लघु कथा: मस्ती का राज

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लघु कथा: मस्ती का राज


राजा अंबरीष वन में कहीं जा रहे थे। उन्होंने रास्ते में देखा कि एक युवक खेत में हल जोत रहा है तथा बड़ी मस्ती से भगवान की भक्ति का भजन गाता जा रहा है। राजा उसकी मस्ती से प्रभावित हुए तथा खेत की मेड़ पर खड़े हो गए। राजा ने पूछा,‘‘बेटा, तुम्हारी मस्ती देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूं। इस मस्ती का कारण क्या है?’’ युवक ने उत्तर दिया,‘‘दादा, मैं अपनी मेहनत की कमाई बांटकर खाता हूं। हर क्षण भगवान को याद कर संतुष्ट रहता हूं, इसलिए सदैव खुश और मस्त रहता हूं। मुझे लगता है कि जैसे भगवान हमेशा मुझ पर कृपा की बरसात करते रहते हैं।’’ राजा ने पूछा,‘‘तुम कितना कमा लेते हो? उसे किस तरह बांटते हो?’’ युवक ने बताया,‘‘मैं एक रुपया रोेज कमाता हूं। उसे चार जगह बांट देता हूं। 


माता-पिता ने मुझे पाला-पोसा है। कृतज्ञता के रूप में उनको चार आने भेंट करता हूं। चार आने बच्चों पर खर्च करता हूं। मैं किसान होने के नाते यह जानता हूं कि आदमी जो बोता है, वह फसल पकने पर पाता है। इसलिए चार आना मैं गरीबों में, अपाहिजों व बीमारों की सेवा में खर्च करता हूं। असहायों को दान देता हूं। चार आने में अपना व पत्नी का खर्च चलाता हूं।’’ राजा को अनपढ़ किसान युवक की मस्ती का रहस्य समझ में आ गया।


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