा हुआ और हरफूल को झूठी गवाही देकर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। और हरफूल पर थानेदार ने बहुत अत्याचार किये। उनकी माता ने हरफूल का पक्ष लिया मगर उनकी एक न चली बाद में उनकी देखभाल भी बन्द हो गयी।


सेना में 10 साल

उसके बाद हरफूल सेना में भर्ती हो गए। उन्होंने 10 साल सेना में काम किया। उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में भी भाग लिया। उस दौरान ब्रिटिश आर्मी के किसी अफसर के बच्चों व औरत को घेर लिया। तब हरफूल ने बड़ी वीरता दिखलाई व बच्चों की रक्षा की। अकेले ही दुश्मनों को मार भगाया। फिर हरफूल ने सेना छोड़ दी। जब सेना छोड़ी तो उस अफसर ने उन्हें गिफ्ट मांगने को कहा गया तो उन्होंने फोल्डिंग गन मांगी। फिर वह बंदूक अफसर ने उन्हें दी।


थानेदार व अपने परिवार से बदला

उसके बाद हरफूल ने सबसे पहले आते ही टोहाना के उस थानेदार को ठोक दिया, जिसने उसे झूठा पकड़ा व टॉर्चर किया था। फिर उसने अपने परिवार से जमीन में हिस्सा मांगा तो चौधरी कुरड़ाराम के अलावा किसी ने सपोर्ट न किया और भला बुरा कहा। वे उनकी माता की मृत्यु के भी जिम्मेदार थे तो बाकियों को हरफूल ने ठोक दिया। फिर हरफूल बागी हो गया उसने अपना बाद का जीवन गौरक्षा व गरीबों की सहायता में बिताया।


गौरक्षा- सवा शेर

पहला हत्था तोड़ने का किस्सा- 1930 टोहाना में मुस्लिम राँघड़ों का एक गाय काटने का एक कसाईखाना था। वहां की 52 गांवों की नैन खाप ने इसका कई बार विरोध किया। कई बार हमला भी किया जिसमें नैन खाप के कई नौजवान शहीद हुए व कुछ कसाई भी मारे गए। लेकिन सफलता हासिल नहीं हुई क्योंकि ब्रिटिश सरकार मुस्लिमों के साथ थी और खाप के पास हथियार भी नहीं थे। तब नैन खाप ने वीर हरफूल को बुलाया व अपनी समस्या सुनाई। हिन्दू वीर हरफूल भी गौहत्या की बात सुनकर लाल-पीले हो गए और फिर नैन खाप के लिए हथियारों का प्रबंध किया। हरफूल ने युक्ति बनाकर दिमाग से काम लिया। उन्होंने एक औरत का रूप धरकर कसाईखाने के मुस्लिम सैनिकों और कसाइयों का ध्यान बांट दिया। फिर नौजवान अंदर घुस गए उसके बाद हरफूल ने ऐसी तबाही मचाई कि बड़े-बड़े कसाई उनके नाम से ही कांपने लगे। उन्होंने कसाइयों पर कोई रहम नहीं खाया। सैकड़ों मुस्लिम राँघड़ो को मौत के घाट उतार दिया और गऊओं को मुक्त करवाया। अंग्रेजों के समय बूचड़खाने तोड़ने की यह प्रथम घटना थी।


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नैन खाप ने दी सवा शेर की उपाधि 

इस महान साहसिक कार्य के लिए नैन खाप ने उन्हें सवा शेर की उपाधि दी व पगड़ी भेंट की। उसके बाद तो हरफूल ने ऐसी कोई जगह नहीं छोड़ी जहां उन्हें पता चला कि कसाईखाना है, वहीं जाकर धावा बोल देते थे। उन्होंने जींद, नरवाना, गौहाना, रोहतक आदि में 17 गौहत्थे तोड़े। उनका नाम पूरे उत्तर भारत में फैल गया। कसाई उनके नाम से ही थरार्ने लगे। उनके आने की खबर सुनकर ही कसाई सब छोड़कर भाग जाते थे। मुसलमान और अंग्रेजों का कसाईवाड़े का धंधा चौपट हो गया। इसलिए अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लग गयी। मगर हरफूल कभी हाथ न आये। कोई अग्रेजों को उनका पता बताने को तैयार नहीं हुआ।


गरीबों का मसीहा

वीर हरफूल उस समय चलती फिरती कोर्ट के नाम से भी मशहूर थे। जहाँ भी गरीब या औरत के साथ अन्याय होता था वे वहीं उसे न्याय दिलाने पहुंच जाते थे। उनके न्याय के भी बहुत से किस्से प्रचलित हैं।


हरफूल की गिरफ्तारी व बलिदान

अंग्रेजों ने हरफूल को सोते हुए गिरफ्तार कर लिया। कुछ दिन जींद जेल में रखा लेकिन उन्हें छुड़वाने के लिये हिन्दुओं ने जेल में सुरंग बनाकर सेंध लगाने की कोशिश की और विद्रोह कर दिया। इसलिये अंग्रेजों ने उन्हें फिरोजपुर जेल में चुपके से ट्रांसफर कर दिया। बाद में 27 जुलाई 1936 को चुपके से पंजाब की फिरोजपुर जेल में अंग्रेजों ने उन्हें रात को फांसी दे दी। उन्होंने विद्रोह के डर से इस बात को लोगों के सामने स्पष्ट नहीं किया। उनके पार्थिव शरीर को भी हिन्दुओं को नहीं दिया गया। उनके शरीर को सतलुज नदी में बहा दिया गया। इस तरह देश के सबसे बड़े गौरक्षक, गरीबों के मसीहा, उत्तर भारत के रॉबिनहुड कहे जाने वाले वीर हरफूल सिंह ने अपना सर्वस्व गौमाता की सेवा में कुर्बान कर दिया। मगर कितने शर्म की बात है कि बहुत कम लोग आज उनके बारे में जानते हैं। कई गौरक्षक संगठन भी उनको याद नहीं करते। गौशालाओं में भी गौमाता के इस लाल की मूर्तियां नहीं हैं।

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