गणेश शंकर विद्यार्थी अपने सहयोगियों की विशेष चिंता करते थे। एक बार वे अपने एक सहयोगी के साथ रेल यात्रा कर रहे थे। अचानक रात में उठकर उन्होंने देखा कि उनके सहयोगी के पास ओढ़ने के लिए चादर नहीं है और वे ठंड से सिकुड़ रहे हैं। विद्यार्थी जी ने उन्हें अपना कंबल ओढ़ा दिया और स्वयं हल्की-सी चादर लेकर सो गए। प्रात: नींद खुलने पर सहयोगी बंधु ने देखा कि गणेश शंकर विद्यार्थी सर्दी से सिकुड़ रहे हैं।
उन्हें नींद तो आई नहीं थी, बस लेटे हुए ही थे। विद्यार्थी जी ने अपने सहयोगी से पूछा,‘‘रात नींद तो ठीक से आ गई थी न?’’इस पर सहयोगी ने कहा,‘‘आप रात भर सर्दी से ठिठुरते रहे और मैं ...।’’ ‘‘अरे कुछ नहीं।’’ विद्यार्थी जी ने बीच में टोकते हुए कहा,‘‘मुझे तो ऐसे ही रहने की आदत है।’’ विद्यार्थी जी अपने सहयोगियों का कितना अधिक ध्यान रखते थे, उसका यह छोटा-सा उदाहरण है।
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